Tuesday, December 29, 2009

इसकी टोपी उसके सिर

इसकी टोपी उसके सिर

बचपन में हमने नकलची बंदर की कहानी पढ़ी थी, उस कहानी में बंदर इतने होशियार थे, कि उन्होनें टोपी बेचने वाले की गठरी से निकाल कर, टोपियां पहन ली थीं, और फिर जब टोपी वाले की नींद खुली तो उसने, बंदरो से टोपियां वापस प्राप्त करने के लिये, अपने सिर की टोपी निकाल कर जमीन में फेंक दी, नकलची बंदरो ने भी अपनी अपनी टोपियां जमीन पर फेंक दी, जिन्हें टोपीवाले ने समेट लिया और चला गया । मुझे मास्साब के बहुत समझाने पर भी इस कहानी का ``मारेल´´ आज तक समझ नहीं आया। मैं यही सोचता रहा हंू कि तब के बंदर भी कितने इज्जतदार प्रतिष्ठा स्थापित करने की धुन थी, समय बदला है, अब लोगों ने टोपी लगाना ही छोड़ दिया हैं, कहॉं तो टोपी लगाकर लोग अपना सिर ढॉंकते घूमते थे, और कहॉं अब अंर्तवस्त्र तक उतार फेंकने पर उतारू है। विरोध प्रदशZन के लिये स्त्रियां तक नग्नता की सीमाओं से आगे निकलकर दौड़ लगा रही है। प्रगतिशील जमाना है, अब टोपी पहनाने का अर्थ ही बदल गया है। किसी को मुगाZ बनाना या शुद्ध शब्दों में कहें तो बेवकूफ बनाना, टोपी पहनाने का अर्थ बन गया है।
वैसे सच कहें तो उधार लेकर जीने वाले, इसकी टोपी उसके सिर रखने के मामले में शुरू होते है, ऋण कृत्वा घृंत पिवेत के सुकुन में जीना भी एक कला है, जिसका नवीनतम संस्करण क्रेडिट कार्ड है, ऋण लीजिये, आनंद करिये, उसे जमा करने के लिये, उससे भी बड़ा ऋण लीजिये, किश्तों में थोड़ा थोड़ा कर, कुछ जमा कीजिये, कुछ माफ करवाईये, कुछ सिब्सडी पाइये, इसकी टोपी उसके सिर रखते चलिये, ग्रोइंग इकानामी है, सबके टर्नओवर बढ़ने दीजिये। बीवी बच्चों की नई नई फरमाईश पूरी करने के लिये एअर कंडीशन्ड बड़े बड़े माल्स में घूमिये, फिरिये, प्लास्टिक मनी से क्रेडिट-डेबिड करिये, इसकी टोपी उसे, और उसकी टोपी किसी और को पहनाने की कुशलता यदि आपमें है, तो आप बिंदास रहिये, चार दिन की जिदंगी है, फिक्र से क्या फायदा र्षोर्षो
मैं एक रेस्टरां में गया, वहॉं एक अद्भुत नोटिस पढ़ा, लिखा हुआ था, ``जितना चाहे उतना खाईये, बिल हम आपके पुत्र से ले लेगें´´ इतने लंबे बिना ब्याज के उधार से कौन खुश न होगा र्षोर्षो मुझे भी बड़ी प्रसन्नता हुई, मैने भरपूर भोजन किया और हाथ पोंछकर खुशी से निकल रहा था, कि तभी वेटर एक बिल लेकर आया । मुझे बड़ा गुस्सा आया और मेैने मैनेजर से प्रवेश द्वार पर लिखी सूचना का हवाला दिया, मैनेजर ने विनम्रता से कहा सर, यह आपका नहीं, आपके पिताजी का बिल है।
वैसे इस जेब का पैसा उस जेब में रखने और अपने ऑंकड़ो में प्राफिट दर्ज करने में सरकारी महकमों का कोई मुकाबला नहीं है। वित्तीय वर्ष के अंत में हर सरकारी मुहकमें अपनी बैलेंस शीट की चिंता सताती है, तब होशियार एक्जीक्यूटिव एक विभाग का मद दूसरे में, इस होशियारी से करते है, कि आडिट भी चकमा खा जाता है। मोबाईल, टेलीफोन, बिजली, पानी, प्रापर्टी वगैरह के सरकारी भुगतान प्राय: इसलिये बारीकी से मिलान नहीं किये जाते कि कम्प्यूटराइज्ड बिल में गलती कहॉं होगी र्षोर्षो टैक्स, सरचार्ज, एडमिनिस्ट्रेटिव चार्जेज, फ्यूल कास्ट, कमर्शियल टैक्स, सर्विस टैक्स, इनकम टैक्स, वगैरह वगैरह सुंदर सुंदर टर्मिनालाजी का इस्तेमाल कर इसकी टोपी उसके सिर रख दी जाती है। सबकी बैलेंस शीट सुधर जाती है। कभी किसी मेरे जैसे मीन मेख निकालने वाले ने कुछ पकड़ भी लिया तो प्रोग्रामिंग इरर का बहाना मुंंह छिपाने के लिये पर्याप्त होता हैं
खैर ! अपनी तो प्रभु से यही प्रार्थना है कि इसकी टोपी उसके सिर भले ही रखी जावे, पर कभी किसी की पगड़ी किसी के पैरो में रखने की नोैबत न आवे !



विवेकरंजन श्रीवास्तव

Sunday, December 13, 2009

जरूरत है एक कंपनी की जो कार बनाने वाली कंपनियो से कार का चैसिस खरीदे और फिर ले आपसे आर्डर , आपकी कार को कस्टमाइज करने का ...

नवाचार का स्वागत ....
हम सब अपनी कार को करते हैं प्यार ..
कही लग जाये थोड़ी सी खरोंच तो हो जाते हैं उदास ..
मित्रो से , पड़ोसियों से , परिवार जनो से करते हैं कार को लेकर ढ़ेर सी बात ...
केवल लक्जरी नही है , अब जरूरत ... है कार
घर की दीवारो पर हम करवाते हैं मनपसंद रंग , , अब तो वालपेपर या प्रंटेड दीवारो का है फैशन ..
फिर क्यो? कार पर हो वही एक रंग का , रटा पिटा कंपनी का कलर , क्यों न हो हमारी कार युनिक??जिसे देखते ही झलके हमारी अपनी अभिव्यक्ति , विशिष्ट पहचान हो हमारी अपनी कार की ...
कार के भीतर भी ,
कार में बिताते हैं हम जाने कितना समय
रोज फार्म हाउस से शहर की ओर आना जाना , या घंटो सड़को के जाम में फंसे रहना ..
कार में बिताया हुआ समय प्रायः हमारा होता है सिर्फ हमारा
तब उठते हैं मन में विचार , पनपती है कविता
हम क्यों न रखे कार का इंटीरियर मन मुताबिक ,क्यों न उपयोग हो एक एक क्युबिक सेंटीमीटर भीतरी जगह का हमारी मनमर्जी से ..
क्यो कंपनी की एक ही स्टाइल की बेंच नुमा सीटें फिट हो हमारी कार में .. जो प्रायः खाली पड़ी रहे , और हम अकेले बोर होते हुये सिकुड़े से बैठे रहें ड्राइवर के डाइगोनल ..
क्या अच्छा हो कि हमारी कार के भीतर हमारी इच्छा के अनुरूप सोफा हो , राइटिंग टेबल हो , संगीत हो , टीवी हो , कम्प्यूटर हो ,कमर सीधी करने लायक व्यवस्था हो , चाय शाय हो , शेविंग का सामान हो , एक छोटी सी अलमारी हो , वार्डरोब हो कम से कम दो एक टाई , एक दो शर्ट हों ..ड्राइवर और हमारे बीच एक पर्दा हो ..
बहुत कुछ हो सकता है ....
बस जरूरत है एक कंपनी की जो कार बनाने वाली कंपनियो से कार का चैसिस खरीदे और फिर ले आपसे आर्डर , आपकी कार को कस्टमाइज करने का ...

यही तो है मेरा आइडिया , क्या मुझसे सहमत है आप ???
इस विचार को मैने जमा किया है www.wagonrsmartideas.com में
आपसे है गुजारिश कि कृपया http://www.wagonrsmartideas.com/index.php?option=com_comprofiler&task=userProfile&user=1417 पर क्लिक करके मुझे अपना अनमोल मत जरूर दें ....और करे नवाचार का स्वागत ....

आपका
विवेक रंजन श्रीवास्तव