Friday, July 4, 2008
शहर में ’’ इंवेस्टर्स मीट ’’
शहर में ’’ इंवेस्टर्स मीट ’’
व्यंग्य
’’ दूध वाले की गली में इंवेस्टर ’’
विवेक रंजन श्रीवास्तव
रामपुर, जबलपुर.
पहले जब मिनिस्टस, आते थे, तो शहर में साफ सफाई विषेष ढंग से होती थी, सडकों के गड्डे भर दिये जाते थे, झंडे, बैनर लगाकर नगर बासी पलक पाॅवडे बिछाकर नेता जी का स्वागत करते थे. अतिथि सत्कार हमारी संस्कृति का हिस्सा है, जब पहली पहली बार मेरे जीजा जी घर आये थे, तब माॅं ने घर के सारे पर्दे नये खरीदे थे. पुराने सोफे पर नये कुषन कवर डाल दिये गये थे. सारे घर की साफ सफाई हुई थी, ऊपर के सारे जाले टेबिल पर खडे होकर मुझे ही निकालने पडे थे. बल्ब की जगह ट्यूबलाईट लगा दी गई थी, और तो और जीजा जी के सामने, घर पर पहनने के लिये पिताजी ने मेरे लिये नाईट सूट भी खरीद दिया था. अपने बालमन के अनुरूप जीजा जी के आने का , मुझ में उजास भर गया था.
इन दिन शहर में बडा उत्साह है. सारी सडकों पर उपरी सतह चुपडी जा रही है. चैराहों पर पोैधा रोपण नहीं , सीधा वृक्षारोपण ही हो रहा है बरसों से बंद पडी स्ट््रीट लाइट बदली जा रही है,षहर के अखबारों में बडे चर्चे है- शहर में ’’ इंवेस्टर्स मीट ’’ होने को है मैने अपने दुधवाले से इस स्वच्छता अभियान के बारे मेें जानना चाहा, तो उसने कहा ’’कौनो इंवेस्टर साहब, आन वाले है’’ हमार गली सोई आ जाते होन ओही को कल्याण हो जातो! मै उसके सामान्य ज्ञान का कायल हुआ। सचमुच इंवेस्टमेट की वास्तविक जरूरत दुधावाले की गली में ही है. काम वाली बाई की गली में है, और सब्जी वाले की बस्ती में भी है. पर फिलहाल में सब खूष है, क्योंकि इन सबको, सपरिवार रात दिन काम मिल रहा है. शहर को दुल्हन सा सजाया जा रहा है, लोगो में उत्साह है. नेताओं को लग रहा है, सरकारी पैसे न सही , इंवेस्टर जी के पैसो से ही सही, शहर, महानगर बन जाये. कुछ हुटर बजाते, कल कारखाने लग जायें. शहर विकास का पहाडा पढने लगें.
देषी, विदेषी इंवेस्टर्स आयेंगे, पाॅच सितारा सुविधाओं के बीच गुफ्तगू करेेंगे कुछ न कुछ हो अच्छा ही होगा. पर फिलहाल शहर ,खुष है , यह सोचकर कि कुछ अच्छा हो रहा है मैं बचपन की उन्हीं यादों में खोया हुआ हूॅं , जिनमें जीजा जी आये थे, तीन चार दिन जब तक जीजा जी घर पर थे, हलुआ ,पुरी, कचैरी, खीर, खूब मजे उडाये थे हमने , अब कुछ बडा हो गया हॅंू , समझने लगा हॅू कि जीजा जी की उस यात्रा में माॅं की गुल्लक गट हो गई थी. खैर! आज के परित्रेक्षय में यही आग्रह है , दुधवाले की जरूर सुन लेना, जो दिन से कह रहा है कभी हमारी गली आना ना इंवेस्टर जी ।
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पीने-खाने की संस्कृति वाले बुश बाबू को खाने-पीने वालों की थाली से अपनी प्याली अधिक प्यारी होगी ही. यह अलग बात है की उनकी बर्बादी की जिम्मेदार थाली नहीं प्याली है.
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