Thursday, November 29, 2007

हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और


हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और
इंजी. विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त अधीक्छण इंजी. सर्तकता
म.प्र.राज्य विद्युत मण्डल , जबलपुर

फोन ०७६१ २७०२०८१ ,
मोबाइल ९१ ९४२५१६३९५२
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आज जब मैं अखबार पढ़ रहा था तो मुझे लगा कि जीव विज्ञान के शाश्वत सिद्धान्त के आधार पर बनी भाषा विज्ञान की यह कहावत कि हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और समय के साथ संशोधन योग्य है ! आजकल दाँत केवल खाने और दिखाने मात्र के ही नहीं होते ! हमारे राजनेताओ के विरोधियों को काटने वाले दाँत दिखते तो नहीं पर सदा सक्रिय रहते हैं ! इन नेताओं की बडे ओहदो पर सुप्रतिष्ठित प्रतिष्ठित अधिकारियों के खींसे निपोरकर चाटुकारिता करने वाले दाँत भी आपने जरूर देखे ही होंगे ! मुस्कराकर बडी से बडी बात टाल जाने वाले पालिश्ड दाँतों की आज बडी डिमाँड है ! विज्ञापन प्रिया के खिलखिलाते दाँत हर पत्र पत्रिका की शोभा होते हैं जिस में उलझकर आम उपभोक्ता पता नही क्या क्या खरीद डालता है ! हमारे नेता दिखाने के सिर्फ दो और खाने के बत्तीस पर जाने कितने ही दाँत अपने पेट मे संग्रह कर छिपाये घूम रहे हैं ! जिनकी खोज में विरोधी दल इनकम टैक्स डिपार्टमेंट सी बी आई वगैरह लगे ही रहते हैं ! बेचारे हाथी के तो दो दो दाँतों के व्यापार में ही वीरप्पन ने जंगलों मे अपनी जिंदगी गुजार दी सरकारें हिल गई वीरप्पन के दाँत खट्टे करने के प्रयासों में ! दाँत पीस पीस कर रह गईं पर उसे जिंदा पकड नही पाई !
माँ बताती थीं कि जिसके पुरे बत्तीस दाँत होते हैं उसका कहा सदा सच होता है मुझे आज किसी का कहा सच होते नहीं दिखता इससे मेरा अनुमान है कि भले ही लोगों के दिखने वाले दाँत बत्तीस ही हों पर कुछ न कुछ दांत वे अवश्य ही छिपाये रहते होंगे ! कुथ कहना कुछअलग सोचना और उस सबसे अलग कुछ और ही करना कुशल राजनीतिज्ञ की पहली पहचान है !
सांप का तो केवल एक ही दाँत विषग्रंथि लिये हुये होता है पर मुझे तो अपने प्रत्येक दाँत में एक नये ही तरह का जहर दीखता है ! आप की आप जाने !
चूहा अपने पैने दाँतों के लिये प्रसिद्ध है ! वह कुतरने के लिये निपुण माना जाता है ! पर थोडा सा अपने चारों तरफ नजर भर कर देखिये तो सही आप पायेंगे कि हर कोई व्यवस्था को कुतरने में ही लगा हुआ है ! बेचारी ग्रहणियां महीने के आखीर में कुतरी हुई चिंधियों को जोड कर ग्रहस्थी की गाडी चलाये जा रहीं हैं !
शाइनिंग टीथ के लिये विभिन्न तरह के टुथपेस्ट इस वैश्विक बाजार ने सुलभ करा दिये हैं ! माँ बाप बच्चों को सोने से पहले और जागने के साथ ही आर्कषक टुथ ब्रश पर तरोताजा रखने वाला तुथ पेस्ट लगाकर मुँह साफ करने की नैतिक एवं स्वास्थ्य शिक्षा देते हैं पर पीलापन बढ़ता ही जाता है ! नये नये डेंटल कालेज खुल रहे हैं जिनमें वैद्य अवैद्य तरीकों से एद्मीशन पाने को बच्चे लालायित हैं !



एक चीनी संत ने अपने आखिरी समय में शिष्यों को बुलाकर अपना मुँह दिखा कर पूछा कि क्यों जीभ बाकी है पर दाँत गिर गये हैं जबकि दाँत बाद में आये थे जीभ तो आजन्म थी और मृत्युपर्यंत रहती है ! शिष्य निरुत्तर रह गये ! तब संत ने शिक्षा दी कि दाँत अपनी कठोरता के चलते गिर जाते हैं पर जीभ मृदुता के कारण बनी रहती है ! मुझे लगता है कि यह शाश्वत शिक्षा जितनी प्रासंगिक तब थी आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है ! आइये अपने दाँतों का पैना पन कुछ कम करें और दंतदंश उतना ही करें जितना प्रेमी युगल परस्पर करता है !

इंजी. विवेक रंजन श्रीवास्तव

Thursday, November 8, 2007

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Tuesday, June 5, 2007

पिछडे हुऐ होने का सुख


व्यंग
पिछडे हुऐ होने का सुख

विवेक रंजन श्रीवास्तव
विवेक सदन , नर्मदा गंज , मण्डला
म.प्र. भारत पिन ४८१६६१
फोन ०७६४२ २५००६८ ,
मोबाइल ९१ ९४२५१६३९५२
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कछुऐ और खरगोश की दौड मेँ जीतते हुऐ भी खरगोश हार गया था ! हमारे बुजुर्गोँ ने कहानी का मारेल निकाला कि स्लो ऍड स्टडी विन्स द रेस ! पर बदलते परिवेश मेँ कहानी को नये तरीके से समझने की जरूरत है ! दरअसल खरगोश की हार मेँ पिछडे हुऐ होने का सुख छिपा है ! आरक्छन , अनुदान , अनुकम्पा , सेम्पेथी , छूट , लाभ , सरकारी सुविधायेँ , ये सब पिछडे हुऐ होने पर ही नसीब हो सकती हैँ !
आजीवन हम सब आगे होने के लिये सँघर्षरत रह अपने मन की शाँति खो देते हैँ ! सदैव हम प्रथम , अग्रिम बने रहने मेँ ही बडप्पन मानते आये हैँ ! पर इससे मानसिक अशाँति , आपाधापी , असँतोष के सिवा हमेँ क्या मिला ? गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है , जो पाये सँतोष धन सब धन धूरि समान ! पर हम विमूढ़ आगे आने की बेवजह दौड मेँ लगे रहते हैँ ! निश्चिँत जीवन जीना हो तो पिछडकर देखिये ! लोगों को पसीना बहाते , भागमभाग करते परेशानहाल देखकर मन ही मन हँसिये , पीछे रहिये ! फिर यथा आवश्यकता पिछडे होने का ट्रम्पकार्ड प्रयोग कर आरक्छन की लिफ्ट में सवार हो सबसे ऊपर पहुंचकर माखन की हांडी से माखन चट कीजीये और पुनः चतुर खरगोश की तरह पिछड जाइये !
पिछडे हुऐ होने के इसी सुख की तलाश में आज सारे देश में विभिन्न जातियों के लोग समय समय पर एक जुट होकर फर्राटे दार अंग्रेजी में स्वयं को पिछडा , गिरा हुआ , दलित , घोषित करवाने के लिये पुरजोर प्रयास कर रहे हैं ! ऐसे सभी लोगों को , जो एक जुट होकर रेलें रोक रहे हैं , बसें जला रहे हैं , पुलिस थाने तोड फोड रहे हैं , जो खरगोश की ही तरह पिछड गये हैं , मेरा व्यंगकार सादर प्रणाम करता है ! पिछडे हुऐ होने के सुख की तलाश में लगे इन समस्त लोगों की माँगों का मैं समर्थन करता हूँ !
एक मेरे जैसे कछुये किस्म के इंसान की नियुक्ति सैनिक के रूप में हुई ! प्लातून कमांडर ने उसे अंतिम लाइन में कोने में खडा कर दिया ! जीवन में सदैव अग्रणी रहे उस व्यक्ति को यह बडा ही अपमानजनक लगा ! मार्च पास्ट के समस्त नियमों को दरकिनार कर वह स्लो ऍड स्टडी आगे बढता गया , अंततः वह प्रथम पंक्ति में पहुंच गया ! वह गर्व से मुस्करा रहा था ! पर तभी प्लातून कमांडर ने एबाउट टर्न का आदेश दे दिया , और वह बेचारा पुनः अंतिम पंक्ति में आ गया ! इस कहानी का मारेल यह है कि गांधी की लास्ट लाइन के आदमी को अंतिम पंक्ति में होने का सुख उठाना चाहिए न कि व्यर्थ ही आगे बढ़ने के प्रयत्न करने चाहिये ! मेरा व्यक्तिगत सुझाव तो यह है कि उसे पीछे से आगे चल रहे लोगों पर कंकड मारकर मजे लेना चाहिये, उनकी टागें खीचना चाहिये ! बीच बीच में रुक कर ,रूठ कर अपनी इर्म्पोटेंस जतानी चाहिये ! क्योंकि यह सर्वमान्य सत्य है कि समाज के सर्वांगणी विकास को कृत संकल्पित हमारी सरकार पिछडे हुये की हर बात मानेगी , वह रूठेगा तो उसे मनायेगी , पर हर हाल में सबको साथ लेकर ही चलेगी ! सच तो यह है कि हर प्लातून में अग्रिम पंक्ति में तो मात्र तीन ही व्यक्ति होते हैं ! बाकी सब तो पिछडे हुये ही होते हैं ! मतलब बहुमत पिछडे हुओं का होता है , जो सरकारें बनाते हैं ! छक्का मारने के लिये बैक फुट पर खेलना जरुरी होता है !
मेरा सुझाव है कि पिछडेपन को बढ़ावा देने के लिये धीमी चाल प्रतियोगिता ,स्लो साइकलिंग रेस जैसी प्रतियोगिताओं को राष्र्टीय खेलों के रूप में मान्यता दी जानी चाहिये ! इसके लिये हमें एकजुट होकर आंदोलन करना चाहिये , रेल की पटरियां उखाड फेंकनी चाहिये , बसें जला देने से डरना नहीं चाहिये , पुलिस पर पत्थर बरसाने चाहिए ! ये ही वे खेल हैं जो पिछडेपन का महत्व प्रतिपादित करते हैं ! जो सबसे पीछे रहता है वह जीतता है ! कितना मजा आता है स्लो साइकलिंग,करते हुये लोग गिरते हैं ब्रेक लगा लगा कर आडा टेढ़ा चलते हैं ! जो सबसे पीछे रहता है उसके लिये तालियां बजती हैं ! अजगर करे न चाकरी , पंछी करे न काम , दास मलूका कह गये सबके दाता राम ! इन खेलों से हमारी युवा पीढ़ी पिछडेपन का महत्व समझ कर अंर्तराष्र्टीय स्तर पर भारत का नाम रोशन कर सकेगी ! दुनियां के विकसित देश हमसे प्रतिस्पर्धा करने की अपेक्छा अपने चेरिटी मिशन से हमें अनुदान देंगे ! बिना उपजाये ही हमें विदेशी अन्न खाने मिलेगा ! वसुधैव कुटुम्बकम् का हवाला देकर हम अन्य देशों के संसाधनों पर अपना अधिकार प्रदर्शित कर सकेंगे ! दुनिया हमसे डरेगी , क्योंकि नंगे से तो खुदा भी डरता है ! हम यू. एन. ओ. में सेंटर आफ अट्रेक्शन होंगे ! हमारे पिछडे हुये देश को ऊपर उठाने के लिये विश्वव्यापी चर्चायें होंगी ! कोई विकसित देश हमें गोद लेगा !
आपने अमरबेल देखी है ? यह जड रहित पर जीवी वनस्पती है ! पर है अमर ! यह अन्य वृछ जिस पर यह आश्रित होती है , उसका ही रस खींचकर जीवित रहती है ! इसे हमारी राष्र्टीय वनस्पती घोषित किया जाना चाहिये ! इसी तरह जोंक ,पिस्सू व खटमळ को उनके परजीवी होने के कारण विशेष महत्व दिया जाना चाहिये ! पिछडे हुये होने पर परजीवी जैसा सुख नसीब होता है ! आरक्छन की बैसाखियों पर , टैक्स देने वालों की कुर्सियों पर काबिज होने का असाधारण मजा लेना हो तो पिछडे ,दलित , पतित बनिये ! शायद यही कारण है कि आज हर कोई चारित्रिक स्तर पर नीचे गिरने के नये नये प्रतिमान बनाता नजर आ रहा है ! लोग अपनी ही नजरों में गिर रहे हैं !
मेरा अभिमत है कि समाज के प्रत्येक वर्ग को अनुसंधान कर स्वयं को सबसे ज्यादा पिछडा सिद्ध करने के लिये तथ्य जुटा कर ठीक चुनावों से पहले अभूतपूर्व आंदोलन कर दलित ,पतित , पिछडा , अनुसूचित , जनजातीय वगैरह घोषित करवा लेना चाहिये ! इससे न केवल इस जन्म में सुविधायें मिलेंगी , वरन अगला जन्म भी सफल होगा क्योंकि परमात्मा दीनबंधु होता है , दीन हीन , मलिन , अस्तित्वहीन , दर्प रहित बनकर तो देखिये ईश्वर स्वयं आयेंगे आपसे मिलने !
विवेक रंजन श्रीवास्तव
विवेक सदन , नर्मदा गंज , मण्डला
म.प्र. भारत पिन ४८१६६१