Friday, May 9, 2008

"भगवान कृष्ण का अपहरण"


व्यंग
००
"भगवान कृष्ण का अपहरण"

विवेक रंजन श्रीवास्तव
सी - 6 , एम.पी.ई.बी.कालोनी
रामपुर, जबलपुर ४८२००८ (भारत)

मोबा. ०९४२५४८४४५२
ई मेल vivekranjan.vinamra@gmail.com


हाईजैकिंग का जमाना है . जिसकी लाठी उसकी भैँस . मै चिल्लाता रह ही गया " मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई" ..और भगवान कृष्ण जो वैश्विक हैं , वे इन दिनों मेरे मोहल्ले के यादव समाज के द्वारा धर लिये गये . अंग्रेजी माध्यम के इस प्रगतिशील जमाने में भगवान कृष्ण बलदाऊ , मानो के.बी.यादव के रूप में मेरे दूधवाले और उसके समाज के द्वारा अपृहत हो रहे हैं ! खूब चीर हरण किया था लल्ला जी ने अपने जमाने में . अब खुद ही धरा गये . मुझे पता तो तब चला जब मैने देखा कि एक रिक्शे पर मेरे कन्हैया का बड़ा सा चित्र लगाये लम्बे चौड़े बैनर लिये लालू जी और यादव समाज की जय का नारा लगाते हुये , बैंड बाजे के साथ नाचते , मेरा दूध वाला और अनेक लोग सड़क पर रैली की शकल में मिले . शहर में , मुझ जैसे शांति प्रिय नागरिक को ऐसी सामाजिक रैलियों के द्वारा वर्गों , उपवर्गों के वोट बैंक , उनकी परस्पर एकता का समय समय पर आभास करवाया ही जाता रहता है . मै चाहे एम्बुलेंस में ही क्यों न पड़ा होऊँ , किनारे खड़े होकर रैली के गुजर जाने में ही अपनी और शहर की शाँति व्यवस्था की भलाई समझता हूँ . क्योंकि मेरे शहर को याद है कि पिछली बार मिलादुन्नबी के ऐसे ही एक शक्ति प्रदर्शक जुलूस में , जुलूस रोककर फायर ब्रिगेड की गाड़ी निकलवाने वाले इंस्पैक्टर का स्थानान्तरण करना पड़ा था प्रशासन को ,शहर की शाँति व्यवस्था बनाये रखने के लिये .क्योंकि उनका देश भक्ति जनसेवा का यह कृत्य जुलूस को तितर बितर करने की साजिश माना गया था , एक अल्पसँख्यक लीडर के द्वारा . अतः जो जैसा कर रहा है उसे वैसा करने दो ,जो हो रहा है उसे होने दो , और बाद में शब्दों के मुलम्में चढ़ाकर "अनेकता में एकता" जैसी घोषणाओं पर गर्व करने में ही समझदारी दिखती है . आखिर भगवान कृष्ण के कहे को हम कब समझेंगे , कहा तो है न कि तू साथ क्या लाया था ? तू साथ क्या ले जायेगा ? इसलिये मैं इन दिनों भगवान कृष्ण को के.बी.यादव बनते देख रहा हूँ . सामान्यतः लघुता से विस्तार होता है . अनुयायियों की सँख्या दिन दूनी रात चौगुनी होती जाती है . पर मेरे कृष्ण ने तो सदा से अपनी ही चलाई है , उनके विश्व व्यापी स्वरूप से , वापस दूधवाले उन्हें अपने डब्बे में समेटना चाहते हैं . गो पालक की जगह अब डेरी मालिक जर्सी भैंसों के मालिक हैं , वे दूध घी बनाने के नये नये अनुसंधान कार्यों में भी निमग्न हैं . कभी कभी यूरिया से कृत्रिम दूध बनाने , चर्बी से घी बनाने की नवोन्मेषी खबरे मीडिया में आती रहती हैं , और इन खबरों से व्यापारिक नुकसान न हो ,समाज के अध्यक्ष की एक पुकार पर दूध , दही के दाम बढ़ सकें , सारे यादवी वोट विधायक जी की हार जीत तय कर सकें ,आरक्षण की पुरजोर माँग से यादवों का विकास हो, इस सबके लिये जरूरी है कि यादव समाज में एकता बनी रहे . इस एकता के लिये समाज के पास एक ब्राँड एम्बेसडर होना ही चाहिये . लिविंग लीजेंड तो हैं ही लालू जी . एक आइडियल भी तो जरूरी है , सो इस पुण्य कार्य के लिये यदि मेरे लार्ड कृष्णा को वे के.बी.यादव के रूप में रिक्शे पर प्रतिष्ठित करना चाहते हैं तो भला इसमें किसी को आपत्ति क्यों हो ? कृष्ण जो स्वयं राजनीति के गुरू थे उनके नाम पर हो रही इस छोटी सी राजनीति को स्वीकार कर आइये हम भी एक जयकारा लगाये "भगवान कृष्ण उर्फ के.बी.यादव की जय", और इसे भी लीलाधर की लीला मानकर जो हो रहा जैसा हो रहा है होने दें .

विवेक रंजन श्रीवास्तव