Sunday, December 20, 2020

विश्व सिटिजिन शिप की मांग का समय है आज



विश्व शांति के लिए दुनिया के पदयात्री--- प्रेमकुमार , 21 वी सदी के साहित्यकारों के मंच पर , प्रो राजेशकुमार से विस्तृत बातचीत

विश्व सिटिजिन शिप की मांग का समय है आज 


        आज "21वीं सदी के साहित्यकार" के बैनर तले "दुनिया मेरे कदमों में" कार्यक्रम के अंतर्गत 'दुनिया को पैदल नापने वाली शख्सियत से मुलाकात' कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे, विश्व पदयात्री प्रेम कुमार। इनसे बातचीत की वरिष्ठ साहित्यकार और भाषाविद डॉ. राजेशकुमार ने। कार्यक्रम की अध्यक्षता की वरिष्ठ व्यंग्यकार और व्यंग्य यात्रा के संपादक डॉ. प्रेम जनमेजय ने।

          कार्यक्रम का संचालन प्रतिष्ठित व्यंग्यकार परवेश जैन ने किया और दीपा स्वामीनाथन से इष्ट वंदना की। विशिष्ट अतिथियों और श्रोताओं के स्वागत किया दुबई से कवियित्री स्नेहा देव ने। 

         1421 दिन पैदल 17000 किलोमीटर पैदल चलने वाले विश्व पदयात्री प्रेम कुमार  के बारे में विशिष्ट जानकारी दी, वरिष्ठ व्यंग्यकार प्रभात गोस्वामी ने। उन्होंने बताया कि पैदल चलकर दुनिया नापने और विश्व शांति कायम करने के सपने को पूरा करने वाले अहमदाबाद निवासी प्रेम कुमार  भौतिक शास्त्र और दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी रहे हैं। उन्होंने विभिन्न देशों की यात्रा की और "फ्रेंड्स ऑफ ऑल" नामक संगठन का गठन किया । इन्होंने 2 अक्तूबर,1982 से यात्रा शुरू की जो 6 अगस्त, 1986 तक चली। यह यात्रा यूरोप के विभिन्न देशों से होते हुए अमेरिका, जापान के साथ-साथ देश के अनेक राज्यों की यात्रा की। इस दौरान प्रेम कुमार  को पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी, हरिवंश राय बच्चन, अमृता प्रीतम, अरुणा आसिफ अली का आशीर्वाद मिला। कई पुरस्कारों से सम्मानित भी हुए और सम्मान स्वरूप इन्हें अमरीका के बाल्टीमोर की नागरिकता भी मिली। 

        कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रेम कुमार  से बातचीत आरम्भ की राजेश कुमार  ने। पैदल चलने की सार्थकता के सवाल के जवाब में प्रेम कुमार  ने कहा कि चलना इंसान की स्वाभाविक प्रक्रिया है। किसी भी मकसद के लिए, दुनिया तक अपनी बात पहुंचाने के लिए पदयात्रा करना, लोगों को जानना और भाषा-संस्कृति को समझना एक बहुत ही दिलचस्प बात है। इसके पूर्व भी बुद्ध, जैन, विनोबा भावे, महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग ने भी यात्राएं कीं और उनके जो अनुभव रहे उससे उन्हें तो लाभ हुआ ही, दुनिया को भी काफी लाभ मिला। उन्होंने केवल दुनिया को जाना और समझा ही नहीं बल्कि दुनिया को बदलने को भी भरपूर कोशिश की और काफी हद तक अपने मकसद में सफल भी रहे। उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण बात कही कि किसी उद्देश्य के साथ चलने की बात ही कुछ और होती है।

         राजेश जी के एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि हमने मैंने किसी से पानी के अलावा कुछ नहीं मांगा और कभी पैसा अपने पास नहीं रखा। जब राजेश  ने पूछा कि आपके मन में चलने का ख्याल क्यों आया, इस पर प्रेम कुमार  ने जवाब दिया कि कुछ लोग किताबें लिखते हैं, और कुछ के ऊपर किताबों लिखी जाती हैं, तो मेरे मन में कुछ ऐसा ख्याल आया कि हमें कुछ अलग करना चाहिए। कुछ ऐसा करें कि लोग आपके बारे में किताबें लिखना शुरू करें। मैं किताब क्यों लिखूं, दूसरे लोग हमारे बारे में लिखें तो यह एक बड़ी बात होगी। उन्होंने कहा कि यदि विज्ञान और आध्यात्मिकता - दोनों को जोड़ दिया जाए तो इससे बढ़िया और कुछ नहीं। 

         अपनी यात्रा के अनुभवों के बारे में उन्होंने कहा कि दुनिया के सामने चार प्रश्न हैं -- राष्ट्रवाद, अमीर-गरीब की खाई, रंग-नस्ल का भेद और धार्मिक असहिष्णुता। यदि इन चारों को दुनिया से दूर करना है, मिटाना है तो हमें पहले दुनिया को समझना पड़ेगा। दुनिया को बहुत करीब से देखना पड़ेगा। दुनिया के अधिकांश देश चाहे एक प्रश्न से या दो प्रश्न से या चारों -- इन्हीं प्रश्नों से जूझ रहे हैं। हमें इनका हल निकालना पड़ेगा। उन्होंने अमेरिका की स्थिति के बारे में भी बात की कि किस तरह से वहां लोग परेशान हैं। 

         जब राजेश  ने कुछ रोचक संस्मरण के बारे में पूछा तो उन्होंने चेकोस्लोवाकिया के एक ट्रक ड्राइवर का उल्लेख करते हुए कहा कि मिखाइल मावलोविच नामक एक ट्रक ड्राइवर का उल्लेख किया। रास्ते में जब 'विश्व शांति के लिए पदयात्रा' बैनर लेकर आगे बढ़ रहे थे, तो रुक कर उसने उन्हें पानी पिलाया, साथ पैदल चलने के लिए उसकी कंपनी ने उसे छुट्टी दी और वह 10 दिनों तक उनके साथ पैदल चलता रहा। उन्होंने अमेरिका में पैदल यात्रा की रोचक दास्तान सुनाई। एक छोटे लड़के दोस्ती बढ़ाने के लिए उनकी तरफ हाथ बढ़ाया। उन्होंने कहा कि पैदल यात्रा दोस्ती बढ़ाने की यात्रा है, दोस्ती का पुल बनाने की यात्रा है।

       बातचीत के उपरांत प्रश्न-उत्तर में सत्र रामस्वरूप  के प्रश्न के जवाब में प्रेम कुमार  ने कहा कि दो प्रकार की ताकते हैं --- एक जोड़ने की और दूसरा तोड़ने की। हमें इन्हीं दो प्रश्नों से, इन्हीं दो ताकतों से पार पाना होगा। उन्होंने कहा कि उन्हीं देशों ने प्रगति की है जिन्होंने दूसरों के लिए दरवाजे खोले हैं। 

विवेक रंजन श्रीवास्तव ने विश्व शांति के उद्देश्य से की गई उनकी पदयात्रा  के संदर्भ में कहा कि अब ग्लोबल सिटीजन शिप की जरूरत लगती है , पक्षी तो मुक्त गगन में बिना वीसा या पासपोर्ट के साइबेरिया से भारत की यात्रा करते हैं पर इंसानो के लिए बार्डर हैं सरकारें हैं । आज आवश्यकता है कि अंतरिक्ष , विज्ञान , अन्वेषण आविष्कार पर मानव मात्र का अधिकार घोषित हो । यह समय विश्व सरकार का समय है ।  जिससे प्रेमकुमार जी ने समर्थन व्यक्त किया ।

           रणविजय राव के प्रश्न के जवाब में प्रेम कुमार  ने कहा कि रास्ते में कठिनाइयां आती हैं और बहुत आती हैं, लेकिन जब हम किसी उद्देश्य को लेकर चलते हैं तो वे कठिनाइयां बहुत छोटी लगने लगती हैं। उन्होंने कहा कि लोग मदद के लिए आते हैं और अपनी इतनी रातों में उन्हें केवल आठ रातें सड़कों पर गुजारनी पड़ीं।

         प्रेम कुमार ने 'प्याज' पर व्यंग्य कविता सुनाकर अपनी काव्य प्रतिभा का भी परिचय दिया। प्याज के छिलके, प्याज की उपयोगिता और प्याज के घटते-बढ़ते दामों पर बहुत ही रोचक और उम्दा कविता सुनाई।

वरिष्ठ कवि डॉ. संजीव कुमार ने कोरोना से पीड़ित होते हुए भी कार्यक्रम में शिरकत करके अपना जज़्बा दिखाया, और कहा कि प्रेम कुमार जी के संस्मरण अद्भुत और विरल हैं, और वे उन्हें प्रकाशित करके लोगों के हित के लिए सामने लाना चाहेंगे।


         अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. प्रेम जनमेजय ने कहा कि प्रेम कुमार  के सामने जो उद्देश्य हैं, जो उद्देश्य लेकर वह चल रहे हैं, हम सब उनके सामने बौने हैं। उन्होंने कहा कि प्रेम कुमार  एक पाठशाला हैं और हम सब उस पाठशाला के विद्यार्थी। उन्होंने कहा कि पर्यटन हमारा स्वार्थ होता है, पर पदयात्रा के लिए हमारा कोई मकसद होता है। प्रेम कुमार  पहाड़ों और जंगलों में पगडंडियां बनाने वाले हैं। वे अपने हाथ में कुदाल लेकर चलते हैं जो एक बहुत बड़ी बात है। उन्होंने कहा कि पदयात्रा हमें श्रमशील होना सिखाती है और जिम्मेदारियों का एहसास कराती है। 


         जापान की राजधानी टोकियो से प्रेम कुमार  की अर्धांगिनी तोमो  ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने प्रेम  के बारे में कई रोचक दास्तान सुनाए। उन्होंने बड़ी बेबाकी से अपने अनुभव हिंदी भाषा में साझा की जिसे सुनकर हम सभी दर्शकों को बहुत खुशी हुई। कार्यक्रम में प्रेम कुमार  की तीनों बेटियां अलग-अलग देशों --- कनाडा, फ़्रांस और जापान से जुड़ी थीं। 

          धन्यवाद ज्ञापन किया वरिष्ठ व्यंग्यकार और कवि डॉ. लालित्य ललित ने। ललित  ने प्रेम कुमार  के दोस्ती के प्रसंग का उल्लेख करते हुए उन्होंने भी अपने घर का पता बताया जिसे सुनकर हम सभी मुस्कुराए बिना नहीं रहे। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही अनोखा और अनूठा कार्यक्रम रहा, आज देश और दुनिया के अनेक जगहों से लोग जुड़े और एक रोचक संस्मरण हमें सुनने को मिला। 


          तकनीकी सहयोग दिया लोकप्रिय साहित्यकार सुरेश कुमार मिश्र  ने। कार्यक्रम में देश और दुनिया सहित समूह के सदस्य बड़ी संख्या में जुड़े रहे।

1 comment:

  1. प्रेम कुमार जी के प्रेरक व्यक्तित्व को जानकर बहुत अच्छा लगा। विश्व शांति के लिए यह बहुत आवश्यक है कि दुनिया को समझकर जागरूकता बढ़ाई जाए। शुभकामनाएँ।

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कैसा लगा ..! जानकर प्रसन्नता होगी !