व्यंग
"ॠणं कृत्वा घृतं पिवेत "
विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए १ , विद्युत मण्डल कालोनी , शिला कुन्ज
जबलपुर
मो ९४२५८०६२५२ , vivek1959@yahoo.co.in
आकासवाणी का यह खेती चैनल है . कृषि विश्वविद्यालय से सरमन बोल रहा हूं . "ॠणं कृत्वा घृतं पिवेत ", " संगठन का महत्व " , खेती ही नही आंदोलन और धरने की कला भी , वोट को कैसे बनायें लाभकारी , आत्महत्या क्यो और कैसे ? , फसल का उचित मूल्य पाने के तरीके , जैसे खेती को लेकर कुछ नये विषय पाठ्यक्रम में , जोड़े जा रहे हैं . जल्दी ही उपवास का महत्व , बयान कैसे दें , घोषणा पत्र के वादो से कैसे पलटी मारें वगैरह विषयो को भी सेमीनार के लिये जोड़ा जायेगा . खेती किसानी रही ना पुरानी जमाने के संग संग बढ़ने लगी है .
वो गुजरे जमाने की बातें हो गईं जब कृषि दर्शन देखने के लिये भी दूरदर्शन के श्वेत श्याम पटल पर लोग आंखे गड़ाये रहते थे और एंटीना हिला कर , घुमा कर सिगनल सैट किया करते थे . तब खेत खलिहान के कार्यक्रम में फसलो की बातें होती थीं . चौपाल में लोकभाषा में गीत वगैरह गाये जाते थे . फसल आने पर खुशियो के त्योहार होते थे . तब कृषि विश्वविद्यालयो में उर्वरको के विषय में पढ़ाया जाता था , उन्नत कृषि के विषय में जानकारी दी जाती थी . जमीन को उपजाऊ बनाने के उपायो पर चर्चा होती थी . विदेशी नस्लो के बीजो की बातें होती थीं . पुराने जमाने में हमारे दूध वाले से यदि गंजी में नापते वक्त बूंद दो बूंद दूध जमीन पर गिर जाता था तो वह उसे अपने हाथो से पोंछकर सिर पर लगा लेता था , इससे उसके मन में गोरस के प्रति अपार श्रद्धा का भाव प्रदर्शित होता था .
अब जमाना बदल चुका है . खेती किसानी बैकवर्ड होने जैसी वाली बात ना रही . किसान मेले लगते हैं . किसानो के दल देश विदेश नई खेती सीखने के लिये यात्रा पर जाते हैं , धार्मिक पर्यटन भ्रमण के सरकारी आयोजन होते हैं . किसानो की मुस्कराती तस्वीरें खिंचती हैं सरकारी पत्रिकाओ के अंकों के कवर पेज बन जाते हैं . सरकार को कृषि कर्मण अवार्ड मिलता है . अब किसान जींस पहनते हैं . नई नई जींस उपजाते हैं .
अब सड़को पर दूध लुढ़काकर , दूधवाले सरकार के प्रति अपना गुस्सा जाहिर करते हैं . मतलब ये कि भारत में दूध की नदियां बहती हैं . किताबो को छोड़कर प्रायः वस्तुओ की कीमत इकानामिक्स का डिमांड और सप्लाई का रूल तय करता है , पर जब किसान को इस नियम से उसकी मर्जी का दाम नहीं मिलता तो उसे गुस्सा आता है . वह सड़को पर आंदोलन करता है . अब किसान संगठित हैं . उनके पीछे अदृश्य राजनैतिक हाथ हैं . अब किसान केवल खेतीहर नहीं रहा वह वोट बैंक है . अब किसान को जीरो प्रतिशत ब्याज पर ॠण मिलता है , नेताओ के रहते ॠण वापस करना किसान को बड़ा अपमानजनक लगता है . किसान आत्महत्या करना पसंद करता है पर "ॠणं कृत्वा घृतं पिवेत " के चार्वाक दर्शन को झुठलाना उसे बिलकुल पसंद नहीं है .
चार्वाक दर्शन के भरोसे ही लोन इकानामी चल रही है ,डाउन पेमेंट की व्यवस्था होते ही ऐसो के दरवाजे पर नई नई फोर व्हीलर नजर आती हैं , किस्त दो किश्त चुकाने के बाद गाड़ी जब्त की जाती है , फिर वह नीलाम होती है . गाड़ी कम्पनी के उत्पादन का आंकड़ा ,विज्ञापन , सेल्स ,फाईनेंस , वसूली वालो को काम जाने कितनो को रोजगार केवल "ॠणं कृत्वा घृतं पिवेत " को मानने वालो के भरोसे मिलता है . सड़क पर जब भी एक्सीडेंट होता है तो जो बड़े वाहन पर सवार होता है , गलती उसकी ही मानी जाती है , लोगो की सारी सेम्पेथी छोटे वाहन मालिक के साथ ही होती है , ठीक कुछ उसी तरह सारे बुद्धिजीवीयो , लेखको , सारे राजनैतिज्ञो , सारे जनमानस , सारे सोशल मीडीया की सेम्पेथी किसान आंदोलनो के समय सरकार के खिलाफ और किसानो के साथ होना बहुत स्वाभाविक है , होना भी चाहिये . किसान हमारे अन्नदाता हैं . सरकार को लगना ही चाहिये कि यदि किसानो का वोट बैंक सरक गया तो , चुनावो में क्या हो सकता है . इसलिये पश्चाताप के आंसू बहाना जरूरी है , उपवास करके मन साफ करना जरूरी है , बैंक खाली होते हों तो हों जायें , इनकम टैक्स देने वाले खत्म थोड़े ही हो गये हैं , लेकिन खेती का ॠण तुरंत माफ किया जाये , जिससे योजना बदलकर , नाम बदलकर अगले ॠणो की स्वीकृति का रास्ता बने . मंत्री जी आश्वस्त रहें कि बड़ा सारा वोट बैंक उनके पास है . बैंक मैनेजर सुसंपन्न होवें . गांवो का विकास हो . किसान खुशहाल होवें , सब सदा सरकार के ॠणी बने रहें .
vivek ranjan shrivastava