Friday, July 4, 2008

किसकी बोली कितनी


व्यंग्य

किसकी बोली कितनी



विवके रंजन श्रीवास्तव

एम.पी.एस.ई.बी. कालोनी,

रामपुर, जबलपुर.

अपने क्रिकेट के खिलाडी नीलाम हो गये, सबकी बढ चढ कर बोली लगाई गई . अच्छा हुआ, सब कुछ पारदर्षी तरीको से सबके सामने संपन्न हुआ, इस हम्माम में सब नंगे हैं. वरना बिकते तो पहले भी थे, सटोरियों के साथों, ब्लैक मनी में, अपने जडेजा, अजहर भैया के जमाने मैं। मुझे तो लगता है कि जितना समय देष भर के लोगों का क्रिकेट देखने में लगता है, और उससे जितना काम प्रभावित होता है, उसका सही मूल्यांकन किया जाना चाहिये , और उसके एवज में हमारे सुयोग्य, खिलाडियों की कीमत आॅकी जानी चाहिये. ऐसे मापदण्ड से खिलाडियों की कीमत करोडों में नहीं अरबों में पहॅुच सकेगी. एक और भी अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्य है, जिसकी भी कंसीडर किया जाना चाहिये , वह है, खिलाडियों से देषवासियों का भावनात्मक लगाव. आखिर हमारे खिलाडी तिरंगे सहित सभी राष्ट्र्ीय प्रतीको का उपयोग करते है, उनकी हेयर स्आईल था युवा अंधानुकरण करते है, कालेज की लडकियां उन पर फिदा रहती है, इन सबकी भी तो गणना होनी ही चाहिये. शक्ति वर्धक पेय, या अन्य विज्ञापनो में इन्हों खिलाडियों को दिखाकर कंपनियां करोडों का व्यापार कर लेती है, यह भावनात्मक लगाव का ही परिणाम है, अतः नीलामी में खिलाडी के केवल खेल के प्रदर्षन पर उसका आकलन ठीक नहीं है, यह तो सरासर खिलाडी की नीलामी कीमत का अवमूल्यन करने की विदेषी साजिष प्रतीत होती है , अच्छे खेल के सहारे लोकप्रियता की सीढीयां चढ जाने के बाद खेल तो साइड बिजनेस रह जात है, यह हमारे खिलाडियों का पुराना फंडा है, मुझे भरोसा है, कि मेरे इतने धारदार तर्को के आधार पर अगली बार क्रिकेट खिलाडियों की नीलामी की आफिषियल बोली तय करने वाली टीम में मुझे भी, अवष्यक ही शामिल किया जावेगा, फिर देेखियेगा कैसे मैं करोडो में मिट्टी मोल बिक रहे अपने नौनिहालो के हीरे के भाव अरबों में बेचूंगा। ये क्या देष का माल देष में नीलाम करके ही लोग खुष हो रहे है, अरे नवचार का जमाना है इंटरनेषनल बिडिंग होनी चाहिये, विदेषी मल्टीनेषनल्स का पैसा भारत आता, तब तो मजा आता चैको-छककों का ।

सब कुछ तो बिकाऊ है , माॅ की कोख, गरीब की किडनी , नेता का चरित्र, अफसर की आत्मा, डाक्टर का दिल, सन्यासी का प्रवचन सब कुछ तो बिकाऊ है। गरीब का दर्द और किसान का कर्ज, वोट में तब्दील करने की टेक्नीक हमारे नेताओं ने डेवेलेप कर डाली है। ऐसे माहौल में. मैं इसी पर खुष हंू कि आज की तारीख तक मेरी बीबी का प्यार और मेरी कलम दोनो अनमोल है, हाॅ मेरी पूरी सैलरी भी मेरे परिवार की मुस्कान खरीदने हेतु कम पड रही है, यह गम जरूर है।

1 comment:

  1. आप में व्यंग-लेखन की बढ़िया प्रतिभा है. इसे तराशते-निखारते रहिये.

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कैसा लगा ..! जानकर प्रसन्नता होगी !