Friday, July 4, 2008
भारतीयों की भरी थाली इस मॅंहगाई का कारण
भारतीयों की भरी थाली इस मॅंहगाई का कारण
व्यंग्य
अरे एक रोटी और लीजीये ना!
विवेक रंजन श्रीवास्तव
एम.पी.एस.ई.बी. कालोनी,
रामपुर, जबलपुर.
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुष्मन सारा जहाॅ हमारा। सचमुच कुछ बात तो है हम मेें । दो टाइम भरपेट खाना खाकर, डकार क्या ले ली, दुनियां में मॅंहगाई बढ गई । जीरो नम्बर के सिंड्र्ोम में फॅसे डाइटिंग करते हुये, अमेरिकन, इतने परेषान हो गये कि उनके राष्ट्र्पति को बयान देना पडा कि भारतीयों की भरी थाली इस मॅंहगाई का कारण है। और लो विष्व बाजार। ये तो होना ही था। हमारे गाॅधी जी ग्राम इकाई की बातें करते थे, जो भला, बुरा, घट, बढ होती थी गांव घर की बात, वहीं की समस्या, वहीं निदान। अब उसे तो माना नहीं, ग्लोबल विलेज का ढांचा खडा कर दिया, तो अब भुगतों। हिन्दी-चीनी आबादी, ही इन देषों की ताकत है, खूब माल खपाया, अमेरिका ने इन देषों में, मछलियों को खिलाने वाला लाल गेहॅू देकर उपकृत किया, नाम कमाया, अब जब हमने पचाने की क्षमता पैदा कर ली, तो इतना दर्द क्यूं ? पराई पतरी के बरे, सबको बडे ही दिखते है। पुरानी कहावत है। दूसरों की रोटियां गिनना बुरी बात है पर यह बात निखालिस हिन्दुस्तानी है, जो अमेरिकनस को समझ नहीं आयेगी।
जब मेंै छोटा था, तो चाकलेट के डिब्बे से एक - एक कर सारी चाकलेट चट कर डालता था। खाती तो दीदी, भी रहती थी, पर हल्ला मेरे नाम का ही रहता था, महीने के पहले हफ्ते में जब किराना आता तो डब्बा चाकलेट से लबालब होता। 4-6 दिनों में ही डब्बा सिर्फ डब्बा बच रहता । महीने के शेष दिनों में यदि कोई छोटा बच्चा घर आता, और चाकलेट की आवष्यकता माहसूस की जाती तो, मेरा नाम लिया जाता। यानी मेरी न्यूसेंस वैल्यू महसूस की जाती। कुछ यह हालात वैष्विक स्तर पर अमेरिका के है। हम भारतीय तो ताल ठोककर दम दे रहे है, तुम रखे रहो अपने परमाणु बम, यदि, ज्यादा नाटक किया तो, हम लोग दिन मेे तीन बार खाना,खाना शुरू कर देंगे, भूखे मर जाओगे तुम लोग। हमारी जनता को दस्त लगेंगे तो हम निपट लेंगे, पर देषं भक्ति के नाम पर, दो चार चपाती और खाकर ही रहेंगे।
मेरी पत्नी का मानना है कि पति के प्यार का परीक्षण,मनुहार भरी, रोटी से होता है । यदि भर पेट भोजन के बाद भी मनुहार करके वह एक रोटी और न खिलाये,तो उसे लगता है कि मै उसे कुछ कम प्यार करने लगा हॅूं। इसलिये भले ही मुझे अभिताभ बच्चन द्वारा विज्ञापित हाजमेला खाकर, अजीर्ण से निपटना पडे पर मैें भोजन के अंत में, श्रीमती जी की मनुहार भरी रोटी, खा ही लेता हॅू। पर बाबू बुष और मैडम राईस के वयानों से मुझे बडी राहत मिली है, अब मैें श्रीमती जी को मॅंहगाई पर काबू पाने के नेक उद्वेष्य से, मनुहार की जबर्दस्त रोटी न परोसने हेतु सहमत कर लेता हॅंू। अब मेरी पत्नी समझने लगी है कि क्यों राज ठाकरे के कल्चर में आधी, और चैथाई तक रोटी परोसने से पहले भी दो दो बार पूछा जाता है , आखिर विष्व स्तर पर महॅंगाई के नियंत्रण का महत्वपूर्ण मसला इसी पर जो टिका है।
अब तो अमेरिका को वर्चुएल रोटी के अनुसंधान में जुट जाना चाहिये। जिससे रोटी को देखकर ही पेट भर जाये । या फिर जैसे बचपन में जलेबी दौड में उचक उचक कर जलेबी खानी पडती थी, कुछ उस तरह लोगों केा हाथ बंाधकर भोजन पर आमंत्रित करने की व्यवस्था व्हाईट हाउस में बानगी के तौेर पर की जानी चाहिये। वैष्खिक मंहगाई नियंत्रित होती ही चाहिये ,और उसके लिये हर वह कदम उठाना चाहिये जो जरूरी है।
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aap ki mahangayee ki thalee achchee hai
ReplyDeletepar swaad aur batha sakte the ...