Tuesday, December 29, 2020

पुस्तक चर्चा अब तक ७५ , श्रेष्ठ व्यंग्य रचनायें


 

पुस्तक चर्चा
अब तक ७५ , श्रेष्ठ व्यंग्य रचनायें
संचयन व संपादन डा लालित्य ललित और डा हरीश कुमार सिंह
पृष्ठ २३६ , मूल्य ३०० रु
इंडिया नेट बुक्स गौतम बुद्ध नगर , दिल्ली
चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव , शिला कुंज , नयागांव ,जबलपुर ४८२००८

लाकडाउन अप्रत्याशित अभूतपूर्व घटना थी . सब हतप्रभ थे . किंकर्त्व्यविमूढ़ थे . कहते हैं यदि हिम्मत न हारें तो जब एक खिड़की बंद होती है तो कई दरवाजे खुल जाते हैं . लाकडाउन से जहां एक ओर रचनाकारो को समय मिला , वैचारिक स्फूर्ति मिली वहीं उसे अभिव्यक्त करने के लिये इंटरनेट के सहारे सारी दुनियां का विशाल कैनवास मिला . डा लालित्य ललित वह नाम है जो अकेले बढ़ने की जगह अपने समकालीन मित्रो को साथ लेकर दौड़ना जानते हैं . वे सक्रिय व्यंग्यकारो का एक व्हाट्सअप समूह चला रहे हैं . देश परदेश के सैकड़ो व्यंग्यकार इस समूह में उनके सहगामी हैं . इस समूह ने अभिनव आयोजन शुरू किये . प्रतिदिन एक रचनाकार द्वारा नियत समय पर एक व्यंग्यकार की नयी रचना की वीडीयो रिकार्डिंग पोस्त की जाने लगी . उत्सुकता से हर दिन लोग नयी रचना की प्रतीक्षा करने लगे , सबको लिखने , सुनने , टिप्पणिया करने में आनंद आने लगा . यह आयोजन ३ महीने तक अविराम चलता रहा . रचनायें उत्कृष्ट थी . तय हुआ कि क्यो न लाकडाउन की इस उपलब्धि को किताब का स्थाई स्वरूप दिया जाये , क्योंकि मल्टी मीडिया के इस युग में भी किताबों का महत्व यथावत बना हुआ है . ललित जी की अगुआई में हरीश जी ने सारी पढ़ी गई रचनायें संग्रहित की गईं , वांछित संपादन किया गया . इस किताब में स्थान पाना व्यंग्यकारो में प्रतिष्ठा प्रश्न बन गया . इ्डिया नेटबु्क्स ने प्रकाशन भार संभाला , निर्धारित समय पर महाकाल की नगरी उज्जैन में भव्य आयोजन में विमोचन भी संपन्न हुआ . देश भर के समाचारो में किताब बहुचर्चित रही .
अब तक पचहत्तर में अकारादि क्रम में अजय अनुरागी की रचना लॉकडाउन में फंसे रहना , अजय जोशी की छपाक लो एक और आ गया,  अतुल चतुर्वेदी की कैरियर है तो जहान है,  अनीता यादव की रचना ऑनलाइन कवि सम्मेलन के साइड इफेक्ट , अनिला चाड़क की रचना करोना का रोना , अनुराग बाजपाई की रचना प्रश्न प्रदेश बनाम उत्तर प्रदेश , अमित श्रीवास्तव की भैया जी ऑनलाइन , अरविंद तिवारी की खुद मुख्तारी के दिन , अरुण अरुण खरे की रचना साब का मूड ,  अलका अग्रवाल नोट नोटा और लोटा , अशोक अग्रोही की रचना करोना के सच्चे योद्धा , अशोक व्यास चुप बहस चालू है , आत्माराम भाटी सपने में कोरोना ,आशीष दशोत्तर संक्रमित समय और नाक का सवाल , मेरी राजनीतिक समझ कमलेश पांडे , मेरा अभिनंदन कुंदन सिंह परिहार , 21वीं सदी का ट्वेंटी ट्वेंटी  केपी सक्सेना दूसरे , मैं तो पति परमेश्वर हूं जी गुरमीत बेदी , नाम में क्या रखा है चन्द्रकान्ता , चीन की लुगाई हमार गांव आई जय प्रकाश पांडे ,  अगले जन्म मोहे खंबानी कीजो जवाहर चौधरी , बाप रे इतना बुरा था आदमी टीका राम साहू , टथोफ्रोबिया  दिलीप तेतरवे , जाने पहचाने चेहरे दीपा गुप्ता शामिल हैं .
कहानी कान की देवकिशन पुरोहित , हे कोरोना कब तक रोएं तेरा रोना देवेंद्र जोशी , पिंजरा बंद आदमी और खुले में टहलते जानवर निर्मल गुप्त , टांय टांय फिस्स नीरज दैया , हिंदी साहित्य का नया वाद कोरोनावाद पिलकेंद्र अरोड़ा , बहुमत की बकरी प्रभात गोस्वामी , स्थानांतरण मस्तिष्क का प्रमोद तांबट , सुन बे रक्तचाप प्रेम जनमेजय , यस बास प्रेमविज , सेवानिवृति का संक्रमण काल बल्देव त्रिपाठी , मन के खुले कपाट बुलाकी शर्मा , मेरा स्कूल ब्युटीफुल भरत चंदानी , जी की बात मलय जैन , आवश्यकता गरीब बस्ती की मीनू अरोड़ा , हिंदी साहित्य की मदद मुकेश नेमा , श्रद्धांजलि की ब्रेकिंग न्यूज़ मुकेश राठौर , छबि की हत्या मृदुल कश्यप , और सपने को सिर पर लादे चल पड़ा रामखेलावन गांव की ओर रण विजय राव , यमलोक में सन्नाटा रतन जेसवानी , चालान रमाकांत ताम्रकार , छूमंतर काली कंतर रमेश सैनी , बुरी नजर वाले रवि शर्मा मधुप ,  झक्की मथुरा प्रसाद रश्मि चौधरी , डरना मना है राकेश अचल , करोना से मरो ना राजशेखर चौबे,  वाह री किस्मत राजेंद्र नागर ,  स्वच्छ भारत राजेश कुमार,  लॉकडाउन में आत्मकथा लिखने का टाइम रामविलास जांगिड़,  पांडेय जी बन बैठे जिलाधिकारी गाजियाबाद लालित्य ललित , कोरोना वायरस वर्षा रावल के लेख हैं
फॉर्मेट करना पड़ेगा वायरस वाला 2020 विवेक रंजन श्रीवास्तव , आई एम अनमैरिड वीणा सिंग , सरकार से सरकार तक वेद प्रकाश भारद्वाज , रतन झटपट आ और करोड़पति बन वेद माथुर , दीपिका आलिया और मेरी मजबूरी शरद उपाध्याय , नैनं छिद्यन्ति शस्त्राणि श्याम सखा श्याम , करोना तुम कब जाओगे संजय जोशी , टीपूजी से कपेजी संजय पुरोहित , अंगुलीमाल का अहिंसा का नया फंडा संजीव निगम , मैडम करुणा की प्रेस कान्फ्रेंस संदीप सृजन,  हमाई मजबूरी जो है समीक्षा तैलंग , तस्वीर बदलनी चाहिये  सुदर्शन वशिष्ठ , रुपया और करोना सुधर केवलिया , लॉकडाउन के घर में सुनीता शानू , मन लागा यार फकीरी में सुनील सक्सेना , तुम क्या जानो पीर पराई सुषमा राजनीति व्यास, लाकडाउन में तफरी सूरत ठाकुर , भाया बजाते रहो स्वाति श्वेता , क्वारंटाइन वार्ड स्वर्ग में हनुमान मुक्त , मैं तो अपनी बैंक खोलूंगा पापा हरीश कुमार सिंह और अस्पताल में एंटरटेनमेंट हरीश नवल के व्यंग्य सम्मलित हैं .
जैसा कि व्यंग्य लेखों के शीर्षक ही स्पष्ट कर रहे हैं किताब के अधिकांश  व्यंग्य करोना पर केंद्रित तत्कालीन पृष्ठभूमि के हैं . जब भी भविष्य में हिन्दी साहित्य में कोरोना काल के सृजन पर शोध कार्य होंगे इस किताब को संदर्भ ग्रंथ के रूप में लिया ही जायेगा यह तय मानिये . आप को इन व्यंग्य लेखो को पढ़ना चाहिये . देखना सुनना हो तो यूट्यूब खंगालिये शायद लेखक के नाम या व्यंग्य के नाम से कहीं न कही ये व्यंग्य सुलभ हों . क्योकि हर व्यंग्य का वीडियो पाठ मैंने व्हाट्सअप ग्रुप पर कौतुहल से देखा सुना है . बधाई सभी सम्मलित रचनाकारो को , जिनमें वरिष्ठ , कनिष्ठ , नियमित सक्रिय , कभी जभी लिखने वाले , महिलायें , इंजीनियर, डाक्टर , संपादक , सभी शामिल हैं . बधाई संपादक द्वय को और प्रकाशक जी को .
 चर्चाकार विवेक रंजन श्रीवास्तव , शिला कुंज , नयागांव ,जबलपुर ४८२००८

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