व्यंग
बरसात और ब्रेकिंग न्यूज
विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
vivekranjan.vinamra@gmail.com
टी वी समाचार जगत को उस अज्ञात महान पत्रकार का सदैव आभारी होना चाहिये जिसने "ब्रेकिंग न्यूज" जैसी महत्वपूर्ण शब्दावली का सर्वप्रथम प्रयोग किया . चैनल कोई भी हो दस पांच मिनट में ब्रेकिंग न्यूज दिखाये बिना मानता ही नहीं . दूरदर्शन जैसा धीर गंभीर चैनल भी जो कभी " एक आवश्यक उद्घोषणा " के लिये तैयार रहने की हिदायत दिया करता था अब ब्रेकिंग न्यूज दिखाने लगा है . सच्ची ब्रेकिंग न्यूज सालो में कभी कभार ही ब्रेक हो सकती है . ब्रेकिंग न्यूज का मतलब होता है अनायास घटी घटना की सूचना . जैसे ओसामाबिन लादेन ने ट्विन टावर तोड़े थे या अमेरिका ने लादेन को पाकिस्तान में घुसकर मार डाला था . भला हो मोदी जी का जिन्होने नोट बंदी की घोषणा करके वास्तव में ब्रेकिंग न्यूज बनाई थी . उस रात उन्होने न्यूज ही नही कईयो का बहुत कुछ ब्रेक कर दिया था . पर समाचार चैनलो की पारस्परिक प्रतिस्पर्धा ने ब्रेकिंग न्यूज जैसे सनसनी खेज मसले को भी इस हद तक डायलूट कर दिया है कि कल बरसात के मौसम में भी बम्बई में बारिश ब्रेकिंग न्यूज के रूप में दिखाई जा रही थी . और तो और मौसम वैज्ञानिक से चर्चा के अगले प्रसारण की सूचना भी ब्रेकिंग न्यूज की लाल रंग की पट्टी के साथ रनिंग डिस्प्ले में चलाई जा रही थी .
तमाम सेटेलाइट से प्राप्त सूचनाओ के कंप्यूटराइज्ड विश्लेषण के बाद भी मौसम विभाग का गणित भगवान इंद्र के गणित से ज्यादा तेज नही हो पाया है , इसलिये मई के महीने से शुरू ब्रेकिंग न्यूज कि मानसून समय पर आयेगा , औसत से ज्यादा बारिश होगी , वगैरह बिना सच हुये ही ब्रेक हो जाते हैं .कृषि प्रधान भारत में कहीं किसान मेंढ़क मेंढ़की की शादी रचाते हैं , कहीं निर्वस्त्र महिला हल लेकर गांव की परिक्रमा करती है , चाय की गुमटियो पर कम वर्षा के लिये मुखिया मंत्री जी के आचरण पर चर्चाये होती हैं , क्योकि प्रजा का मानना है कि राजा के व्यवहार का प्रभाव जनता पर पड़ता है . गनीमत है कि मंत्री जी अपने भाषणो में वर्षा की कमी या बाढ़ के लिये वनो के संरक्षण , पर्यावरण , पेड लगाने पर ही बोलते हैं विपक्ष पर दोषारोपण नही करते . मंत्री जी के भाषण ब्रेकिंग न्यूज बनते हैं . बरसात हो न हो , हर बार वर्षा ॠतु में वृक्षारोपण समारोह होते हैं . माननीय जन प्रतिनिधियो और बड़े अधिकारियो की पौधा लगाते हुये अधिकार पूर्वक फोटो खिंचती है .पौधे बचें न बचें ये और बात है , पर इस बहाने नई पीढ़ी को हरियाली का महत्व समझने का पूरा मौका मिलता है . बाय प्राडक्ट के रूप में ब्रेकिंग न्यूज बनती है सो अलग .
एक और बात मेरी समझ से परे है , सुबह उठते ही जब मैं टी वी चलाता हूं , कोई भी चैनल लगा लूं हर चैनल में लगभग समान समय में पहले भक्ति , फिर व्यायाम और फिर भविष्यफल दिखाया जाता है . यहां तक कि विज्ञापनो के ब्रेक का भी वही समय होता है , चैनल बदलने का कोई लाभ नही होता . केवल चेहरे अलग होते हैं , आधारभूत सामग्री वही होती है . हर चैनल युवा एंकर लडकियो और अपने अपने विशेषज्ञो के साथ लगातार बार बार लगभग एक सा ब्रेकिंग न्यूज दिखा रहा होता है . जिसे मिनट दो मिनट आगे या पीछे एक्सक्लुजिव कवरेज क्लेम करता है .
दोपहर जब मैं लंच पर घर आता हूं तो मन करता है कि किसी चैनल पर कोई नया ताजा समाचार मिल जाये पर मजाल है कि मैं रिमोट से चैनल बदल कर अपने मिशन में कामयाब हो सकूं , वह समय होता जब सारे देश को आने वाले टी वी सीरियल्स और फिल्मो , छोटे और बड़े पर्दे के कलाकारो के व्यक्तिगत किस्सो के ब्रेकिंग न्यूज मिलते जुलते नामो वाले कार्यक्रमों के अंतर्गत देखना बेहद जरुरी होता है . शाम जब आफिस से लौटो तो गर्म नाश्ता मिले न मिले पर हर चैनल पर सामयिक मुद्दे पर लाइव गर्मा गरम बहस हो रही होती है . टी आर पी की तलाश में जुटे चैनल्स यदि अपने मौलिक शिड्यूल भी बना लें तो शायद मेरे जैसे दर्शक रिमोट से उन तक पहुंचने में कोई लाभ देखें .
बरसात और ब्रेकिंग न्यूज
विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
vivekranjan.vinamra@gmail.com
टी वी समाचार जगत को उस अज्ञात महान पत्रकार का सदैव आभारी होना चाहिये जिसने "ब्रेकिंग न्यूज" जैसी महत्वपूर्ण शब्दावली का सर्वप्रथम प्रयोग किया . चैनल कोई भी हो दस पांच मिनट में ब्रेकिंग न्यूज दिखाये बिना मानता ही नहीं . दूरदर्शन जैसा धीर गंभीर चैनल भी जो कभी " एक आवश्यक उद्घोषणा " के लिये तैयार रहने की हिदायत दिया करता था अब ब्रेकिंग न्यूज दिखाने लगा है . सच्ची ब्रेकिंग न्यूज सालो में कभी कभार ही ब्रेक हो सकती है . ब्रेकिंग न्यूज का मतलब होता है अनायास घटी घटना की सूचना . जैसे ओसामाबिन लादेन ने ट्विन टावर तोड़े थे या अमेरिका ने लादेन को पाकिस्तान में घुसकर मार डाला था . भला हो मोदी जी का जिन्होने नोट बंदी की घोषणा करके वास्तव में ब्रेकिंग न्यूज बनाई थी . उस रात उन्होने न्यूज ही नही कईयो का बहुत कुछ ब्रेक कर दिया था . पर समाचार चैनलो की पारस्परिक प्रतिस्पर्धा ने ब्रेकिंग न्यूज जैसे सनसनी खेज मसले को भी इस हद तक डायलूट कर दिया है कि कल बरसात के मौसम में भी बम्बई में बारिश ब्रेकिंग न्यूज के रूप में दिखाई जा रही थी . और तो और मौसम वैज्ञानिक से चर्चा के अगले प्रसारण की सूचना भी ब्रेकिंग न्यूज की लाल रंग की पट्टी के साथ रनिंग डिस्प्ले में चलाई जा रही थी .
तमाम सेटेलाइट से प्राप्त सूचनाओ के कंप्यूटराइज्ड विश्लेषण के बाद भी मौसम विभाग का गणित भगवान इंद्र के गणित से ज्यादा तेज नही हो पाया है , इसलिये मई के महीने से शुरू ब्रेकिंग न्यूज कि मानसून समय पर आयेगा , औसत से ज्यादा बारिश होगी , वगैरह बिना सच हुये ही ब्रेक हो जाते हैं .कृषि प्रधान भारत में कहीं किसान मेंढ़क मेंढ़की की शादी रचाते हैं , कहीं निर्वस्त्र महिला हल लेकर गांव की परिक्रमा करती है , चाय की गुमटियो पर कम वर्षा के लिये मुखिया मंत्री जी के आचरण पर चर्चाये होती हैं , क्योकि प्रजा का मानना है कि राजा के व्यवहार का प्रभाव जनता पर पड़ता है . गनीमत है कि मंत्री जी अपने भाषणो में वर्षा की कमी या बाढ़ के लिये वनो के संरक्षण , पर्यावरण , पेड लगाने पर ही बोलते हैं विपक्ष पर दोषारोपण नही करते . मंत्री जी के भाषण ब्रेकिंग न्यूज बनते हैं . बरसात हो न हो , हर बार वर्षा ॠतु में वृक्षारोपण समारोह होते हैं . माननीय जन प्रतिनिधियो और बड़े अधिकारियो की पौधा लगाते हुये अधिकार पूर्वक फोटो खिंचती है .पौधे बचें न बचें ये और बात है , पर इस बहाने नई पीढ़ी को हरियाली का महत्व समझने का पूरा मौका मिलता है . बाय प्राडक्ट के रूप में ब्रेकिंग न्यूज बनती है सो अलग .
एक और बात मेरी समझ से परे है , सुबह उठते ही जब मैं टी वी चलाता हूं , कोई भी चैनल लगा लूं हर चैनल में लगभग समान समय में पहले भक्ति , फिर व्यायाम और फिर भविष्यफल दिखाया जाता है . यहां तक कि विज्ञापनो के ब्रेक का भी वही समय होता है , चैनल बदलने का कोई लाभ नही होता . केवल चेहरे अलग होते हैं , आधारभूत सामग्री वही होती है . हर चैनल युवा एंकर लडकियो और अपने अपने विशेषज्ञो के साथ लगातार बार बार लगभग एक सा ब्रेकिंग न्यूज दिखा रहा होता है . जिसे मिनट दो मिनट आगे या पीछे एक्सक्लुजिव कवरेज क्लेम करता है .
दोपहर जब मैं लंच पर घर आता हूं तो मन करता है कि किसी चैनल पर कोई नया ताजा समाचार मिल जाये पर मजाल है कि मैं रिमोट से चैनल बदल कर अपने मिशन में कामयाब हो सकूं , वह समय होता जब सारे देश को आने वाले टी वी सीरियल्स और फिल्मो , छोटे और बड़े पर्दे के कलाकारो के व्यक्तिगत किस्सो के ब्रेकिंग न्यूज मिलते जुलते नामो वाले कार्यक्रमों के अंतर्गत देखना बेहद जरुरी होता है . शाम जब आफिस से लौटो तो गर्म नाश्ता मिले न मिले पर हर चैनल पर सामयिक मुद्दे पर लाइव गर्मा गरम बहस हो रही होती है . टी आर पी की तलाश में जुटे चैनल्स यदि अपने मौलिक शिड्यूल भी बना लें तो शायद मेरे जैसे दर्शक रिमोट से उन तक पहुंचने में कोई लाभ देखें .
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कैसा लगा ..! जानकर प्रसन्नता होगी !