
बिजली बैरन भई
ज्यादा नहीं कोई पचास सौ बरस पुरानी बात है, तब आज की तरह घर-घर बिजली नहीं थी, कितना आनंद था। उन दिनों डिनर नहीं होता था, ब्यारी होती थी। शाम होते ही लोग घरों में लौट आते थे। संध्या पूजन वगैरह करते थे, खाना खाते थे। गांव - चौपाल में लोक गीत, रामायण भजन आदि गाये जाते थे। िढबरी, लालटेन या बहुत हुआ तो पैट्रोमैक्स के प्रकाष में सारे आयोजन होते थे। दिया बत्ती करते ही लोग जय राम जी की करते थे। राजा महाराओं के यहां झाड़ फानूस से रोषनी जरूर होती थी। और उसमें नाच गाने का रास रंग होता था, महफिलें सजती थी। लोग मच्छरदानी लगा कर चैन की नींद लेते थे और भोर भये मुगोZ की बांग के साथ उठ जाते थे, बिस्तर गोल और खटिया आड़ी कर दी जाती थी।
फिर आई ये बैरन बिजली, जिसने सारी जीवन शैली ही बदल कर रख दी। अब तो जैसे दिन वैसी रात। रात होती ही नहीं, तो तामसी वृत्तियां दिन पर हावी होती जा रही है। शुरू-षुरू में तो बिजली केवल रोषनी के लिए ही उपयोग में आती थी, फिर उसका उपयोग सुख साधनों को चलाने में होने लगा, ठंडक के लिये घड़े की जगह िफ्रज और कूलर, पंखे, एण्सीण् न ले ली। गमीZ के लिये वाटर हीटर, रूम हीटर उपलब्ध हो गए। धोबी की जगह वाषिंग मषीन लग गई । जनता के लिये श्लील-अष्लील चैनल लिये चौबीसो घंटे चलने वाला टीण्वी, सीण्डीण् वगैरह हाजिर है। कम्प्यूटर युग है। घड़ी में रोज सुबह चाबी देनी पड़ती थी, वह बात तो आज के बच्चे जानते भी नहीं आज जीवन के लिये हवा पानी सूरज की रोषनी की तरह बिजली अनिवार्य बन चुकी है। कुछ राजनेताओं ने खुले हाथों बिजली लुटाई, और उसी सब का दुष्परिणाम है कि आज बिजली बैरन बन गई है। बिजली कम है, और उसके चाहने वाले ज्यादा, परिणाम यह है कि वह चाहे जब चली जाती है, और हम अनायास अपंग से बन जाते हैं, सारे काम रूक जाते हैं, इन दिनों बिजली से ज्यादा तेज झटका लगता है- बिजली का बिल देखकर। जिस तरह पुलिस वालों को लेकर लोकोक्तियॉं प्रचलन में है कि पुलिस वालों से दोस्ती अच्छी है न दुष्मनी। ठीक उसी तरह जल्दी ही बिजली विभाग के लोगों के लिए भी कहावतें बन जायेंगी।
बिजली के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि इसे कहीं भरकर नहीं रखा जा सकता, जैसे पानी को टंकी में रखा जा सकता है। किंतु समय ने इसका भी समाधान खोज निकाला है, और जल्दी ही पावर कार्डस हमारे सामने आ जायेंगे। तब इन पावर काड्Zस के जरिये, जहां बिजली का अगि्रम भुगतान हो सकेगा, वही कल के प्रति आष्वस्ति के लिये लोग ठीक उसी तरह ढेरों पावर कार्ड खरीद कर बटोर सकेंगे जैसे आज कई गैस सिलेंडर रखे जाते है। सोचिये ब्लैकनेस को दूर करने वाली बिजली को भी ब्लैक करने का तरीका ढूंढ निकालने वाले ऐसे प्रतिभावान व्यक्तित्व का हमें किस तरह सम्मान करना चाहिए।
बिजली को नाप जोख को लेकर इलैक्ट्रोनिक मीटर की खरीद और उनके लगाये जाने तक, घर-घर से लेकर विधानसभा तक, खूब धमाके हुये। दो कदम आगे, एक कदम पीछे की खूब कदम ताल हुई और जारी है। समवेत स्वर में एक ही आवाज आ रही है। बिजली बैरन भई।
विवेकरंजन श्रीवास्तवब्ण्6ए डण्च्ण्ैण्म्ण्ठण् ब्वसवदल ।कसण् ैनचण् म्दहपदममतए डण्च्ण्ैण्म्ण्ठण् रामपुर, जबलपुर मोण्नंण् 9425484452
ज्यादा नहीं कोई पचास सौ बरस पुरानी बात है, तब आज की तरह घर-घर बिजली नहीं थी, कितना आनंद था। उन दिनों डिनर नहीं होता था, ब्यारी होती थी। शाम होते ही लोग घरों में लौट आते थे। संध्या पूजन वगैरह करते थे, खाना खाते थे। गांव - चौपाल में लोक गीत, रामायण भजन आदि गाये जाते थे। िढबरी, लालटेन या बहुत हुआ तो पैट्रोमैक्स के प्रकाष में सारे आयोजन होते थे। दिया बत्ती करते ही लोग जय राम जी की करते थे। राजा महाराओं के यहां झाड़ फानूस से रोषनी जरूर होती थी। और उसमें नाच गाने का रास रंग होता था, महफिलें सजती थी। लोग मच्छरदानी लगा कर चैन की नींद लेते थे और भोर भये मुगोZ की बांग के साथ उठ जाते थे, बिस्तर गोल और खटिया आड़ी कर दी जाती थी।
फिर आई ये बैरन बिजली, जिसने सारी जीवन शैली ही बदल कर रख दी। अब तो जैसे दिन वैसी रात। रात होती ही नहीं, तो तामसी वृत्तियां दिन पर हावी होती जा रही है। शुरू-षुरू में तो बिजली केवल रोषनी के लिए ही उपयोग में आती थी, फिर उसका उपयोग सुख साधनों को चलाने में होने लगा, ठंडक के लिये घड़े की जगह िफ्रज और कूलर, पंखे, एण्सीण् न ले ली। गमीZ के लिये वाटर हीटर, रूम हीटर उपलब्ध हो गए। धोबी की जगह वाषिंग मषीन लग गई । जनता के लिये श्लील-अष्लील चैनल लिये चौबीसो घंटे चलने वाला टीण्वी, सीण्डीण् वगैरह हाजिर है। कम्प्यूटर युग है। घड़ी में रोज सुबह चाबी देनी पड़ती थी, वह बात तो आज के बच्चे जानते भी नहीं आज जीवन के लिये हवा पानी सूरज की रोषनी की तरह बिजली अनिवार्य बन चुकी है। कुछ राजनेताओं ने खुले हाथों बिजली लुटाई, और उसी सब का दुष्परिणाम है कि आज बिजली बैरन बन गई है। बिजली कम है, और उसके चाहने वाले ज्यादा, परिणाम यह है कि वह चाहे जब चली जाती है, और हम अनायास अपंग से बन जाते हैं, सारे काम रूक जाते हैं, इन दिनों बिजली से ज्यादा तेज झटका लगता है- बिजली का बिल देखकर। जिस तरह पुलिस वालों को लेकर लोकोक्तियॉं प्रचलन में है कि पुलिस वालों से दोस्ती अच्छी है न दुष्मनी। ठीक उसी तरह जल्दी ही बिजली विभाग के लोगों के लिए भी कहावतें बन जायेंगी।
बिजली के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि इसे कहीं भरकर नहीं रखा जा सकता, जैसे पानी को टंकी में रखा जा सकता है। किंतु समय ने इसका भी समाधान खोज निकाला है, और जल्दी ही पावर कार्डस हमारे सामने आ जायेंगे। तब इन पावर काड्Zस के जरिये, जहां बिजली का अगि्रम भुगतान हो सकेगा, वही कल के प्रति आष्वस्ति के लिये लोग ठीक उसी तरह ढेरों पावर कार्ड खरीद कर बटोर सकेंगे जैसे आज कई गैस सिलेंडर रखे जाते है। सोचिये ब्लैकनेस को दूर करने वाली बिजली को भी ब्लैक करने का तरीका ढूंढ निकालने वाले ऐसे प्रतिभावान व्यक्तित्व का हमें किस तरह सम्मान करना चाहिए।
बिजली को नाप जोख को लेकर इलैक्ट्रोनिक मीटर की खरीद और उनके लगाये जाने तक, घर-घर से लेकर विधानसभा तक, खूब धमाके हुये। दो कदम आगे, एक कदम पीछे की खूब कदम ताल हुई और जारी है। समवेत स्वर में एक ही आवाज आ रही है। बिजली बैरन भई।
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wonderful
ReplyDeleteHola:
ReplyDeleteAcabo de ver tu blog.
Espero que visites mis blogs, son fotos de mi pueblo, de España y de Italia y Francia:
http://blog.iespana.es/jfmmzorita
http://blog.iespana.es/jfmm1
http://blog.iespana.es/jfmarcelo
donde encontrarбs los enlaces de todos los blogs.
UN SALUDO DESDE ESPAÑA.
बहुत ही सटीक पोस्ट. आभार
ReplyDeleteदीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
ReplyDeleteरोचक कथ्य, प्रवाहपूर्ण भाषा शैली, पठनीय, बधाई.
ReplyDeleteबहुत उम्दा!!
ReplyDeletebhai maza aa gaya ....
ReplyDeleteअनिल कान्त
मेरा अपना जहान
Gazab maza aa gaya
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