कृति चर्चा .. मिली भ
गत
हास्य व्यंग्य का वैश्विक संकलन
संपादक - विवेक रंजन श्रीवास्तव
मूल्यः 400 रू हार्ड बाउंड संस्करण , पृष्ठ संख्या 256
प्रकाशक: रवीना प्रकाशन, दिल्ली-110094
फोन- 8700774571,७०००३७५७९८
तार सप्तक संपादित संयुक्त संकलन साहित्य जगत में बहु चर्चित रहा है . सहयोगी अनेक संकलन अनेक विधाओ में आये हैं , किन्तु मिली भगत इस दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है कि इसमें संपादक श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव के वैस्विक संबंधो के चलते सारी दुनिया के अनेक देशो से व्यंग्यकारो ने हिस्सेदारी की है .संपादकीय में वे लिखते हैं कि “व्यंग्य विसंगतियो पर भाषाई प्रहार से समाज को सही राह पर चलाये रखने के लिये शब्दो के जरिये वर्षो से किये जा रहे प्रयास की एक सुस्थापित विधा है “ .यद्यपि व्यंग्य अभिव्यक्ति की शाश्वत विधा है , संस्कृत में भी व्यंग्य मिलता है , प्राचीन कवियो में कबीर की प्रायः रचनाओ में व्यंग्य है ,यह कटाक्ष किसी का मजाक उड़ाने या उपहास करने के लिए नहीं, बल्कि उसे सही मार्ग दिखाने के लिए ही होता है . कबीर का व्यंग्य करुणा से उपजा है, अक्खड़ता उसकी ढाल है. हास्य और व्यंग्य में एक सूक्ष्म अंतर है , जहां हास्य लोगो को गुदगुदाकर छोड़ देता है वहीं व्यंग्य हमें सोचने पर विवश करता है . व्यंग्य के कटाक्ष पाठक को तिलमिलाकर रख देते हैं . व्यंग्य लेखक के , संवेदनशील और करुण हृदय के असंतोष की प्रतिक्रिया के रूप में उत्पन्न होता है . शायद व्यंग्य , उन्ही तानो और कटाक्ष का साहित्यिक रचना स्वरूप है , जिसके प्रयोग से सदियो से सासें नई बहू को अपने घर परिवार के संस्कार और नियम कायदे सिखाती आई हैं और नई नवेली बहू को अपने परिवार में स्थाई रूप से घुलमिल जाने के हित चिंतन के लिये तात्कालिक रूप से बहू की नजरो में स्वयं बुरी कहलाने के लिये भी तैयार रहती हैं . कालेज में होने वाले सकारात्मक मिलन समारोह जिनमें नये छात्रो का पुराने छात्रो द्वारा परिचय लिया जाता है , भी कुछ कुछ व्यंग्य , छींटाकशी , हास्य के पुट से जन्मी मिली जुली भावना से नये छात्रो की झिझक मिटाने की परिपाटी रही है और जिसका विकृत रूप अब रेगिंग बन गया है .
प्रायः अनेक समसामयिक विषयो पर लिखे गये व्यंग्य लेख अल्प जीवी होते हैं , क्योकि किसी घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में लिखा गया व्यंग्य ,अखबार में फटाफट छपता है , पाठक को प्रभावित करता है , गुदगुदाता है , थोड़ा हंसाता है , कुछ सोचने पर विवश करता है , जिस पर व्यंग्य किया जाता है वह थोड़ा कसमसाता है पर अपने बचाव के लिये वह कोई अच्छा सा बहाना या किसी भारी भरकम शब्द का घूंघट गढ़ ही लेता है , जैसे प्रायः नेता जी आत्मा की आवाज से किया गया कार्य या व्यापक जन कल्याण में लिया गया निर्णय बताकर अपने काले को सफेद बताने के यत्न करते दिखते हैं . . अखबार के साथ ही व्यंग्य भी रद्दी में बदल जाता है . उस पर पुरानेपन की छाप लग जाती है . किन्तु पुस्तक के रूप में व्यंग्य संग्रह के लिये अनिवार्यता यह होती है कि विषय ऐसे हों जिनका महत्व शाश्वत न भी हो तो अपेक्षाकृत दीर्घकालिक हो . मिली भगत ऐसे ही विषयो पर दुनिया भर से अनेक व्यंग्यकारो की करिश्माई कलम का कमाल है .
संग्रह में अकारादि क्रम में लेखको को पिरोया गया है . कुल ४३ लेकको के व्यंग्य शामिल हैं .
अभिमन्यु जैन की रचना बारात के बहाने मजेदार तंज है उनकी दूसरी रचना अभिनंदन में उन्होने साहित्य जगत में इन दिनो चल रहे स्व सम्ंमान पर गहरा कटाक्ष किया है . अनिल अयान श्रीवास्तव नये लेखक हैं , देश भक्ति का सीजन और खुदे शहरों में “खुदा“ को याद करें लेख उनकी हास्य का पुट लिये हुई शैली को प्रदर्शित करती है . अलंकार रस्तोगी बड़ा स्थापित नाम है . उन्हें हम जगह जगह पढ़ते रहते हैं साहित्य उत्त्थान का शर्तिया इलाज तथा एक मुठभेड़ विसंगति से में रस्तोगी जी ने हर वाक्य में गहरे पंच किये हैं . अरुण अर्णव खरे वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं , वे स्वयं भी संपादन का कार्य कर चुके हैं , उनकी कई किताबें प्रकाशित हैं बच्चों की गलती थानेदार और जीवन राम तथा बुजुर्ग वेलेंटाईन , उनकी दोनो हीरचनायें गंभीर व्यंग्य हैं . इंजी अवधेश कुमार ’अवध’ पेशे से इंजीनियर हैं पप्पू - गप्पू वर्सेस संता - बंता एवं सफाई अभिनय समसामयिक प्रभावी कटाक्ष हैं .डॉ अमृता शुक्ला के व्यंग्य कार की वापसी व बिन पानी सब सून पठनीय हैं . बसंत कुमार शर्मा रेल्वे के अधिकारी हैं वजन नही है और नालियाँ व्यंग्य उनके अपने परिवेश को अवलोकन कर लिखने की कला के साक्षी हैं . ब्रजेश कानूनगो वरिष्ठ सुस्थापित व्यंग्यकार हैं . उनके दोनो ही लेख उपन्यास लिख रहे हैं वे तथा वैकल्पिक व्यवस्था मंजे हुये लेखन के प्रमाण हैं , जिन्हें पढ़ना गुनना मजेदार तो है ही साथ ही व्यंग्य क
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हास्य व्यंग्य का वैश्विक संकलन
संपादक - विवेक रंजन श्रीवास्तव
मूल्यः 400 रू हार्ड बाउंड संस्करण , पृष्ठ संख्या 256
प्रकाशक: रवीना प्रकाशन, दिल्ली-110094
फोन- 8700774571,७०००३७५७९८
तार सप्तक संपादित संयुक्त संकलन साहित्य जगत में बहु चर्चित रहा है . सहयोगी अनेक संकलन अनेक विधाओ में आये हैं , किन्तु मिली भगत इस दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है कि इसमें संपादक श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव के वैस्विक संबंधो के चलते सारी दुनिया के अनेक देशो से व्यंग्यकारो ने हिस्सेदारी की है .संपादकीय में वे लिखते हैं कि “व्यंग्य विसंगतियो पर भाषाई प्रहार से समाज को सही राह पर चलाये रखने के लिये शब्दो के जरिये वर्षो से किये जा रहे प्रयास की एक सुस्थापित विधा है “ .यद्यपि व्यंग्य अभिव्यक्ति की शाश्वत विधा है , संस्कृत में भी व्यंग्य मिलता है , प्राचीन कवियो में कबीर की प्रायः रचनाओ में व्यंग्य है ,यह कटाक्ष किसी का मजाक उड़ाने या उपहास करने के लिए नहीं, बल्कि उसे सही मार्ग दिखाने के लिए ही होता है . कबीर का व्यंग्य करुणा से उपजा है, अक्खड़ता उसकी ढाल है. हास्य और व्यंग्य में एक सूक्ष्म अंतर है , जहां हास्य लोगो को गुदगुदाकर छोड़ देता है वहीं व्यंग्य हमें सोचने पर विवश करता है . व्यंग्य के कटाक्ष पाठक को तिलमिलाकर रख देते हैं . व्यंग्य लेखक के , संवेदनशील और करुण हृदय के असंतोष की प्रतिक्रिया के रूप में उत्पन्न होता है . शायद व्यंग्य , उन्ही तानो और कटाक्ष का साहित्यिक रचना स्वरूप है , जिसके प्रयोग से सदियो से सासें नई बहू को अपने घर परिवार के संस्कार और नियम कायदे सिखाती आई हैं और नई नवेली बहू को अपने परिवार में स्थाई रूप से घुलमिल जाने के हित चिंतन के लिये तात्कालिक रूप से बहू की नजरो में स्वयं बुरी कहलाने के लिये भी तैयार रहती हैं . कालेज में होने वाले सकारात्मक मिलन समारोह जिनमें नये छात्रो का पुराने छात्रो द्वारा परिचय लिया जाता है , भी कुछ कुछ व्यंग्य , छींटाकशी , हास्य के पुट से जन्मी मिली जुली भावना से नये छात्रो की झिझक मिटाने की परिपाटी रही है और जिसका विकृत रूप अब रेगिंग बन गया है .
प्रायः अनेक समसामयिक विषयो पर लिखे गये व्यंग्य लेख अल्प जीवी होते हैं , क्योकि किसी घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में लिखा गया व्यंग्य ,अखबार में फटाफट छपता है , पाठक को प्रभावित करता है , गुदगुदाता है , थोड़ा हंसाता है , कुछ सोचने पर विवश करता है , जिस पर व्यंग्य किया जाता है वह थोड़ा कसमसाता है पर अपने बचाव के लिये वह कोई अच्छा सा बहाना या किसी भारी भरकम शब्द का घूंघट गढ़ ही लेता है , जैसे प्रायः नेता जी आत्मा की आवाज से किया गया कार्य या व्यापक जन कल्याण में लिया गया निर्णय बताकर अपने काले को सफेद बताने के यत्न करते दिखते हैं . . अखबार के साथ ही व्यंग्य भी रद्दी में बदल जाता है . उस पर पुरानेपन की छाप लग जाती है . किन्तु पुस्तक के रूप में व्यंग्य संग्रह के लिये अनिवार्यता यह होती है कि विषय ऐसे हों जिनका महत्व शाश्वत न भी हो तो अपेक्षाकृत दीर्घकालिक हो . मिली भगत ऐसे ही विषयो पर दुनिया भर से अनेक व्यंग्यकारो की करिश्माई कलम का कमाल है .
संग्रह में अकारादि क्रम में लेखको को पिरोया गया है . कुल ४३ लेकको के व्यंग्य शामिल हैं .
अभिमन्यु जैन की रचना बारात के बहाने मजेदार तंज है उनकी दूसरी रचना अभिनंदन में उन्होने साहित्य जगत में इन दिनो चल रहे स्व सम्ंमान पर गहरा कटाक्ष किया है . अनिल अयान श्रीवास्तव नये लेखक हैं , देश भक्ति का सीजन और खुदे शहरों में “खुदा“ को याद करें लेख उनकी हास्य का पुट लिये हुई शैली को प्रदर्शित करती है . अलंकार रस्तोगी बड़ा स्थापित नाम है . उन्हें हम जगह जगह पढ़ते रहते हैं साहित्य उत्त्थान का शर्तिया इलाज तथा एक मुठभेड़ विसंगति से में रस्तोगी जी ने हर वाक्य में गहरे पंच किये हैं . अरुण अर्णव खरे वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं , वे स्वयं भी संपादन का कार्य कर चुके हैं , उनकी कई किताबें प्रकाशित हैं बच्चों की गलती थानेदार और जीवन राम तथा बुजुर्ग वेलेंटाईन , उनकी दोनो हीरचनायें गंभीर व्यंग्य हैं . इंजी अवधेश कुमार ’अवध’ पेशे से इंजीनियर हैं पप्पू - गप्पू वर्सेस संता - बंता एवं सफाई अभिनय समसामयिक प्रभावी कटाक्ष हैं .डॉ अमृता शुक्ला के व्यंग्य कार की वापसी व बिन पानी सब सून पठनीय हैं . बसंत कुमार शर्मा रेल्वे के अधिकारी हैं वजन नही है और नालियाँ व्यंग्य उनके अपने परिवेश को अवलोकन कर लिखने की कला के साक्षी हैं . ब्रजेश कानूनगो वरिष्ठ सुस्थापित व्यंग्यकार हैं . उनके दोनो ही लेख उपन्यास लिख रहे हैं वे तथा वैकल्पिक व्यवस्था मंजे हुये लेखन के प्रमाण हैं , जिन्हें पढ़ना गुनना मजेदार तो है ही साथ ही व्यंग्य क
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कैसा लगा ..! जानकर प्रसन्नता होगी !