#व्यंग
नैनो में बदरा , नदियो में बाढ़
विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
जहाँ पानी में जीवन सृजित करने की क्षमता होती है वहीं यह विनाशकारी भी होता है . पानी मतलब जीवन की संभावना , इसीलिये दूसरे गृहो में भी वैज्ञानिक सबसे पहले पानी की ही तलाश करते दीखते हैं . प्रायः धर्मो में पानी का प्रतीकात्मक महत्व है . पौराणिक आख्यानो में ॠषि मुनियो को अंजुरी भर पानी छींटकर बड़े बड़े श्राप या वरदान देने वाले वृतांत आपने जरूर पढ़े या सुने होंगे . सृष्टि का प्रारंभ ही अपार , अथाह जलराशि की परिकल्पना है . ब्रम्हाण्ड की संरचना और जीवन का आधार भूत तत्व पानी ही है . यही नहीं सृजन के विपरीत सृष्टि के महाविनाश की कल्पना भी महासागरीय जल प्लावन ही है . दुनिया की सारी सभ्यतायें नदियो के तटो पर ही विकसित हुईं हैं .
दुनिया में बढ़ती आबादी को जीवनोपयोगी पानी की समुचित आपूर्ति भविष्य की एक बड़ी वैश्विक चुनौती है . तीसरे विश्व युद्ध की परिकल्पनाओ में यह भी कहा जाता है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिये ही लड़ा जायेगा . जब से मैने यह पढ़ा है , मै जब जब अपने यहां तटबंध तोड़ती नदियो से आई बाढ़ के पानी की विभीषिका देखता हूं ,पानी के लिये होते तीसरे विश्व युद्ध की कल्पना कर स्वयं को सांत्वना दे लेता हूं .मुझे अपने देश के बाढ़ पीड़ित रामू ,कालू वगैरह सफेद चोले में सर से पैर तक ढ़के मुंदे ,तेल के कुंओ पर इतराते आज के अरब शेखों से दिखने लगते है .कल्पना कीजीये हमारी सरकार के एक इशारे पर पानी से भरे विशाल गुब्बारो का रुख अमेरिका की ओर से वापस कही और मोड़ा जा सकता है , इसलिये अमेरिकन राष्ट्रपति हमारे प्रधानमंत्री से जब तब मिलने लालायित रहे , पाकिस्तान अपने आतंकवादियो को कुछ क्युसेक पानी के बदले काश्मीर से वापस बुलाने की पेशकश करता दिखे , या चीन हूं हां हाउं करते हुये डोकलांग पर केवल इसलिये कब्जा जमाना चाहता हो कि उसे ब्रम्हपुत्र की बाढ़ का पानी मिल जाये और हम बड़ी उदारता से बीजिंग तक वाटर लाइन डालने का प्रस्ताव रख सकते हों . सोचिये कि वैज्ञानिक अनुसंधान इस दिशा में केंद्रित करने पड़ें कि कैसे निश्चित क्षेत्र में बारम्बार बादलो के फटने और अति वर्षा की प्राकृतिक परिस्थितियां पैदा की जायें . भीषण वर्षा से देश का आर्थिक बजट ही सुधर जाये . वर्षा जल के बहाव के सारे मार्ग धरती के भीतर बने विशालकाय पानी संग्रहण टेंको की ओर मोड़ दिये जाने की बड़ी बड़ी परियोजनायें चल रही हों , विश्व की बड़ी आबादी पीने के पानी के लिये हमारे देश पर ही निर्भर हो तो बताईये ऐसी वैस्विक परिस्थितियो में बाढ़ भी भला क्या बुरी है .
पर फिलहाल तो बाढ़ विभीषिका है , ताण्डवकारी है . बाढ़ से से बचने के लिये नदियो को जोड़ने की परियोजनाओ पर काम होना बाकी है . पर्यावरणीय असंतुलन से कही सूखा तो कही अति वर्षा हो रही है . वैज्ञानिक तकनीकी समाधानो के लिये अनुसंधान कर रहे हैं . विशेषज्ञ बताते हैं कि जल आपदा से बचने हेतु हमें जल उपयोग के अपने आचरण बदलने चाहिये , जल उपयोग में मितव्ययता बरतनी चाहिये . किन्तु वास्तव में हम किस दिशा की ओर अग्रसर हैं ? बोतल बंद पानी बिक रहा है और लोगो की आंखो का पानी मर रहा है , और नदियो की बाढ़ विभिषिक है .
"सावन आया झूम के" ... नैनो में बदरा छाये बिजली सी चमके हाय " ..... "नैना बरसे रिमझिम रिमझिम " ... फिल्मी सैट्स की आर्टिफीशियल बारिश में भले ही इंद्रधनुष की आभा में हीरो ,हीरोइन सफेद गीले वस्त्रो में विलेन के नफरत के सैलाब को पार कर जाते हों पर अति वर्षा से पीड़ित किसानो की आंखों के खून के आंसू कोई पानी नही धो सकता .किसानो की मेहनत पर पानी फेरने वाली बाढ़ ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिसे रोकने के हर संभव उपाय जरूरी हैं ,महज हास्य या व्यंग में बाढ़ को हल्के में अखबार की दिन भर की जिंदगी सा उड़ाया नही जा सकता , बल्कि व्यंग से भी यही संदेश जरूरी है कि हर साल देश की अरबो की संपत्ति का विनाश , बार बार बाढ़ आपदा पर राहत में करोड़ो का आकस्मिक व्यय , विकास हेतु होती बरसो की मेहनत पर पानी फिरने से देश को बचाना है तो बाढ़ नियंत्रण के सर्वागीण प्रयास अनिवार्य हैं .
नैनो में बदरा , नदियो में बाढ़
विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
जहाँ पानी में जीवन सृजित करने की क्षमता होती है वहीं यह विनाशकारी भी होता है . पानी मतलब जीवन की संभावना , इसीलिये दूसरे गृहो में भी वैज्ञानिक सबसे पहले पानी की ही तलाश करते दीखते हैं . प्रायः धर्मो में पानी का प्रतीकात्मक महत्व है . पौराणिक आख्यानो में ॠषि मुनियो को अंजुरी भर पानी छींटकर बड़े बड़े श्राप या वरदान देने वाले वृतांत आपने जरूर पढ़े या सुने होंगे . सृष्टि का प्रारंभ ही अपार , अथाह जलराशि की परिकल्पना है . ब्रम्हाण्ड की संरचना और जीवन का आधार भूत तत्व पानी ही है . यही नहीं सृजन के विपरीत सृष्टि के महाविनाश की कल्पना भी महासागरीय जल प्लावन ही है . दुनिया की सारी सभ्यतायें नदियो के तटो पर ही विकसित हुईं हैं .
दुनिया में बढ़ती आबादी को जीवनोपयोगी पानी की समुचित आपूर्ति भविष्य की एक बड़ी वैश्विक चुनौती है . तीसरे विश्व युद्ध की परिकल्पनाओ में यह भी कहा जाता है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिये ही लड़ा जायेगा . जब से मैने यह पढ़ा है , मै जब जब अपने यहां तटबंध तोड़ती नदियो से आई बाढ़ के पानी की विभीषिका देखता हूं ,पानी के लिये होते तीसरे विश्व युद्ध की कल्पना कर स्वयं को सांत्वना दे लेता हूं .मुझे अपने देश के बाढ़ पीड़ित रामू ,कालू वगैरह सफेद चोले में सर से पैर तक ढ़के मुंदे ,तेल के कुंओ पर इतराते आज के अरब शेखों से दिखने लगते है .कल्पना कीजीये हमारी सरकार के एक इशारे पर पानी से भरे विशाल गुब्बारो का रुख अमेरिका की ओर से वापस कही और मोड़ा जा सकता है , इसलिये अमेरिकन राष्ट्रपति हमारे प्रधानमंत्री से जब तब मिलने लालायित रहे , पाकिस्तान अपने आतंकवादियो को कुछ क्युसेक पानी के बदले काश्मीर से वापस बुलाने की पेशकश करता दिखे , या चीन हूं हां हाउं करते हुये डोकलांग पर केवल इसलिये कब्जा जमाना चाहता हो कि उसे ब्रम्हपुत्र की बाढ़ का पानी मिल जाये और हम बड़ी उदारता से बीजिंग तक वाटर लाइन डालने का प्रस्ताव रख सकते हों . सोचिये कि वैज्ञानिक अनुसंधान इस दिशा में केंद्रित करने पड़ें कि कैसे निश्चित क्षेत्र में बारम्बार बादलो के फटने और अति वर्षा की प्राकृतिक परिस्थितियां पैदा की जायें . भीषण वर्षा से देश का आर्थिक बजट ही सुधर जाये . वर्षा जल के बहाव के सारे मार्ग धरती के भीतर बने विशालकाय पानी संग्रहण टेंको की ओर मोड़ दिये जाने की बड़ी बड़ी परियोजनायें चल रही हों , विश्व की बड़ी आबादी पीने के पानी के लिये हमारे देश पर ही निर्भर हो तो बताईये ऐसी वैस्विक परिस्थितियो में बाढ़ भी भला क्या बुरी है .
पर फिलहाल तो बाढ़ विभीषिका है , ताण्डवकारी है . बाढ़ से से बचने के लिये नदियो को जोड़ने की परियोजनाओ पर काम होना बाकी है . पर्यावरणीय असंतुलन से कही सूखा तो कही अति वर्षा हो रही है . वैज्ञानिक तकनीकी समाधानो के लिये अनुसंधान कर रहे हैं . विशेषज्ञ बताते हैं कि जल आपदा से बचने हेतु हमें जल उपयोग के अपने आचरण बदलने चाहिये , जल उपयोग में मितव्ययता बरतनी चाहिये . किन्तु वास्तव में हम किस दिशा की ओर अग्रसर हैं ? बोतल बंद पानी बिक रहा है और लोगो की आंखो का पानी मर रहा है , और नदियो की बाढ़ विभिषिक है .
"सावन आया झूम के" ... नैनो में बदरा छाये बिजली सी चमके हाय " ..... "नैना बरसे रिमझिम रिमझिम " ... फिल्मी सैट्स की आर्टिफीशियल बारिश में भले ही इंद्रधनुष की आभा में हीरो ,हीरोइन सफेद गीले वस्त्रो में विलेन के नफरत के सैलाब को पार कर जाते हों पर अति वर्षा से पीड़ित किसानो की आंखों के खून के आंसू कोई पानी नही धो सकता .किसानो की मेहनत पर पानी फेरने वाली बाढ़ ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिसे रोकने के हर संभव उपाय जरूरी हैं ,महज हास्य या व्यंग में बाढ़ को हल्के में अखबार की दिन भर की जिंदगी सा उड़ाया नही जा सकता , बल्कि व्यंग से भी यही संदेश जरूरी है कि हर साल देश की अरबो की संपत्ति का विनाश , बार बार बाढ़ आपदा पर राहत में करोड़ो का आकस्मिक व्यय , विकास हेतु होती बरसो की मेहनत पर पानी फिरने से देश को बचाना है तो बाढ़ नियंत्रण के सर्वागीण प्रयास अनिवार्य हैं .
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कैसा लगा ..! जानकर प्रसन्नता होगी !