Tuesday, July 25, 2017

#व्यंग
नैनो में बदरा ,  नदियो में बाढ़

विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र

    जहाँ पानी में जीवन सृजित करने की क्षमता होती है वहीं यह विनाशकारी भी होता है . पानी मतलब जीवन की संभावना , इसीलिये दूसरे गृहो में भी वैज्ञानिक सबसे पहले पानी की ही तलाश करते दीखते हैं .  प्रायः धर्मो में पानी  का प्रतीकात्मक महत्व  है . पौराणिक आख्यानो में  ॠषि मुनियो को अंजुरी भर पानी छींटकर बड़े बड़े श्राप या वरदान देने वाले वृतांत आपने जरूर पढ़े या सुने होंगे . सृष्टि का प्रारंभ ही अपार , अथाह जलराशि की परिकल्पना है . ब्रम्हाण्ड की संरचना और जीवन का आधार भूत तत्व पानी ही है . यही नहीं सृजन के विपरीत सृष्टि के महाविनाश की कल्पना भी महासागरीय जल प्लावन ही है . दुनिया की सारी सभ्यतायें नदियो के तटो पर ही विकसित हुईं हैं .
        दुनिया में बढ़ती आबादी को जीवनोपयोगी पानी की समुचित आपूर्ति भविष्य की एक बड़ी वैश्विक चुनौती है . तीसरे विश्व युद्ध की परिकल्पनाओ में यह भी कहा जाता  है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिये ही लड़ा जायेगा . जब से मैने यह पढ़ा है ,  मै जब जब अपने यहां  तटबंध तोड़ती नदियो से आई बाढ़ के पानी की विभीषिका  देखता हूं ,पानी के लिये होते तीसरे विश्व युद्ध की कल्पना कर स्वयं को सांत्वना दे लेता हूं .मुझे अपने देश के बाढ़ पीड़ित रामू ,कालू वगैरह  सफेद चोले में सर से पैर तक ढ़के मुंदे ,तेल के कुंओ पर इतराते आज के अरब शेखों से दिखने लगते है .कल्पना कीजीये  हमारी सरकार के एक इशारे पर पानी से भरे विशाल गुब्बारो का रुख अमेरिका की ओर से वापस कही और मोड़ा जा सकता है , इसलिये अमेरिकन राष्ट्रपति हमारे प्रधानमंत्री से जब तब मिलने लालायित रहे ,  पाकिस्तान अपने आतंकवादियो को कुछ क्युसेक पानी के बदले काश्मीर से वापस बुलाने की पेशकश करता दिखे ,  या चीन हूं हां हाउं करते हुये डोकलांग पर केवल इसलिये कब्जा जमाना चाहता हो कि उसे ब्रम्हपुत्र की बाढ़ का पानी मिल जाये और हम बड़ी उदारता से बीजिंग तक वाटर लाइन डालने का प्रस्ताव रख सकते हों .  सोचिये कि वैज्ञानिक अनुसंधान इस दिशा में  केंद्रित करने पड़ें कि कैसे निश्चित क्षेत्र में बारम्बार बादलो के फटने और अति वर्षा की प्राकृतिक परिस्थितियां पैदा की जायें . भीषण वर्षा से देश का आर्थिक बजट ही सुधर जाये . वर्षा जल के बहाव के सारे मार्ग धरती के भीतर बने  विशालकाय पानी संग्रहण टेंको की ओर मोड़ दिये जाने की बड़ी बड़ी परियोजनायें चल रही हों  , विश्व की बड़ी आबादी पीने के पानी के लिये हमारे देश पर ही निर्भर हो  तो बताईये ऐसी वैस्विक परिस्थितियो में बाढ़ भी भला क्या बुरी है .
        पर फिलहाल  तो बाढ़ विभीषिका है , ताण्डवकारी है . बाढ़ से से बचने के लिये नदियो को जोड़ने की परियोजनाओ पर काम होना बाकी है . पर्यावरणीय असंतुलन से कही सूखा तो कही अति वर्षा हो रही है . वैज्ञानिक तकनीकी समाधानो के लिये  अनुसंधान कर रहे हैं . विशेषज्ञ बताते हैं कि जल आपदा से बचने हेतु हमें जल उपयोग के अपने आचरण बदलने चाहिये , जल उपयोग में मितव्ययता बरतनी चाहिये . किन्तु वास्तव में हम किस दिशा की ओर अग्रसर हैं ? बोतल बंद पानी बिक रहा है और लोगो की आंखो का पानी मर रहा है , और नदियो की बाढ़ विभिषिक है .    
    "सावन आया झूम के" ... नैनो में बदरा छाये बिजली सी चमके हाय " ..... "नैना बरसे रिमझिम रिमझिम " ... फिल्मी सैट्स की आर्टिफीशियल बारिश में भले ही इंद्रधनुष की आभा में हीरो ,हीरोइन सफेद गीले वस्त्रो में विलेन के नफरत के सैलाब को पार कर जाते हों पर अति वर्षा से पीड़ित किसानो  की आंखों के खून के आंसू कोई पानी नही धो सकता .किसानो की मेहनत पर पानी फेरने वाली बाढ़ ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिसे रोकने के हर संभव उपाय जरूरी हैं ,महज हास्य या व्यंग में बाढ़ को हल्के में अखबार की दिन भर की जिंदगी सा उड़ाया नही जा सकता , बल्कि व्यंग से भी यही संदेश जरूरी है कि हर साल देश की अरबो की संपत्ति का विनाश , बार बार बाढ़ आपदा पर राहत में करोड़ो का आकस्मिक व्यय , विकास हेतु होती बरसो की मेहनत पर पानी फिरने से देश को बचाना है तो बाढ़ नियंत्रण के सर्वागीण प्रयास अनिवार्य हैं .

Tuesday, July 18, 2017

भारत मे चीन


व्यंग
भारत में चीन

विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
vivekranjan.vinamra@gmail.com
बंगला नम्बर ऐ १ , विद्युत मंडल कालोनी , शिला कुन्ज , जबलपुर ४८२००८
०९४२५८०६२५२ , ७०००३७५७९८

        मेरा अनुमान है कि इन दिनो चीन के कारखानो में तरह तरह के सुंदर स्टिकर और बैनर बन बन रहे होंगे  जिन पर लिखा होगा " स्वदेशी माल खरीदें " , या फिर लिखा हो सकता है    " चीनी माल का बहिष्कार करें " . ये सारे बैनर हमारे ही व्यापारी चीन से थोक में बहुत सस्ते में खरीद कर हमारे बाजारो के जरिये हम देश भक्ति का राग अलापने वालो को जल्दी ही बेचेंगे . हमारे नेताओ और अधिकारियो की टेबलो पर चीन में बने भारतीय झंडे के साथ ही बाजू में एक सुंदर सी कलाकृति होगी जिस पर लिखा होगा "आई लव माई नेशन" ,  उस कलाकृति के नीचे छोटे अक्षरो में लिखा होगा मेड इन चाइना . आजकल भारत सहित विश्व के किसी भी देश में जब चुनाव होते हैं तो  वहां की पार्टियो की जरूरत के अनुसार वहां का बाजार चीन में बनी चुनाव सामग्री से पट जाता है .दुनिया के किसी भी देश का कोई त्यौहार हो उसकी जरूरतो के मुताबिक सामग्री बना कर समय से पहले वहां के बाजारो में पहुंचा देने की कला में चीनी व्यापारी निपुण हैं . वर्ष के प्रायः दिनो को भावनात्मक रूप से किसी विशेषता से जोड़ कर उसके बाजारीकरण में भी चीन का बड़ा योगदान है . 
        चीन में वैश्विक बाजार की जरूरतो को समझने का अदभुत गुण है . वहां मशीनी श्रम का मूल्य नगण्य है .उद्योगो के लिये पर्याप्त बिजली है . उनकी सरकार आविष्कार के लिये अन्वेषण पर बेतहाशा खर्च कर रही है . वहां ब्रेन ड्रेन नही है . इसका कारण है वे चीनी भाषा में ही रिसर्च कर रहे हैं . वहां वैश्विक स्तर के अनुसंधान संस्थान हैं . उनके पास वैश्विक स्तर का ज्ञान प्राप्त कर लेने वाले अपने होनहार युवको को देने के लिये उस स्तर के रोजगार भी हैं . इसके विपरीत भारत में देश से युवा वैज्ञानिको का विदेश पलायन एक बड़ी समस्या है . इजराइल जैसे छोटे देश में स्वयं के इनोवेशन हो रहे हैं किन्तु हमारे देश में हम बरसो से ब्रेन ड्रेन की समस्या से ही जूझ रहे हैं .  देश में आज  छोटे छोटे क्षेत्रो में मौलिक खोज को बढ़ावा  दिया जाना जरूरी है . वैश्विक स्तर की शिक्षा प्राप्त करके भी युवाओ को देश लौटाना बेहद जरूरी है . इसके लिये देश में ही उन्हें विश्वस्तरीय सुविधायें व रिसर्च का वातावरण दिया जाना आवश्यक है . और उससे भी पहले दुनिया की नामी युनिवर्सिटीज में कोर्स पूरा करने के लिये आर्थिक मदद भी जरूरी है . वर्तमान में ज्यादातर युवा बैंको से लोन लेकर विदेशो में उच्च शिक्षा हेतु जा रहे हैं , उस कर्ज को वापस करने के लिये मजबूरी में ही उन्हें उच्च वेतन पर विदेशी कंपनियो में ही नौकरी करनी पड़ती है , फिर वे वही रच बस जाते हैं . जरूरी है कि इस दिशा में चिंतन मनन , और  निर्णय तुरन्त लिए जावें , तभी हमारे देश से ब्रेन ड्रेन रुक सकता है .
        निश्चित ही विकास हमारी मंजिल है . इसके लिये  लंबे समय से हमारा देश  "वसुधैव कुटुम्बकम" के सैद्धांतिक मार्ग पर , अहिंसा और शांति पर सवार धीरे धीरे चल रहा था .  अब नेतृत्व बदला है , सैद्धांतिक टारगेट भी शनैः शनैः बदल रहा है . अब  "अहम ब्रम्हास्मि" का उद्घोष सुनाई पड़ रहा है . देश के भीतर और दुनिया में भारत के इस चेंज आफ ट्रैक से खलबली है . आतंक के बमों के जबाब में अब अमन के फूल  नही दिये जा रहे . भारत के भीतर भी मजहबी किताबो की सही व्याख्या पढ़ाई जा रही है . बहुसंख्यक जो  बेचारा सा बनता जा रहा था और उससे वसूल टैक्स से जो वोट बैंक और तुष्टीकरण की राजनीति चल रही थी , उसमें बदलाव हो रहा है . ट्रांजीशन का दौर है .
        इंटरनेट का ग्लोबल जमाना है . देशो की  वैश्विक संधियो के चलते  ग्लोबल बाजार  पर सरकार का नियंत्रण बचा नही है . ऐसे समय में जब हमारे घरो में विदेशी बहुयें आ रही हैं , संस्कृतियो का सम्मिलन हो रहा है . अपनी अस्मिता की रक्षा आवश्यक है . तो भले ही चीनी मोबाईल पर बातें करें किन्तु कहें यही कि आई लव माई इंडिया . क्योकि जब मैं अपने चारो ओर नजरे दौड़ाता हूं तो भले ही मुझे ढ़ेर सी मेड इन चाइना वस्तुयें दिखती हैं , पर जैसे ही मैं इससे थोड़ा सा शर्मसार होते हुये अपने दिल में झांकता हूं तो पाता हूं कि सारे इफ्स एण्ड बट्स के बाद " फिर भी दिल है हिंदुस्तानी " . तो चिंता न कीजीये बिसारिये ना राम नाम , एक दिन हम भारत में ही चीन बना लेंगें हम विश्व गुरू जो ठहरे . और जब वह समय आयेगा  तब मेड इन इंडिया की सारी चीजें दुनियां के हर देश में नजर आयेंगी चीन में भी , जमाना ग्लोबल जो है . तब तक चीनी मीट्टी से बने , मेड इन चाइना गणेश भगवान की मूर्ति के सम्मुख बिजली की चीनी झालर जलाकर नत मस्तक मूषक की तरह प्रार्थना कीजीये कि हे प्रभु ! सरकार को , अल्पसंख्यको को , गोरक्षको को , आतंकवादियो को ,काश्मीरीयो को ,  पाकिस्तानियो को , चीनियो को सबको सद्बुद्धि दो .
       
       
         
vivek ranjan shrivastava

Friday, July 7, 2017

बरसात और ब्रेकिंग न्यूज

व्यंग
बरसात और ब्रेकिंग न्यूज
विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
vivekranjan.vinamra@gmail.com


       टी वी समाचार जगत को उस अज्ञात महान पत्रकार का सदैव आभारी होना चाहिये जिसने  "ब्रेकिंग न्यूज" जैसी महत्वपूर्ण शब्दावली का सर्वप्रथम प्रयोग किया .  चैनल कोई भी हो दस पांच मिनट में ब्रेकिंग न्यूज दिखाये बिना मानता ही नहीं . दूरदर्शन जैसा धीर गंभीर चैनल भी जो कभी " एक आवश्यक उद्घोषणा " के लिये तैयार रहने की हिदायत दिया करता था अब ब्रेकिंग न्यूज दिखाने लगा है . सच्ची ब्रेकिंग न्यूज सालो में कभी कभार ही ब्रेक हो सकती है . ब्रेकिंग न्यूज का मतलब होता है अनायास घटी घटना की सूचना .  जैसे ओसामाबिन लादेन ने ट्विन टावर तोड़े थे या अमेरिका ने लादेन को पाकिस्तान में घुसकर मार डाला था . भला हो मोदी जी का जिन्होने नोट बंदी की घोषणा करके वास्तव में ब्रेकिंग न्यूज बनाई थी . उस रात उन्होने न्यूज ही नही कईयो का बहुत कुछ ब्रेक कर दिया था . पर समाचार चैनलो की पारस्परिक प्रतिस्पर्धा ने ब्रेकिंग न्यूज जैसे सनसनी खेज मसले को भी इस हद तक डायलूट कर दिया है कि कल बरसात के मौसम में भी बम्बई में बारिश ब्रेकिंग न्यूज के रूप में दिखाई जा रही थी . और तो और मौसम वैज्ञानिक से चर्चा के अगले प्रसारण की सूचना भी ब्रेकिंग न्यूज की लाल रंग की पट्टी के साथ  रनिंग डिस्प्ले  में चलाई जा रही थी .
        तमाम सेटेलाइट से प्राप्त सूचनाओ के कंप्यूटराइज्ड विश्लेषण के बाद भी मौसम विभाग का गणित भगवान इंद्र के गणित से ज्यादा तेज नही हो पाया है , इसलिये मई के महीने से शुरू ब्रेकिंग न्यूज कि मानसून समय पर आयेगा , औसत से ज्यादा बारिश होगी , वगैरह बिना सच हुये ही ब्रेक हो जाते हैं .कृषि प्रधान भारत में कहीं किसान मेंढ़क मेंढ़की  की शादी रचाते हैं , कहीं निर्वस्त्र महिला हल लेकर गांव की परिक्रमा करती है , चाय की गुमटियो पर कम वर्षा के लिये मुखिया मंत्री जी के आचरण पर चर्चाये होती हैं , क्योकि प्रजा का मानना है कि राजा के व्यवहार का प्रभाव जनता पर पड़ता है . गनीमत है कि मंत्री जी  अपने भाषणो में वर्षा की कमी या बाढ़ के लिये वनो के संरक्षण , पर्यावरण , पेड लगाने पर ही बोलते हैं विपक्ष पर दोषारोपण नही करते . मंत्री जी के भाषण ब्रेकिंग न्यूज बनते हैं . बरसात हो न हो , हर बार वर्षा ॠतु में वृक्षारोपण समारोह होते हैं . माननीय जन प्रतिनिधियो और  बड़े अधिकारियो की  पौधा लगाते हुये अधिकार पूर्वक फोटो खिंचती है .पौधे बचें न बचें ये और बात है , पर इस बहाने नई पीढ़ी को हरियाली का महत्व समझने का पूरा मौका मिलता है . बाय प्राडक्ट के रूप में ब्रेकिंग न्यूज बनती है सो अलग .
        एक और बात मेरी समझ से परे है , सुबह उठते ही जब मैं टी वी चलाता हूं , कोई भी चैनल लगा लूं हर चैनल में लगभग समान समय में पहले भक्ति , फिर व्यायाम और फिर भविष्यफल दिखाया जाता है . यहां तक कि विज्ञापनो के ब्रेक का भी वही समय होता है , चैनल बदलने का कोई लाभ नही होता . केवल चेहरे अलग होते हैं , आधारभूत सामग्री वही होती है . हर चैनल  युवा एंकर लडकियो और अपने अपने विशेषज्ञो के साथ लगातार बार बार लगभग एक सा ब्रेकिंग न्यूज दिखा रहा होता है . जिसे मिनट दो मिनट आगे या पीछे एक्सक्लुजिव कवरेज क्लेम करता है .
दोपहर जब मैं लंच पर घर आता हूं तो मन करता है कि किसी चैनल पर कोई नया ताजा समाचार मिल जाये पर मजाल है कि मैं रिमोट से चैनल बदल कर अपने मिशन में कामयाब हो सकूं , वह समय होता जब सारे देश को आने वाले टी वी सीरियल्स और फिल्मो , छोटे और बड़े पर्दे के कलाकारो के व्यक्तिगत किस्सो के  ब्रेकिंग न्यूज  मिलते जुलते नामो वाले कार्यक्रमों के अंतर्गत देखना बेहद जरुरी होता है . शाम जब आफिस से लौटो तो गर्म नाश्ता मिले न मिले पर हर चैनल पर सामयिक मुद्दे पर लाइव गर्मा गरम बहस हो रही होती है . टी आर पी की तलाश में जुटे चैनल्स यदि अपने मौलिक शिड्यूल भी बना लें तो शायद मेरे जैसे दर्शक रिमोट से उन तक पहुंचने में कोई लाभ देखें .  
 

Monday, July 3, 2017

जी एस टी बनाम एक्साइज

व्यंग

एक्साईज और सर्विस टैक्स का रिटायरमेंट

विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
vivekranjan.vinamra@gmail.com
बंगला नम्बर ऐ १ , विद्युत मंडल कालोनी , शिला कुन्ज , जबलपुर ४८२००८
०९४२५८०६२५२ , ७०००३७५७९८

 महीने का आखिरी दिन मतलब सरकारी दफ्तरो में ढ़ेर सारे रिटायरमेंट और रिटायर होते लोगो की जगह इक्के दुक्के एपांइंटमेंट . बचे खुचे अफसरो को ही मल्टीपल चार्ज दिये जा रहे हैं , सरकारी विभागो में इन दिनो लोगो के रावण जैसे कई कई सिर उगाये जा रहे हैं   . रिटायर होने वाला खुश होता है कि चलो  सही सलामत कट गई .  फैक्ट्री या दफ्तरो के मुख्य दरवाजे पर आजकल  महीने के आखिरी दिन बारात जैसा वातावरण होता है .बैंड , फूलो से सजी गाड़ी , रास्ता जाम ,फटाको का शोर ,  गुलाल उड़ाते लोग एक साथ ही होली दीवाली सब आ जाती है . इससे पहले हर रिटायर होते कर्मचारी अफसर को सर्वश्रेष्ठ इम्पलायी बताते हुये भाषण होते हैं . शाल , श्रीफल , स्मृति चिंह , एकाध प्रशस्ति पत्र , रिटायर होकर बिदा होने वाले के ओहदे के अनुरूप कोई उपहार पकड़ाकर उसे उसके परिवार के हवाले कर दिया जाता है . पत्नी भी घर पहुंचे पति की आरती उतारती है . दो एक दिनो पहले से रिटायरमेंट के बाद तक रात को होटलो में पार्टियां लेने देने  का दौर होता है . कई बार तो जब बिदाई भाषणो में रिटायर व्यक्ति के गुण सुनने को मिलते हैं तो लगता है कि क्या यह उसी आदमी के विषय में बोला जा रहा है , जिस खडूस को हम इतने  दिनो से झेल रहे थे . खैर परिवर्तन प्रकृति का नियम है , एक के जाते ही दूसरा आ जाता है . नये अफसर का स्वागत होता है . अखबारो में विज्ञप्तियां छपती हैं जिनमें नये प्रभारी  मुस्कराती फोटो के साथ अपनी कार्य शैली और लक्ष्य उद्घोषित करते हैं .
 कुछ इसी तरह तीस जून को एक्साईज और सर्विस टैक्स , एंट्री टैक्स वगैरह भी रिटायर हो गये . दोनो देश और राज्यो के कमाऊ पुत्र थे .केवल सरकारो के ही नही , एक्साईज और सर्विस टैक्स से जुड़े छोटे बड़े अफसरों , और वकीलो की भी तिजोरी भरने में इन्होंने कहीं कोई कमी नही छोड़ी .सफेद को काला बनाने में इन टैक्सो का योगदान याद किया जाता रहेगा .  एक जुलाई रात बारह बजे समारोह पूर्वक इनकी जगह आम जनता का कर मुंडन करने जी एस टी ने प्रभार ले लिया है . सरकार की पौ बारह है , ऐसा माना जा रहा है.  मुझे तो उन पत्नियो की चिंता हो रही है , जिनकी शादी ही उनके पिताजी ने अच्छे खासे प्रोफेसर का रिश्ता ठुकराकर एक्साईज इंस्पेक्टर से कर दी थी . बेचारे इंस्पेक्टर साहब जगह जगह सेमीनार करते हुये लोगो में नये गुड्स एन्ड सर्विस टैक्स के लिये एक्सैप्टिबिलिटी का वातावरण बनाते घूम रहे हैं . वकील , चार्टेड एकाउंटेंट जी एस टी के  लूप होल तलाश रहे हैं . चांदी तो साफ्टवेयर बनाने और बेचने वालों की है , बौद्धिक संपदा की वैल्यू की ही जानी चाहिये .
 जैसे रिटायर होते अफसर पर पुरानी फाइलो को निपटाने का प्रैशर होता है , कुछ उसी तरह जगह जगह प्री जीएसटी सेल लगीं . स्टाक क्लियेरेंस के लिये औने पौने दामो चीजें बेंची गईं . नया अफसर पहले माहौल समझता है तब काम शुरू होता है , इसी तरह जी एस टी लग तो गया है पर अभी  समझा समझी का दौर है .
 जीएसटी पूरी तरह कम्प्यूटरी कृत व्यवस्था है . मतलब साफ है कि यदि अगला विश्वयुद्ध लड़ा जायेगा तो वह साइबर युद्ध होगा . किसी भी देश के मुख्य सर्वर्स के हार्डवेयर्स डिस्ट्राय कर दिये जायें , या उस देश का इंटरनेट क्रेश कर दिया जाये , कम्प्यूटर्स हैक कर लिये जायें , साफ्टवेयर्स में वायरस डाल दिये जायें तो देशो की व्यवस्थायें चकनाचूर होते देर नहीं लगेगी . खैर अच्छा अच्छा सोचना चाहिये . यह तो मैने केवल इसलिये लिख दिया कि बाद में मत कहना कि बताया नही था .
 जीएसटी को समझाने के लिये व्हाट्सअप ज्ञानियो ने तरह तरह के मैसेज किये ,  वित्त मंत्री ने कहा कि जीएसटी प्रणाली में गरीब और अमीर एक दर से कर देंगे , मैसेज आया , सुपर मार्केट में चीज़ें सस्ती होगी, मोहल्ले की परचून की दुकान, यहाँ तक कि पटरी वाले की चीज़ें भी महँगी होगी , सुपर मार्केट वाले इनपुट क्रेडिट का भरपूर लाभ लेंगे, परचूनिया कुछ नहीं ले पायेगा . मानो  गरीब सुपर मार्केट में नहीं जाते . एक मेसेज आया कि  शादी से पहले देर रात लौटने पर घर पर हरेक को जबाब देना होता था , पर शादी के बाद केवल पत्नी को जबाब देना पड़ता है , कुछ इसी तरह जी एस टी में केवल एक बिंदु पर टैक्स देना होगा . एक मैसेज आया कि जीएसटी में नमक पर टेक्स नही है , इसलिये सत्ता और विरोधी राजनीति एक दूसरे पर खूब नमक छिड़क रहे हैं . एक और मैसेज मिला कि जीएसटी में सस्ते हुये सामानो के लिये सरकार समर्थक फलाना चैनल देखिये , और महंगे हुये सामानो के लिये फलाना चैनल . खैर मैसेज तो बहुत से आप के पास भी आये होंगे , एक आखिरी मैसेज  शेयर कर रहा हूं ,जिससे आप जीएसटी को अच्छी तरह समझ सकें .  टीचर ने पूछा एक आम के पेड़ पर १२ केले लगे हैं , उनमें से ७ अमरूद तोड़ लिये गये तो बताओ कितने चीकू बचे ? छात्र ने उत्तर दिया सर ८ पपीते . शिक्षक ने कहा अरे वाह तुम्हें कैसे पता ? छात्र ने उत्तर दिया सर क्योकि मैं आज पराठे खाकर आया हूं . मारेल आफ दि स्टोरी यह है कि हमें रोज ब्रश करना चाहिये वरना जीएसटी की दरें  बढ़ सकती है .तो सारा देश जीएसटी को समझने में लगा है , आप भी समझिये . पर एक्साईज और सर्विस टैक्स के सुनहरे युग को मत भूलियेगा .