Tuesday, June 13, 2017

ऋण कृत्वा घृतं पिबेत


व्यंग 
"ॠणं कृत्वा घृतं पिवेत "

विवेक रंजन  श्रीवास्तव 
ए १ , विद्युत मण्डल कालोनी , शिला कुन्ज
जबलपुर                                                                                                       
मो ९४२५८०६२५२ , vivek1959@yahoo.co.in

आकासवाणी का यह खेती चैनल है . कृषि विश्वविद्यालय से सरमन बोल रहा हूं  . "ॠणं कृत्वा घृतं पिवेत ", " संगठन का महत्व " , खेती ही नही आंदोलन और धरने की कला भी , वोट को कैसे बनायें लाभकारी , आत्महत्या क्यो और कैसे ? , फसल का उचित मूल्य पाने के तरीके , जैसे खेती को लेकर कुछ नये विषय पाठ्यक्रम में , जोड़े जा रहे हैं . जल्दी ही उपवास का महत्व , बयान कैसे दें , घोषणा पत्र के वादो से कैसे पलटी मारें वगैरह विषयो को भी सेमीनार के लिये जोड़ा जायेगा . खेती किसानी रही ना पुरानी जमाने के संग संग बढ़ने लगी है . 
वो गुजरे जमाने की बातें हो गईं जब कृषि दर्शन देखने के लिये भी दूरदर्शन के श्वेत श्याम पटल पर लोग आंखे गड़ाये रहते थे और एंटीना  हिला कर , घुमा कर सिगनल सैट किया करते थे . तब खेत खलिहान के कार्यक्रम में फसलो की बातें होती थीं . चौपाल में लोकभाषा में गीत वगैरह गाये जाते थे . फसल आने पर खुशियो के त्योहार होते थे . तब कृषि विश्वविद्यालयो में उर्वरको के विषय में पढ़ाया जाता था , उन्नत कृषि के विषय में जानकारी दी जाती थी . जमीन को उपजाऊ बनाने के उपायो पर चर्चा होती थी . विदेशी नस्लो के बीजो की बातें होती थीं . पुराने जमाने में हमारे दूध वाले से यदि गंजी में नापते वक्त बूंद दो बूंद दूध जमीन पर गिर जाता था तो वह उसे अपने हाथो से पोंछकर सिर पर लगा लेता था , इससे उसके मन में गोरस के प्रति अपार श्रद्धा का भाव प्रदर्शित होता था . 
अब जमाना बदल चुका है . खेती किसानी बैकवर्ड होने जैसी वाली बात ना रही . किसान मेले लगते हैं . किसानो के दल देश विदेश नई खेती सीखने के लिये यात्रा पर जाते हैं  , धार्मिक पर्यटन भ्रमण के सरकारी आयोजन होते हैं . किसानो की मुस्कराती तस्वीरें खिंचती हैं सरकारी पत्रिकाओ के अंकों के कवर पेज बन जाते हैं . सरकार को कृषि कर्मण अवार्ड मिलता है . अब किसान जींस पहनते हैं . नई नई जींस उपजाते हैं . 
अब सड़को पर दूध लुढ़काकर , दूधवाले सरकार के प्रति अपना गुस्सा जाहिर करते हैं . मतलब ये कि भारत में दूध की नदियां बहती हैं . किताबो को छोड़कर प्रायः वस्तुओ की कीमत इकानामिक्स का डिमांड  और सप्लाई का रूल तय करता है , पर जब किसान को इस नियम से उसकी मर्जी का दाम नहीं मिलता तो उसे गुस्सा आता है . वह सड़को पर आंदोलन करता है . अब किसान संगठित हैं . उनके पीछे अदृश्य राजनैतिक हाथ हैं . अब किसान केवल खेतीहर नहीं रहा वह वोट बैंक है . अब किसान को जीरो प्रतिशत ब्याज पर ‌ॠण मिलता है , नेताओ के रहते ॠण वापस करना किसान को बड़ा अपमानजनक लगता है . किसान  आत्महत्या करना पसंद करता है पर "ॠणं कृत्वा घृतं पिवेत " के चार्वाक दर्शन  को झुठलाना  उसे बिलकुल पसंद नहीं है . 
चार्वाक दर्शन के भरोसे ही लोन इकानामी चल रही है ,डाउन पेमेंट की व्यवस्था होते ही  ऐसो के दरवाजे पर नई नई फोर व्हीलर नजर आती हैं , किस्त दो किश्त चुकाने के बाद गाड़ी जब्त की जाती है , फिर वह नीलाम होती है . गाड़ी कम्पनी के उत्पादन का आंकड़ा  ,विज्ञापन ,  सेल्स ,फाईनेंस , वसूली वालो को काम  जाने कितनो को रोजगार केवल  "ॠणं कृत्वा घृतं पिवेत " को मानने वालो के भरोसे मिलता है . सड़क पर जब भी एक्सीडेंट होता है  तो जो बड़े वाहन पर सवार होता है , गलती उसकी ही मानी जाती है , लोगो की सारी सेम्पेथी छोटे वाहन मालिक के साथ ही होती है , ठीक कुछ उसी तरह सारे बुद्धिजीवीयो , लेखको , सारे राजनैतिज्ञो , सारे जनमानस , सारे सोशल मीडीया की सेम्पेथी किसान आंदोलनो के समय सरकार के खिलाफ और किसानो के साथ होना बहुत स्वाभाविक है , होना भी चाहिये . किसान हमारे अन्नदाता हैं . सरकार को लगना ही चाहिये कि यदि किसानो का वोट बैंक सरक गया तो , चुनावो में क्या हो सकता है . इसलिये पश्चाताप के आंसू बहाना जरूरी है , उपवास करके मन साफ करना जरूरी है , बैंक खाली होते हों तो हों जायें , इनकम टैक्स देने वाले खत्म थोड़े ही हो गये हैं , लेकिन खेती का ॠण तुरंत माफ किया जाये , जिससे योजना बदलकर , नाम बदलकर अगले ॠणो की स्वीकृति का रास्ता बने . मंत्री जी आश्वस्त रहें कि बड़ा सारा वोट बैंक उनके पास है . बैंक मैनेजर सुसंपन्न होवें . गांवो का विकास हो . किसान खुशहाल होवें , सब सदा सरकार के ॠणी बने रहें .
 

vivek ranjan shrivastava

Wednesday, June 7, 2017

फार्मूले टॉपर बनने के


व्यंग 
लल्लन टाप

विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
vivekranjan.vinamra@gmail.com
बंगला नम्बर ऐ १ , विद्युत मंडल कालोनी , शिला कुन्ज , जबलपुर ४८२००८
०९४२५८०६२५२ , ७०००३७५७९८

              "अगर आप समाज का विकास करना चाहते हैं तो आप आईएएस बनकर ही  कर सकते हैं ", यहां समाज का भावार्थ खुद के व अपने  परिवार से होता है , यह बात मुझे अपने सुदीर्घ अनुभव से बहुत लम्बे समय में ज्ञात हो पाई है . 
यदि हर माता पिता , हर बच्चे का सपना सच हो सकता तो भारत की आधी आबादी आई ए एस ही होती ,  कोई भी न मजदूर होता न किसान , न कुछ और बाकी के जो आई ए एस न होते वे सब इंजीनियर , डाक्टर , अफसर ही होते . धैर्य, कड़ी मेहनत , अनुशासन और हिम्मत न हारना , उम्मीद न छोड़ना , परीक्षा की टेंशन से बचना और खुद पर भरोसा रखना , नम्बर के लिये नहीं ज्ञानार्जन के लिये रोज 10 या 20 घंटे पढ़ना जैसे गुण टापर बनाने के सैद्धांतिक तरीके हैं . प्रैक्टिकल तरीको में नकल , पेपर आउट करवा पाने के मुन्नाभाई एमबीबीएस वाले फार्मूले भी अब सेकन्ड जनरेशन के पुराने कम्प्यूटर जैसे पुराने हो चले  हैं .पढ़ाई के साथ साथ  तन , मन , धन से गुरु सेवा भी आपको टापर बनाने में मदद कर सकता है , कहा भी है जो करे सेवा वो पाये मेवा . 
             एक बार एक अंधा व्यक्ति सड़क किनारे खड़ा था . वह राह देख रहा था कि कोई आने जाने वाला उसे सड़क पार करवा दे . इतने में एक व्यक्ति ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा कि कृपया मुझे सड़क पार करवा दें मैं अंधा हूँ . पहले अंधे ने दूसरे को सहारा दिया और चल निकला , दोनो ने सड़क पार कर ली . यह सत्य घटना जार्ज पियानिस्ट के साथ घटी थी . शायद सचमुच भगवान  उन्ही की मदद करता है जो खुद अपनी मदद करने को तैयार होते हैं .मतलब अपने लक को भी कुछ करने का अवसर दें , निगेटिव मार्किंग के बावजूद  सारे सवाल अटैम्प्ट कीजीए  जवाब सही निकले तो बल्ले बल्ले . 
            टापर बनाने के लेटेस्ट  फार्मूले की खोज बिहार में हुई है .कुछ स्कूल अपनी दूकान चलाने के लिये तो कुछ कोचिंग संस्थान अपनी साख बनाने के लिये शर्तिया टाप करवाने की फीस लेते हैं . उनके लल्लन छात्र  भी टाप कर जाते हैं .  नितांत नये आविष्कार हैं . कापी बदलना , टैब्यूलेशन शीट बदलवाना , टाप करने के ठेके के कुछ हिस्से हैं  कुछ नये नुस्खे धीरे धीरे मीडीया को समझ आ रहे हैं . यही कारण है कि बिहार में टापर होने में आजकल बड़े रिस्क हैं जाने कब मीडीया फिर से परीक्षा लेने मुंह में माईक ठूंसने लगे . जिस तेजी से बिहार के टापर्स एक्सपोज हो रहे  है , अब गोपनीय रूप से टाप कराने के तरीको पर खोज का काम बिहार टापर इंडस्ट्री को शुरू करना पड़ेगा .कुछ ऐसी खोज करनी पड़ेगी की कोई टाप ही न करे , सब नेक्सट टु  टाप हों जिससे यदि मीडीया ट्रायल में कुछ न बने तो बहाना तो रहे . या फिर रिजल्ट निकलते ही टापर को गायब करने की व्यवस्था बनानी पड़ेगी , जिससे ये इनटरव्यू वगैरह का बखेड़ा ही न हो .
            एक पाकिस्तानी जनरल को हमेशा टाप पर रहने का जुनून था . वे कभी परेड में भी किसी को अपने से आगे बर्दाश्त नही कर पाते थे . एक बार वे परेड में लास्ट रो में तैनात किये गये , पर वे कहां मानने वाले थे , धक्का मुक्की करते हुये तेज चलते हुये  जैसे तैसे वे सबसे आगे पहुंच ही गये , पर जैसे ही वे फर्स्ट लाईन तक पहुंचे कमांडिंग अफसर ने एबाउट टर्न का काशन दे दिया . और वे बेचारे जैसे थे वाली पोजीशन में आ गये . कुछ यही हालत बिहार के टापर्स की होती दिख रही है .  
            बच्चे के पैदा होते ही उसे टापर बनाने के लिये हमारा समाज एक दौड़ में प्रतियोगी बना देता है .सबसे पहले तो स्वस्थ शिशु प्रतियोगिता में बच्चे के वजन को लेकर ही ट्राफी बंट जाती है ,विजयी बच्चे की माँ फेसबुक पर अपने नौनिहाल की फोटो अपलोड करके निहाल हो जाती है . फिर कुछ बड़े होते ही बच्चे को यदि कुर्सी दौड़ प्रतियोगिता में  चेयर न मिल पाये तो आयोजक पर चीटिंग तक का आरोप लगाने में माता पिता नही झिझकते . स्कूल में यदि बच्चे को एक नम्बर भी कम मिल जाता है तो टीचर की शामत ही आ जाती थी . इसीलिये स्कूलो को मार्किंग सिस्टम ही बदलना पड़ गया . अब नम्बर की जगह ग्रेड दिये जाते हैं . सभी फर्स्ट आ जाते हैं .
              जैसे ही बच्चा थोड़ा बड़ा होता है , उसे इंजीनियर डाक्टर या आई ए एस बनाने की घुट्टी पिलाना हर भारतीय पैरेंट्स की सर्वोच्च प्राथमिकता होती है . इसके लिये कोचिंग , ट्यूशन , टाप करने पर बच्चे को उसके मन पसंद मंहगे मोबाईल , बाईक वगैरह दिलाने के प्रलोभन देने में हर माँ बाप अपनी हैसियत के अनुसार चूकते नहीं हैं . वैसे सच तो यह है कि हर शख्स अपने आप में किसी न किसी विधा में टाप ही होता है , जरूरत है कि  हर किसी को अपनी वह क्वालिटी पहचानने का मौका दिया जाये जिसमें वह टापर हो .  
           





vivek ranjan shrivastava