Thursday, October 29, 2009

भ्रष्टाचार की जय हो !

भ्रष्टाचार की जय हो !

vivek ranjan shrivastava

भ्रष्टाचार की जय हो ! एक और घोटाला सफलता पूर्वक संपन्न हुआ . सरकार हिल गई . स्वयं प्रधानमंत्री को एक बार फिर से भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर से कठोर कदम उठाने की घोषणायें दोहरानी पड़ी . एक और उच्चस्तरीय जांच कमेटी गठित की गई . सी बी आई के पास एक और फाइल बढ़ गई . भ्रष्टाचार यूं तो सारे विश्व में ही व्याप्त है , पर उन देशो में अधिक है जहां आबादी अधिक संसाधन कम , और भ्रष्टाचार के पनपने के मौके ज्यादा हैं , भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के सरकारी नियम कमजोर हैं . भारत के संदर्भ में बात करे तो मै समझता हूं कि हम सदा से किसी न किसी से डर कर ही सही काम करते रहे हैं चाहे राजा से , भगवान से , या स्वयं अपने आप से . पिछले सालों मे आजादी के बाद से हमारा समाज निरंकुश होता चला गया . हर कहीं प्रगति हुई , बस आचरण का पतन हुआ . नैतिक शिक्षा को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल जरूर किया गया है पर जीवन से नैतिकता गायब होती जा रही है . धर्म निरपेक्षता के चलते धर्म का , दिखावे का सार्वजनिक स्वरूप तो बढ़ा पर धर्म के आचरण का वैयक्तिक चरित्र पराभव का शिकार हुआ . यह बात लोगो के जहन में घर कर गई कि सरकारी मुलाजिमों को खरीदा जा सकता है , कम या अधिक कीमत में . हाल के , घोटाले ने भ्रष्टाचार की इस चर्चा को पुनः सामयिक , प्रासंगिक बना दिया है . अपने इस व्यंग लेख में मैं किसी घोटाले विशेष का नाम न लिखकर इसे जनरलाइज करते हुये व्यंग लिख रहा हूं , जिससे कैलेंडर की तारीखें मेरे व्यंग को पुराना न कर सकें . घोटालों का क्या है , औसतन महीने में दो की दर से उच्च स्तरीय ऐसे घोटाले होते ही रहते हैं , जो चैनलों के लिये सनसनी खेज होते हैं , पत्र पत्रिकाओं के लिये स्कूप स्टोरी बन सकते हैं , जिनमें सरकारों को हिलाने का दम होता है , जो विरोधी पार्टी को नवजीवन और एकजुटता प्रदर्शित करने का मौका देते हैं . सो मेरा यह आलेख आर्काइव के रूप में संजोया जा सकता है , जिस संपादक को जब मन हो तब इसे प्रकाशित करे , यह सामयिक , तात्कालिक और प्रासंगिक रहेगा .

सरवाइवल आफ फिटेस्ट के सिद्धांत को ध्यान में रखे , तो हम सहज ही समझ सकते हैं कि तमाम कोशिशों के बावजूद भी जिस तरह से भ्रष्टाचार दिन दूनी रात चौगुनी गति से फल फूल रहा है , उसे देखते हुये मेरा मानना है कि अब समय आ गया है कि विश्व गुरु भारत को भ्रष्टाचार के पक्ष में खुलकर सामने आ जाना चाहिये . हमें दुनियां को भ्रष्टाचार के लाभ बताना चाहिये . पारदर्शिता का समय है , विज्ञापन बालायें और फिल्मी नायिकायें पूर्ण पारदर्शी होती जा रही हैं . पारदर्शिता के ऐसे युग में भ्रष्टाचार को स्वीकारने में ही भलाई है . स्वयं हमारे प्रधानमंत्री जी स्वीकार कर चुके हैं कि दिल्ली से चला एक रुपया , गांवों में पहुंचते पहुंचते १५ पैसे में बदल जाता है ... भ्रष्टाचार करते हुये , सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचार की बुराई करने की दोहरी मानसिकता के साथ अब और जीना ठीक नही . जब भ्रष्टाचार के ढ़ेर सारे लाभ हैं तो फिर उन्हें गिने गिनायें और गर्व से यह कहें कि हाँ हम भ्रष्टाचारी हैं , हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे . भ्रष्टाचार के अनंत लाभ हैं . बिना लम्बी लाइन में लगे हुये यदि घर बैठे आपका काम हो जाये तो इसमें बुरा क्या है ? अब जब ऐसा होगा तो इसके लिये कुछ सुविधा शुल्क भी आप चुकायेंगे . देने वाले राजी , लेने वाले राजी , पर आपकी इस सफलता व योग्यता को देखकर लाइन में लगे बेचारे आम आदमी इस सबको भ्रष्टाचार की संज्ञा दें , तो यह उनकी नादानी ही कही जानी चाहिये . स्कूल कालेज में एडमीशन का मसला हो , नौकरी का मामला हो , नियम कानून को पकड़कर बैठो तो बस परीक्षा और इंटरव्यू ही देते रहो . समय , पैसे सबकी बरबादी ही बरबादी होती है . बेहतर है सिफारिशी फोन करवायें , और पहले ही प्रयास में मन वांछित फल पायें . अब जब मन वांछित फल मिलेगा तो आप मूर्ख थोड़े ही हैं जो प्रसाद न चढ़ायेंगे ? इस प्रक्रिया को जो भ्रष्टाचार मानते हैं उन्हें नैतिकता का राग अलापने दें , ये समय से सामंजस्य न बैठा पाने वाले असफल लोग हैं . जो कुछ जितने में खरीदा जाना है वह तो उतने में ही आयेगा , अब यदि सप्लायर सदाशयी व्यवहार के चलते आर्डर करने वाले अधिकारी और बिल पास करने वाले बाबू साहब को कुछ भेंट करे तो समझ से परे है कि यह भ्रष्टाचार कैसे हुआ . शिकायत कर्ता को उसका समाधान मिल जाये , उसके दुख , कष्ट दूर हो जायें और वह खुशी से वर्दी वालों को कुछ दे देवे तो भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुहिम चलाने वालों के पेट में दर्द होने लगता है , अरे भैया ! दान , दक्षिणा , भेंट , बख्शीस , आदान प्रदान , का महत्व समझिये .

भ्रष्टाचार के लाभ ही लाभ हैं . परस्पर प्रेम बना रहता है , कामों में सुगमता होती है , निश्चिंतता रहती है . सब एक दूसरे की चिंता करते हैं . सद्भाव पनपता है . भ्रष्टाचार एक जीवन शैली है . इसे अपनाना समय की जरूरत है . इस व्यवस्था में आनंद ही आनंद है . एक बार इसका हिस्सा बनकर तो देखिये , आपकी रुकी हुई फाइल दौड़ पड़ेगी , कार्यालयों के व्यर्थ चक्कर लगाने से जो समय बचे उसे परमार्थ में लगाइये , कुछ भ्रष्टाचार कीजिये किसी का भला ही करेंगे आप इस तरह . गीता का ज्ञान गांठ बांध लीजिये , साथ क्या लाये थे ? साथ क्या ले जायेंगे , अरे कुछ व्यवहार बनाइये . मिल बांटकर खाइये खिलाइये . जियो और जीने दो . जितनी ईमानदारी भ्रष्टाचार की अलिखित व्यवस्था में है उतनी स्टेम्प पेपर में नोटराइज्ड एग्रीमेंट्स में हो जाये तो अदालतों के चक्कर ही न लगाना पड़े लोगों को . भ्रष्ट व्यवस्था में कभी भी अविश्वास , संदेह , या गवाही जैसी बकवास चीजों की कोई जरुरत नही होती . यदि कभी कोई भ्रष्टाचारी विवशतावश किसी का कोई काम नहीं कर पाता तो , सामने वाला उसे सहज ही क्षमा करने का माद्दा रखता है , वह स्वयं भ्रष्टाचार कर अपने नुकसान को पूरा करने की हिम्मत रखता है , ऐसी उदारहृदय व्यवस्था , मानवीयता की वाहक है , आइये भ्रष्टाचार का खुला समर्थन करें , भ्रष्टाचार अपनायें , भ्रष्ट व्यवस्था के अभिन्न अंग बने . जब हम सब हमाम में नंगे हैं ही तो फिर शर्म कैसी ?

Saturday, October 24, 2009

आतंकवाद अमर हो


मेरा व्यंग पढ़िये .. अपना अभिमत दीजीये .. और आप भी हिस्सा लीजिये व्यंग लेखन में

http://rachanakar.blogspot.com/2009/10/blog-post_24.html

प्रत्येक वस्तु को देखने के दो दृष्टिकोण होते हैं . आधे भरे गिलास को देखकर नकारात्मक विचारों वाले लोग कहते हैं कि गिलास आधा खाली है , पर मेरे तरह के लोग कहते हैं कि गिलास आधा भरा हुआ है . मनोवैज्ञानिक इस दृष्टिकोण को सकारात्मक विचारधारा कहते हैं . आज सारी दुनिया आतंकवाद और आतंकवादियों के विरुद्ध दुराग्रह , और ॠणात्मक दृष्टिकोण के साथ नहा धोकर पीछे पड़ी हुई है . आतंकवाद के विरोध में बयान देना फैशन हो गया है . जब दो राष्ट्राध्यक्ष मिलें और घोषणा पत्र जारी करने के लिये कुछ भी न हो तो आतंकवाद के विरोध में साथ काम करने की विज्ञप्ति सहज ही जारी कर दी जाती है .

कभी सोचकर तो देखिये कि आतंकवाद के कितने लाभ हैं . आतंकवादियों के डर से दिन रात चौबीसों घंटे हमारी सुरक्षा व्यवस्था और सैनिक चाक चौबंद रहते हैं , अनेक दुर्घटनाएं घटने से पहले ही निपट जाती हैं . सोचिये यदि आतंक का हौआ न होता तो क्या कमांडो फोर्स गठित होती ? क्या हमारे नेताओं का स्टेटस सिंबल , उनकी जेड सुरक्षा उन्हें मिलती ? जिस तेजी से सुरक्षा बलों में नये पद सृजित हुये है आतंकवाद का बेरोजगारी मिटाने में अपूरणीय योगदान है . हर छोटा बड़ा देश जिस मात्रा में आतंकवाद के विरोध में बजट बढ़ा रहा है , और इस सबसे जो विकास हो रहा है उसे देखते हुये मेरा सोचना है कि हमें तो आतंकवाद की अमरता की कामना करनी चाहिये . नयी-नयी वैज्ञानिक तकनीकी संसाधनों के अन्वेषण का श्रेय आतंकवाद को ही जाता है . सारी दुनिया में अनेक वैश्विक संगठन , शांति स्थापना हेतु विचार गोष्ठियां कर रहे है , आतंक के विरोध में धुरविरोधी देश भी एक जुटता प्रदर्शित कर रहे हैं , यह सब आतंकवाद की बदौलत ही संभव हुआ है . शांति के नोबल पुरस्कार का महत्व बढ़ा है . यह सब आतंकवाद की प्रतिक्रिया स्वरूप ही हुआ है , क्या यह सच नहीं है ? अमेरिका की वैश्विक दादागिरी और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति , आतंकवाद के विरोध पर ही आधारित है . प्रत्यक्ष या परोक्ष आतंकवाद हर किसी को प्रभावित कर रहा है , कोई उससे डरकर अपने चारों ओर कंटीले तारों की बाड़ लगा रहा है तो कोई फैलते आतंक को ओढ़ बिछा रहा है . लोगों में आत्म विश्वास बढ़ा है , न्यूयार्क हो मुम्बई या लाहौर हर आतंकी गतिविधि के बाद नये हौसले के साथ लोग जिस तरह से फिर से उठ खड़े हुये हैं , जनमानस में वैसा आत्मविश्वास जगाना अन्यथा सरल नही था , इसके लिये समाज को आतंकवाद का आभार मानना चाहिये . मेरी स्पष्ट धारणा है कि आतंकवाद एक अति-लाभदायक क्रिया कलाप है , अब समय आ चुका है कि कम से कम हम सब व्यंगकारों को आतंकवाद के इस रचनात्मक पहलू पर एकजुट होकर दुनिया का ध्यान आकृष्ट करना चाहिये .

कभी बेचारे आतंकवादियों के दृष्टिकोण से भी तो सोचिये , कितनी मुश्किलों में रहते हैं वे , गुमनामी के अंधेरों में , संपूर्ण डेडीकेशन के साथ , अपने मकसद के लिये जान हथेली पर रखकर , घर परिवार छोड़ जंगलों में प्रशिक्षण प्राप्त कर जुगाड़ करके श्रेष्ठतम अस्त्र शस्त्र जुटाना सरल काम नही है . पल दो पल के धमाके के लिये सारा जीवन होम कर देना कोई इन जांबाजों से सीखे . आत्मघात का जो उदाहरण हमारे आतंकवादी भाई प्रस्तुत कर रहे हैं , वह अन्यत्र दुर्लभ है . जीवन से निराश , पलायनवादी , या प्रेम में असफल जो लोग आत्महत्या करते है वह बेहद कायराना होती है , पर अपने मिशन के पक्के ढ़ृढ़प्रतिज्ञ हमारे आतंकी भाई जो हरकतें कर रहे है वह वीरता के उदाहरण बन सकते हैं जरूरत बस इतनी है कि कोई मेरे जैसा लेखक उन पर अपनी कलम चला दे .

हमारे आतंकवादी भाई जाने कितनों के प्रेरणा स्रोत हैं , अनेकों फिल्मकार बिना रायल्टी दिये उनसे अपनी कहानियां बना चुके हैं , कई चैनल्स सनसनीखेज समाचारों के लाईव टेलीकास्ट कर अपनी टी आर पी बढ़ा चुके हैं , ढ़ेरों खोजी पत्रकारों को उनके खतरनाक कवरेज के लिये पुरस्कार मिल चुका है , और तो और बच्चों के खिलौने बनाने वाली कंपनियां बढ़ते आतंक को पिस्तौल और अन्य खिलौनों की शक्ल में इनकैश भी कर चुकी हैं .

मेरी समझ में किसी न किसी शक्ल सूरत में आतंक सदा से दुनियां में रहा है , और हमेशा रहेगा . मां की गोद में मचलता हुआ बच्चा देखा है ना आपने , अपनी आतंकी वृत्ति से ही वह मां से उसकी मांग पूरी करवा लेता है . पत्नी के आतंक पर भी प्यार आता है . हम सब के भीतर बहुत भीतर थोड़ा सा गांधी और एक टुकड़ा लादेन प्रकृति प्रदत्त है . और तय है कि प्रकृति कुछ भी अनावश्यक नही करती . आवश्यकता मात्र इतनी सी है कि सकारात्मक तरीके से उसका सदुपयोग किया जाये . सांप के विष से भी चिकित्सा की जाती है . अतः मेरी तो आतंकी भाइयों से फिर-फिर अपील है कि आओ मेरा खून बहाओ, यदि इससे उनका मकसद हल हो जाये , पर तय है कि इससे कुछ होने वाला नही है . लाखों को तो मार डाला आतंकवाद ने , हजारों आतंकवादी मर भी गये , क्या मिला किसी को ? इसलिये बेहतर है कि अपनी आतंक को समर्पित उर्जा को , सकारात्मक सोच के साथ , रचनात्मक कार्यो में लगायें , हमारे आतंकी भाई बहन और उनके संगठन , जिससे मेरे जैसे व्यंगकार ही नही , सारी दुनिया चिल्ला-चिल्ला कर कह सके आतंकवाद अमर हो , और आतंकी भाइयों के किस्से किताबों में सजिल्द छपें तथा गर्व से पढ़े जायें.

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विवेक रंजन श्रीवास्तव

ओ बी ११

, विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर