Thursday, December 17, 2020

पुस्तक चर्चा लाकडाउन व्यंग्य संग्रह संपादन .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

 पुस्तक चर्चा

लाकडाउन

व्यंग्य संग्रह  

संपादन .. विवेक रंजन श्रीवास्तव  


पृष्ठ १६४ , मूल्य ३५० रु

IASBN 9788194727217

वर्ष २०२०

रवीना प्रकाशन , गंगा विहार , दिल्ली

चर्चाकार .. डा साधना खरे , भोपाल


हिन्दी साहित्य में व्यंग्य की स्वीकार्यता लगातार बढ़ी है . पाठको को व्यंग्य में कही गई बातें पसंद आ रही हैं .   व्यंग्य लेखन घटनाओ पर त्वरित प्रतिक्रिया व आक्रोश की अभिव्यक्ति का सशक्त मअध्यम बना है . जहां कहीं विडम्बना परिलक्षित होती है , वहां व्यंग्य का प्रस्फुटन स्वाभाविक है . ये और बात है कि तब व्यंग्य बड़ा असमर्थ नजर आता है जब उस विसंगति के संपोषक जिस पर व्यंग्यकार प्रहार करता है , व्यंग्य से परिष्कार करने की अपेक्षा , उसकी उपेक्षा करते हुये , व्यंग्य को परिहास में उड़ा देते हैं . ऐसी स्थितियों में सतही व्यंग्यकार भी व्यंग्य को छपास का एक माध्यम मात्र समझकर रचना करते दिखते हैं .

विवेक रंजन श्रीवास्तव देश के एक सशक्त व्यंग्यकार के रूप में स्थापित हैं . उनकी कई किताबें छप चुकी हैं . उन्होने कुछ व्यंग्य संकलनो का संपादन भी किया है . उनकी पकड़ व संबंध वैश्विक हैं . दृष्टि गंभीर है . विषयो की उनकी सीमायें व्यापक है .

वर्ष २०२० के पहले त्रैमास में ही सदी में होने वाली महामारी कोरोना का आतंक दुनिया पर हावी होता चला गया . दुनिया घरो में लाकडाउन हो गई . इस पीढ़ी के लिये यह न भूतो न भविष्यति वाली विचित्र स्थिति थी . वैश्विक संपर्क के लिये इंटरनेट बड़ा सहारा बना . ऐसे समय में भी रचनात्मकता नही रुक सकती थी . कोरोना काल निश्चित ही साहित्य के एक मुखर रचनाकाल के रूप में जाना जायेगा . इस कालावधि में खूब लेखन हुआ . इंटरनेट के माध्यम से फेसबुक , गूगल मीट , जूम जैसे संसाधनो के प्रयोग करते हुये ढ़ेर सारे आयोजन हो रहे हैं . यू ट्यूब इन सबसे भरा हुआ है .  विवेक जी ने भी रवीना प्रकाशन के माध्यम से कोरोना तथा लाकडाउन विषयक विसंगतियो पर केंद्रित व्यंग्य तथा काव्य रचनाओ का अद्भुत संग्रह लाकडाउन शीर्षक से प्रस्तुत किया है . पुस्तक आकर्षक है . संकलन में वरिष्ठ , स्थापित युवा सभी तरह के देश विदेश के रचनाकार शामिल किये गये हैं .

गंभीर वैचारिक संपादकीय के साथ ही रमेशबाबू की बैंकाक यात्रा और कोरोना तथा महादानी गुप्तदानी ये दो महत्वपूर्ण व्यंग्य लेख स्वयं विवेक रंजन श्रीवास्तव के हैं , जिनमें कोरोना जनित विसंगति जिसमें परिवार से छिपा कर की गई बैंकाक यात्रा तथा शराब के माध्यम से सरकारी राजस्व पर गहरे कटाक्ष लेखक ने किये हैं , गुदगुदाते हुये सोचने पर विवश कर दिया है .

जिन्होने भी कोरोना के आरंभिक दिनो में तबलीकी जमात की कोरोना के प्रति गैर गंभीर प्रवृत्ति और टीवी चैनल्स की स्वयं निर्णय देती रिपोर्टिग देखी है उन्हें जहीर ललितपुरी का व्यंग्य लाकडाउन में बदहजमी पढ़कर मजा आ जायेगा . डा अमरसिंह का लेख लाकडाउन में नाकडाउन में हास्य है, उन्होने पत्नी के कड़क कोरोना अनुशासन पर कटाक्ष किया है . लाकडाउन के समाज पर प्रभाव भावना सिंह ने मजबूर मजदूर , रोजगार , प्रकृति सारे बिन्दुओ का समावेश करते हुये  पूरा समाजशास्त्रीय अध्ययन कर डाला है .

कुछ जिन अति वरिष्ठ व्यंग्य कारो से संग्रह स्थाई महत्व का बन गया है उनमें इस संग्रह की सबसे बड़ी उपलब्धि ब्रजेश कानूनगो जी का व्यंग्य " मंगल भवन अमंगल हारी " है . उन्होंने संवाद शैली में गहरे कटाक्ष करते हुये लिखा है " उन्हें अब बहुत पश्चाताप भी हो रहा था कि शास्त्रा गृह को समृद्ध करने के बजाय वे औषधि विज्ञान और चिकित्सालयों के विकास पर ध्यान क्यो नही दे पाये " . केनेडा से धर्मपाल महेंद्र जैन की व्यंग्य रचना वाह वाह समाज के तबलीगियों से पठनीय वैचारिक व्यंग्य रचना है . उनकी दूसरी रचना लाकडाउन में दरबार में उन्होंने धृतराष्ट्र के दरबार पर कोरोना जनित परिस्थितियों को आरोपित कर व्यंग्य उत्पन्न किया है . इसी तरह प्रभात गोस्वामी देश के विख्यात व्यंग्यकारो में से एक हैं , कोरोना पाजिटिव होने ने पाजिटिव शब्द को निगेटिव कर दिया है ,उनका व्यंग्य नेगेटिव बाबू का पाजिटिव होना बड़े गहरे अर्थ लिये हुये है ,वे लिखते हैं  हम राम कहें तो वे मरा कहते हैं .  सुरेंद्र पवार परिपक्व संपादक व रचनाकार हैं , उन्होंने अपने व्यंग्य के नायक बतोले के माध्यम से " भैया की बातें में"  घर से इंटरनेट तक की स्थितियों का रोचक वर्णन कर पठनीय व्यंग्य प्रस्तुत किया है . डा प्रदीप उपाध्याय वरिष्ठ बहु प्रकाशित व्यंग्यकार हैं , उनके दो व्यंग्य संकलन में शामिल हैं , "कोरोनासुर का आतंक और भगवान से साक्षात्कार" तथा "एक दृष्टि उत्तर कोरोना काल पर" . दोनो ही व्यंग्य उनके आत्मसात अनुभव बयान करते बहुत रोचक हैं .  कोरोना काल में थू थू करने की परंपरा के माध्यम से युवा व्यंग्यकार अनिल अयान ने बड़े गंभीर कटाक्ष किये हैं , थू थू करने का उनका शाब्दिक उपयोग समर्थ व्यंग्य है . अजीत श्रीवास्तव बेहद परिपक्व व्यंग्यकार हैं , उनकी रचना ही  शायद संग्रह का सबसे बड़ा लेख है  जिसमें छोटी छोटी २५ स्वतंत्र कथायें कोरोना काल की घटनाओ पर उनके सूक्ष्म निरीक्षण से उपजी हुई , पठनीय रचनायें हैं . राकेश सोहम व्यंग्य के क्षेत्र में जाना पहचाना चर्चित नाम है , उनका छोटा सा लेख बंशी बजाने का हुनर बहुत कुछ कह जाताने में सफल रहा है . रणविजय राव ने कोरोना के हाल से बेहाल रामखेलावन में बहुत गहरी चोट की है , उन जैसे परिपक्व व्यंग्यकार से ऐसी ही गंभीर रचना की अपेक्षा पाठक करते हैं .

महिला रचनाकारो की भागीदारी भी उल्लेखनीय है . सबसे उल्लेखनीय नाम अलका सिगतिया का है . लाकडाउन के बाद जब शराब की दूकानो पर से प्रतिबंध हटा तो जो हालात हुये उससे उपजी विसंगती उनकी लेखनी का रोचक विषय बनी " तलब लगी जमात " उनका पठनीय व्यंग्य है .  अनुराधा सिंह ने दो छोटे सार्थक व्यंग्य सांप ने दी कोरोना को चुनौती और वर्क फ्राम होम ऐसा भी लिखा है . छाया सक्सेना प्रभु समर्थ व्यंग्यकार हैं उन्होने अपने व्यंग्य जागते रहो में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाये हैं वे लिखती हैं लाकडाउन में पति घरेलू प्राणी बन गये हैं , कभी बच्चो को मोबाईल से दूर हटाते माता पिता ही उन्हें इंटरनेट से पढ़ने  प्रेरित कर रहे हैं , कोरोना सब उल्टा पुल्टा कर रहा है . शेल्टर होम में डा सरला सिंह स्निग्धा की लेखनी करुणा उपजाती है  .सुशीला जोशी विद्योत्तमा की दो लघु रचनायें लाकडाउन व व्यसन संवेदना उत्पन्न करती हैं . राखी सरोज के लेख गंभीर हैं .

गौतम जैन ने अपनी रचना दोस्त कौन दुश्मन कौन में संवेदना को उकेरा है . डा देवेश पाण्डेय ने लोक भाषा का उपयोग करते हुये पनाहगार लिखा है . डा पवित्र कुमार शर्मा ने एक शराबी का लाकडाउन में शराबियो की समस्या को रेखांकित किया है . कोरोना से पीड़ित हम थे ही और उन्ही दिनो में देश में भूकम्प के जटके भी आये थे , मनीष शुक्ल ने इसे ही अपनी लेखनी का विषय बनाया है .डा अलखदेव प्रसाद ने स्वागतम कोरोना लिखकर उलटबांसी की हे . राजीव शर्मा ने कोरोना काल में मनोरंजक मीडीया लिखकर मीडीया के हास्यास्पद , उत्तेजना भरे  , त्वरित के चक्कर में असंपादित रिपोर्टर्स की खबर ली है .व्यग्र पाण्डे ने मछीकी और मास्क में प्रकृति पर लाकडाउन के प्रभाव पर मानवीय प्रदूषण को लेकर कटाक्ष किया है    . एम मुबीन ने कम शब्दो की रचना में बड़ी बातें कह दी हैं . दीपक क्रांति की दो रचनायें संग्रह का हिस्सा हैं , नया रावण तथा मजबूर या मजदूर , कोरोना काल के आरंभिक दिनो की विभीषिका का स्मरण इन्हें पढ़कर हो आता है . महामारी शीर्षक से धर्मेंद्र कुमार का आलेख पठनीय है .

दीपक दीक्षित , बिपिन कुमार चौधरी , शिवमंगल सिंह , प्रो सुशील राकेश , उज्जवल मिश्रा और राहुल तिवारी की कवितायें भी हैं .

कुल मिलाकर  पुस्तक बहुत अच्छी बन पड़ी है , यद्यपि प्रकाशन में सावधानी की जरूरत दिखती है , कई रचनाओ के शीर्षक गलती से हाईलाईट नही हो पाये हैं , रचनाओ के अंत में रचनाकारो के पते देने में असमानता खटकती है .कीमत भी मान्य परमंपरा जितने पृष्ठ उतने रुपये के फार्मूले पर किंचित अधिक लगती है ,  पर फिर भी लाकडाउन में प्रकाशित साहित्य की जब भी शोध विवेचना होगी इस संकलन की उपेक्षा नही की जा सकेगी यह तय है . जिसके लिये संपादक श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव व प्रकाशक बधाई के पात्र हैं .



 

Saturday, January 18, 2020

किसना अरजुन संवाद वोटिंग बूथ पर



व्यंग्य
पोलिंग बूथ पर किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन

विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए १ , शिला कुंज , नयागांव , जबलपुर
मो ७०००३७५७९८

अर्जुन जी का नेचर ही थोड़ा कनफुजाया हुआ है . वह महाभारत के टाईम भी एन कुरुक्षेत्र के मैदान में कनफ्यूज हो गये थे , भगवान कृष्ण को उन्हें समझाना पड़ा तब कहीं उन्होनें धनुष उठाया .
पिछले कई दिनो से आज के अरजुन देख रहे थे कि  सत्ता से बाहर हुये नेता गण जनसेवा के लिए बेचैन हो रहे हैं . येन केन प्रकारेण फिर से कुर्सी पा लेने के लिये गुरुकुलों तक में तोड़ फोड़ , मारपीट , पत्थरबाजी सब करवाई जा रही थी . कौआ कान ले गया की रट लगाकर भीड़ को कनफ्यूजियाने का हर संभव प्रयास चल रहा था . तेज ठंड के चलते जो लोग कानो पर मफलर बांधे हुये हैं वे , बिना कान देखे कौए के पीछे दौड़ते फिर रहे हैं . ऐसे समय में ही राजधानी के चुनाव आ गये .  अरजुन जी किसना के संग पोलिंग बूथ पर जा पहुंचे . ठीक बूथ के बाहर वे फिर से कनफुजिया गये . किंकर्तव्यविमूढ़ अरजुन ने किसना से कहा कि ये चारों बदमाश जो चुनाव लड़ रहे हैं मेरे अपने ही हैं . मैं भला कैसे किसी एक को वोट दे सकता हूं ? इन चारों में से कोई भी मेरे देश का भला नही कर सकता . मैँ इन सबको बहुत अच्छी तरह जानता हूं . अरजुन की यह दशा देख इंद्रप्रस्थ पोलिंग बूथ पर लगी लम्बी कतार में ही किसना ने कहा ..
हे पार्थ तुम केवल प्याज की महंगाई की चिंता करो तुम्हें देश की चिंता क्यों सता रही है !
हे पार्थ तुम फ्री बिजली , फ्री पानी , फ्री वाईफाई और मेट्रो में पत्नी के फ्री सफर की चिंता करो तुम्हें भला देश की चिंता का अधिकार किसने दिया है .
हे पार्थ तुम  बेटे के रोजगार की चिंता करो , बेरोजगारी भत्ते की चिंता करो तुम्हें जातियों के अनुपात की  चिंता क्यों !
हे पार्थ तुम शहर की स्मार्टनेस की चिंता करो तुम्हें साफ सफाई के बजट की और उसमें दिख रहे घपले की चिंता नहीं होनी चाहिये  !
हे पार्थ तुम सीमा पर शहीद जवान की शव यात्रा में शामिल होकर देश भक्ति के नारे लगाओ  भला तुम्हें इससे क्या लेना देना कि यदि नेता जी ने बरसों पहले सही निर्णय लिये होते तो जवान के शहीद होने के अवसर ही न आते !
हे पार्थ तुम देश बंद के आव्हान पर अपनी दूकान बन्द करके बंद को समर्थन दो , अन्यथा तुम्हारी दूकान में तोड़फोड़ हो सकती है ,तुम्हें इससे कोई सरोकार नहीं रखना चाहिये कि यह बन्द किसने और क्यों बुलाया ?
हे पार्थ तुम्हें सरदार पटेल , आजाद , सुभाष चन्द्र बोस , सावरकर , विवेकानन्द  या गोलवलकर जी वगैरह को पढ़ने समझने की भला क्या जरूरत तुम तो आज के मंत्री जी को पहचानो उनसे अपने ट्रांसफर करवाओ , सिफारिश करवाओ और लोकतंत्र की जय बोलो व प्रसन्न रहो !
हे पार्थ तुम्हें शाहीन रोड पर  धरना देने के लिए पार्टियों का प्रतिनिधित्व करने या पत्थरबाजी के लिए कश्मीर से दिल्ली तक 500 रु रोज के रोजगार पर सवाल उठाने की कोई जरूरत नहीं तुम मजे से चाय पियो , अखबार पढ़ो , बहस करो , टीवी पर बहस सुनो , कार्यक्रमों की टीआरपी बढ़ाओ .
हे पार्थ तुम्हें सच जानकार भला क्या मिलेगा ? तुम वही जानो जो तुम्हें बताया जा रहा है ! यह जानना तुम्हारा काम नही है कि जिसे चुनाव में पार्टी टिकिट मिली है उसका चाल चरित्र कैसा है , वह सब किसी पार्टी में हाई कमान ने टिकिट के लिए करोड़ो लेने से पहले , या किसी पार्टी ने वैचारिक मंथन कर पहले ही देख लिया होता है .
हे पार्थ वैसे भी तुम्हारे एक वोट से जीतने वाले नेता जी का ज्यादा कुछ बनने बिगड़ने वाला नहीं , सो तुम बिना अधिक संशय किये मतदान केंद्र में जाओ चार लगभग एक से चेहरों में से जिसे तुम देश का कम दुश्मन समझते हो उसे या जो तुम्हें अपनी जाति का , अपने ज्यादा पास दिखता हो उसे अपना मत दे आओ, और जोर शोर से लोकतंत्र का त्यौहार मनाओ .
किसना अरजुन संवाद जारी था , पर मेरा नम्ब्रर  आ गया और मैं अंगुली पर काला टीका लगवाने आगे बढ़ गया .
कुरुक्षेत्र में कृष्ण के अर्जुन को उपदेशों से गीता बन पड़ी थी . आज भी इससे कईयों के पेट पल रहे हैं . कोई गीता की व्याख्या कर रहा है , कोई समझ रहा है , कोई छापकर बेच रहा है . इसी से प्रेरित हो हमने भी अरजुन किसना संवाद लिख दिया है , इसी आशा से कि लोग कानो के मफलर खोल कर अपने कान देखने का कष्ट उठायें , और पोलिंग बूथ पर हुये इस संवाद के निहितार्थ समझ सकें तो समझ लें .  

Saturday, March 16, 2019

मिलीभगत

कृति चर्चा  .. मिली भ
गत

हास्य व्यंग्य का वैश्विक संकलन

संपादक - विवेक रंजन श्रीवास्तव

मूल्यः 400 रू हार्ड बाउंड संस्करण , पृष्ठ संख्या 256

प्रकाशक: रवीना प्रकाशन, दिल्ली-110094

फोन- 8700774571,७०००३७५७९८



तार सप्तक संपादित संयुक्त संकलन साहित्य जगत में बहु चर्चित रहा है . सहयोगी अनेक संकलन अनेक विधाओ में आये हैं , किन्तु मिली भगत इस दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है कि इसमें संपादक श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव के वैस्विक संबंधो के चलते सारी दुनिया के अनेक देशो से व्यंग्यकारो ने हिस्सेदारी की है .संपादकीय में वे लिखते हैं कि  “व्यंग्य विसंगतियो पर भाषाई प्रहार से समाज को सही राह पर चलाये रखने के लिये शब्दो के जरिये वर्षो से किये जा रहे प्रयास की एक सुस्थापित विधा है “ .यद्यपि व्यंग्य  अभिव्यक्ति की शाश्वत विधा है , संस्कृत में भी व्यंग्य मिलता है ,  प्राचीन कवियो में कबीर की प्रायः रचनाओ में  व्यंग्य है ,यह कटाक्ष  किसी का मजाक उड़ाने या उपहास करने के लिए नहीं, बल्कि उसे सही मार्ग दिखाने के लिए ही होता है . कबीर का व्यंग्य करुणा से उपजा है, अक्खड़ता उसकी ढाल है.  हास्य और व्यंग्य में एक सूक्ष्म अंतर है , जहां हास्य लोगो को गुदगुदाकर छोड़ देता है वहीं व्यंग्य हमें सोचने पर विवश करता है . व्यंग्य के कटाक्ष पाठक को  तिलमिलाकर रख देते हैं . व्यंग्य लेखक के , संवेदनशील और करुण हृदय के असंतोष की प्रतिक्रिया के रूप में उत्पन्न होता है . शायद व्यंग्य , उन्ही तानो और कटाक्ष का  साहित्यिक रचना स्वरूप है  , जिसके प्रयोग से सदियो से सासें नई बहू को अपने घर परिवार के संस्कार और नियम कायदे सिखाती आई हैं और नई नवेली बहू को अपने परिवार में स्थाई रूप से घुलमिल जाने के हित चिंतन के लिये तात्कालिक रूप से बहू की नजरो में स्वयं बुरी कहलाने के लिये भी तैयार रहती हैं . कालेज में होने वाले सकारात्मक मिलन समारोह जिनमें नये छात्रो का पुराने छात्रो द्वारा परिचय लिया जाता है , भी कुछ कुछ व्यंग्य , छींटाकशी , हास्य के पुट से जन्मी मिली जुली भावना से नये छात्रो की झिझक मिटाने की परिपाटी रही है और जिसका विकृत रूप अब रेगिंग बन गया है .

      प्रायः अनेक समसामयिक विषयो पर लिखे गये व्यंग्य लेख अल्प जीवी होते हैं , क्योकि किसी  घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में लिखा गया  व्यंग्य ,अखबार में फटाफट छपता है , पाठक को प्रभावित करता है , गुदगुदाता है , थोड़ा हंसाता है , कुछ सोचने पर विवश करता है , जिस पर व्यंग्य किया जाता है वह थोड़ा कसमसाता है पर अपने बचाव के लिये वह कोई अच्छा सा बहाना या किसी भारी भरकम शब्द का घूंघट गढ़ ही लेता है , जैसे प्रायः नेता जी आत्मा की आवाज से किया गया कार्य या व्यापक जन कल्याण में लिया गया निर्णय बताकर अपने काले को सफेद बताने के यत्न करते दिखते हैं . . अखबार के साथ ही व्यंग्य  भी रद्दी में बदल जाता है . उस पर पुरानेपन की छाप लग जाती है . किन्तु  पुस्तक के रूप में व्यंग्य संग्रह के लिये  अनिवार्यता यह होती है कि विषय ऐसे हों जिनका महत्व शाश्वत न भी हो तो अपेक्षाकृत दीर्घकालिक हो . मिली भगत ऐसे ही विषयो पर दुनिया भर से अनेक व्यंग्यकारो की करिश्माई कलम का कमाल है .

संग्रह में अकारादि क्रम में लेखको को पिरोया गया है . कुल ४३ लेकको के व्यंग्य शामिल हैं .

 अभिमन्यु जैन की रचना  बारात के बहाने मजेदार तंज है उनकी दूसरी रचना अभिनंदन में उन्होने साहित्य जगत में इन दिनो चल रहे स्व सम्ंमान पर गहरा कटाक्ष किया है . अनिल अयान श्रीवास्तव नये लेखक हैं , देश भक्ति का सीजन और  खुदे शहरों में “खुदा“ को याद करें लेख उनकी हास्य का पुट लिये हुई शैली को प्रदर्शित करती है . अलंकार रस्तोगी बड़ा स्थापित नाम है . उन्हें हम जगह जगह पढ़ते रहते हैं साहित्य उत्त्थान का शर्तिया इलाज तथा एक मुठभेड़ विसंगति से में रस्तोगी जी ने हर वाक्य में गहरे पंच किये हैं . अरुण अर्णव खरे वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं , वे स्वयं भी संपादन का कार्य कर चुके हैं , उनकी कई किताबें प्रकाशित हैं बच्चों की गलती थानेदार और जीवन राम तथा बुजुर्ग वेलेंटाईन , उनकी दोनो हीरचनायें गंभीर व्यंग्य हैं . इंजी अवधेश कुमार ’अवध’ पेशे से इंजीनियर हैं पप्पू - गप्पू वर्सेस संता - बंता एवं सफाई अभिनय समसामयिक प्रभावी  कटाक्ष हैं .डॉ अमृता शुक्ला के व्यंग्य कार की वापसी व बिन पानी सब सून पठनीय हैं . बसंत कुमार शर्मा रेल्वे के अधिकारी हैं वजन नही है और नालियाँ व्यंग्य उनके अपने परिवेश को अवलोकन कर लिखने की कला के साक्षी हैं . ब्रजेश कानूनगो वरिष्ठ सुस्थापित व्यंग्यकार हैं . उनके दोनो ही लेख उपन्यास लिख रहे हैं वे तथा वैकल्पिक व्यवस्था मंजे हुये लेखन के प्रमाण हैं , जिन्हें पढ़ना गुनना मजेदार तो है ही साथ ही व्यंग्य क

Friday, August 25, 2017

बाबा ब्लैक शीप

व्यंग
बाबा ब्लैक शीप

विवेक रंजन  श्रीवास्तव
ए १ , विद्युत मण्डल कालोनी , शिला कुन्ज
जबलपुर                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                 
मो ९४२५८०६२५२ , vivek1959@yahoo.co.in
              कष्टो दुखो से घिरे  दुनिया वालो को बाबाओ की बड़ी जरूरत है . किसी की संतान नहीं है , किसी की संतान निकम्मी है , किसी को रोजगार की तलाश है , किसी को पत्नी पर भरोसा नही है , किसी को वह सब नही मिलता जिसके लायक वह है , कोई असाध्य रोग से पीड़ित है तो किसी की असाधारण महत्वाकांक्षा वह साधारण तरीको से पूरी कर लेना चाहता है , वगैरह वगैरह हर तरह की समस्याओ का एक ही निदान होता है " बाबा"  . इसलिये  हमें एक चेहरे की तलाश है ,जो किंचित कालिदास की तरह का गुणवान हो , कुछ वाचाल हो , टेक्टफुल हो , थोड़ा बहुत आयुर्वेद और ज्योतिष जानता हो तो बात ही क्या ,  हम उसे बाबा के रूप में महिमा मण्डित कर सकते हैं , कोई सुयोग्य पात्र मिले तो जरूर बताईये .
            यूं बचपन में हम भी बाबा हुआ करते थे ! हर वह शख्स जो हमारा नाम नहीं जानता था हमें प्यार से बाबा कह कर पुकारता था . इस बाबा गिरी में हमें लाड़ , प्यार और कभी जभी चाकलेट वगैरह मिल जाया करती थी . यह "बाबा" शब्द से हमारा पहला परिचय था . अच्छा ही था .अपनी इसी उमर में हमने बा बा ब्लैक शीप वाली राइम भी सीखी थी .  जब कुछ बड़े हुये तो बालभारती में सुदर्शन की कहानी हार की जीत पढ़ी .  बाबा भारती और डाकू खड़गसिंग के बीच हुये संवाद मन में घर कर गये . "बाबा " का यह परिचय संवेदनशील था , अच्छा ही था . कुछ और बड़े हुये तो लोगों को राह चलते अपरिचित बुजुर्ग को भी " बाबा " का सम्बोधन करते सुना . इस वाले बाबा में किंचित असहाय होने और उनके प्रति दया वाला भाव दिखा . कुछ दूसरे तरह के बाबाओ में कोई हरे कपड़ो में मयूर पंखो से लोभान के धुंयें में भूत , प्रेत , साये भगाता मिला तो कोई काले कपड़ो में शनिवार को तेल और काले तिल का दान मांगते मिला .कुछ वास्तविक बाबा आत्म उन्नति के लिये खुद को तपाते हुये भी मिले पर इन बाबाओ पर भी तरस खाने वाली स्थिति थी .
            फिर बाबा बाजी वाले बाबाओ से भी रूबरू हुये . जिनके रूप में चकाचौंध थी . शिष्य मंडली थी . बड़े बड़े आश्रम थे . लकदक गाड़ियों का काफिला  था . भगवा वस्त्रो में चेले चेलियां थे . प्रवचन के पंडाल थे .पंडालो के बाहर बाबा जी के प्रवचनो की सीडी , किताबें , बाबा जी की प्रचारित देसी दवाईयां विक्रय करने के स्टाल थे . टी वी चैनलो पर इन बाबाओ के टाईम स्लाट थे . इन बाबाओ को दान देने के लिये बैंको के एकाउंट नम्बर थे .कोई बाबा हवा से सोने की चेन और घड़ी  निकाल कर भक्तो में बांटने के कारण चर्चित रहे तो कोई जमीन में हफ्ते दो हफ्ते की समाधि लेने के कारण , कोई योग गुरु होने के कारण तो कोई आयुर्वेदाचार्य होने के कारण सुर्खियो में रहते दिखे.  बड़े बड़े मंत्री संत्री , अधिकारी , व्यापारी इन बाबाओ के चक्कर लगाते मिले . ही बाबा और शी बाबा के अपने अपने छोटे बड़े ग्रुप आपकी ही तरह हमारा ध्यान भी खींचने में सफल रहे हैं .
            बाबाओ के रहन सहन आचार विचार के गहन अध्ययन के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि किसी को बाबा बनाने के लिये  प्रारंभिक रूप से कुछ सकारात्मक अफवाह फैलानी होगी .लोग चमत्कार को नमस्कार करते आये हैं . अतः कुछ महिमा मण्डन , झूठा सच्चा गुणगान करके दो चार विदेशी भक्त या समाज के प्रभावशाली वर्ग से कुछ भक्त जुटाने पड़ेंगे . एक बार भक्त मण्डली जुटनी शुरु हुई तो फिर क्या है ,कुछ के काम तो गुरु भाई होने के कारण ही आपस में निपट जायेंगे , जिनके काम न हो पा  रहे होंगे  बाबा जी के रिफरेंस से मोबाईल करके निपटवा देंगे .
            हमारे दीक्षित बाबा जी को हम स्पष्ट रूप से समझा देंगे कि उन्हें सदैव शाश्वत सत्य ही बोलना है ,कम से कम बोलना है .  गीता के कुछ श्लोक ,और  रामचरित मानस की कुछ चौपाईयां परिस्थिति के अनुरूप बोलनी है . जब संकट का समय निकल जायेगा और व्यक्ति की समस्या का अच्छा या बुरा समाधान हो जावेगा तो  बोले गये वाक्यो के गूढ़ अर्थ लोग अपने आप निकाल लेंगे . बाबाओ के पास लोग इसीलिये जाते हैं क्योकि वे दोराहे पर खड़े होते हैं और स्वयं समझ नहीं पाते कि कहां जायें , वे नहीं जानते कि उनका ऊंट किस करवट बैठेगा , यह तो कोई बाबा जी भी नही जानते कि कौन सा ऊंट किस करवट बैठेगा , पर बाबा जी , ऊंट के बैठते तक भक्त को दिलासा और ढ़ाड़स बंधाने के काम आते हैं . यदि ऊंट मन माफिक बैठ गया तो बाबा जी की जय जय होती है , और यदि विपरीत दिशा में बैठ गया तो पूर्वजन्मो के कर्मो का परिणाम माना जाता है , जिसे बताना होता है कि  बाबा जी ने बड़े संकट को सहन करने योग्य बना दिया  , इसलिये फिर भी बाबा जी की जय जय . बाबा कर्म में हर हाल में हार की जीत ही होती है भले ही भक्त को बाबा जी का ठुल्लू ही क्यो न मिले . बाबा जी पर भक्त सर्वस्व लुटाने को तैयार मिलते हैं भले ही बाबा ब्लैकशीप ही क्यो न हों .
            

Tuesday, July 25, 2017

#व्यंग
नैनो में बदरा ,  नदियो में बाढ़

विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र

    जहाँ पानी में जीवन सृजित करने की क्षमता होती है वहीं यह विनाशकारी भी होता है . पानी मतलब जीवन की संभावना , इसीलिये दूसरे गृहो में भी वैज्ञानिक सबसे पहले पानी की ही तलाश करते दीखते हैं .  प्रायः धर्मो में पानी  का प्रतीकात्मक महत्व  है . पौराणिक आख्यानो में  ॠषि मुनियो को अंजुरी भर पानी छींटकर बड़े बड़े श्राप या वरदान देने वाले वृतांत आपने जरूर पढ़े या सुने होंगे . सृष्टि का प्रारंभ ही अपार , अथाह जलराशि की परिकल्पना है . ब्रम्हाण्ड की संरचना और जीवन का आधार भूत तत्व पानी ही है . यही नहीं सृजन के विपरीत सृष्टि के महाविनाश की कल्पना भी महासागरीय जल प्लावन ही है . दुनिया की सारी सभ्यतायें नदियो के तटो पर ही विकसित हुईं हैं .
        दुनिया में बढ़ती आबादी को जीवनोपयोगी पानी की समुचित आपूर्ति भविष्य की एक बड़ी वैश्विक चुनौती है . तीसरे विश्व युद्ध की परिकल्पनाओ में यह भी कहा जाता  है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिये ही लड़ा जायेगा . जब से मैने यह पढ़ा है ,  मै जब जब अपने यहां  तटबंध तोड़ती नदियो से आई बाढ़ के पानी की विभीषिका  देखता हूं ,पानी के लिये होते तीसरे विश्व युद्ध की कल्पना कर स्वयं को सांत्वना दे लेता हूं .मुझे अपने देश के बाढ़ पीड़ित रामू ,कालू वगैरह  सफेद चोले में सर से पैर तक ढ़के मुंदे ,तेल के कुंओ पर इतराते आज के अरब शेखों से दिखने लगते है .कल्पना कीजीये  हमारी सरकार के एक इशारे पर पानी से भरे विशाल गुब्बारो का रुख अमेरिका की ओर से वापस कही और मोड़ा जा सकता है , इसलिये अमेरिकन राष्ट्रपति हमारे प्रधानमंत्री से जब तब मिलने लालायित रहे ,  पाकिस्तान अपने आतंकवादियो को कुछ क्युसेक पानी के बदले काश्मीर से वापस बुलाने की पेशकश करता दिखे ,  या चीन हूं हां हाउं करते हुये डोकलांग पर केवल इसलिये कब्जा जमाना चाहता हो कि उसे ब्रम्हपुत्र की बाढ़ का पानी मिल जाये और हम बड़ी उदारता से बीजिंग तक वाटर लाइन डालने का प्रस्ताव रख सकते हों .  सोचिये कि वैज्ञानिक अनुसंधान इस दिशा में  केंद्रित करने पड़ें कि कैसे निश्चित क्षेत्र में बारम्बार बादलो के फटने और अति वर्षा की प्राकृतिक परिस्थितियां पैदा की जायें . भीषण वर्षा से देश का आर्थिक बजट ही सुधर जाये . वर्षा जल के बहाव के सारे मार्ग धरती के भीतर बने  विशालकाय पानी संग्रहण टेंको की ओर मोड़ दिये जाने की बड़ी बड़ी परियोजनायें चल रही हों  , विश्व की बड़ी आबादी पीने के पानी के लिये हमारे देश पर ही निर्भर हो  तो बताईये ऐसी वैस्विक परिस्थितियो में बाढ़ भी भला क्या बुरी है .
        पर फिलहाल  तो बाढ़ विभीषिका है , ताण्डवकारी है . बाढ़ से से बचने के लिये नदियो को जोड़ने की परियोजनाओ पर काम होना बाकी है . पर्यावरणीय असंतुलन से कही सूखा तो कही अति वर्षा हो रही है . वैज्ञानिक तकनीकी समाधानो के लिये  अनुसंधान कर रहे हैं . विशेषज्ञ बताते हैं कि जल आपदा से बचने हेतु हमें जल उपयोग के अपने आचरण बदलने चाहिये , जल उपयोग में मितव्ययता बरतनी चाहिये . किन्तु वास्तव में हम किस दिशा की ओर अग्रसर हैं ? बोतल बंद पानी बिक रहा है और लोगो की आंखो का पानी मर रहा है , और नदियो की बाढ़ विभिषिक है .    
    "सावन आया झूम के" ... नैनो में बदरा छाये बिजली सी चमके हाय " ..... "नैना बरसे रिमझिम रिमझिम " ... फिल्मी सैट्स की आर्टिफीशियल बारिश में भले ही इंद्रधनुष की आभा में हीरो ,हीरोइन सफेद गीले वस्त्रो में विलेन के नफरत के सैलाब को पार कर जाते हों पर अति वर्षा से पीड़ित किसानो  की आंखों के खून के आंसू कोई पानी नही धो सकता .किसानो की मेहनत पर पानी फेरने वाली बाढ़ ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिसे रोकने के हर संभव उपाय जरूरी हैं ,महज हास्य या व्यंग में बाढ़ को हल्के में अखबार की दिन भर की जिंदगी सा उड़ाया नही जा सकता , बल्कि व्यंग से भी यही संदेश जरूरी है कि हर साल देश की अरबो की संपत्ति का विनाश , बार बार बाढ़ आपदा पर राहत में करोड़ो का आकस्मिक व्यय , विकास हेतु होती बरसो की मेहनत पर पानी फिरने से देश को बचाना है तो बाढ़ नियंत्रण के सर्वागीण प्रयास अनिवार्य हैं .

Tuesday, July 18, 2017

भारत मे चीन


व्यंग
भारत में चीन

विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
vivekranjan.vinamra@gmail.com
बंगला नम्बर ऐ १ , विद्युत मंडल कालोनी , शिला कुन्ज , जबलपुर ४८२००८
०९४२५८०६२५२ , ७०००३७५७९८

        मेरा अनुमान है कि इन दिनो चीन के कारखानो में तरह तरह के सुंदर स्टिकर और बैनर बन बन रहे होंगे  जिन पर लिखा होगा " स्वदेशी माल खरीदें " , या फिर लिखा हो सकता है    " चीनी माल का बहिष्कार करें " . ये सारे बैनर हमारे ही व्यापारी चीन से थोक में बहुत सस्ते में खरीद कर हमारे बाजारो के जरिये हम देश भक्ति का राग अलापने वालो को जल्दी ही बेचेंगे . हमारे नेताओ और अधिकारियो की टेबलो पर चीन में बने भारतीय झंडे के साथ ही बाजू में एक सुंदर सी कलाकृति होगी जिस पर लिखा होगा "आई लव माई नेशन" ,  उस कलाकृति के नीचे छोटे अक्षरो में लिखा होगा मेड इन चाइना . आजकल भारत सहित विश्व के किसी भी देश में जब चुनाव होते हैं तो  वहां की पार्टियो की जरूरत के अनुसार वहां का बाजार चीन में बनी चुनाव सामग्री से पट जाता है .दुनिया के किसी भी देश का कोई त्यौहार हो उसकी जरूरतो के मुताबिक सामग्री बना कर समय से पहले वहां के बाजारो में पहुंचा देने की कला में चीनी व्यापारी निपुण हैं . वर्ष के प्रायः दिनो को भावनात्मक रूप से किसी विशेषता से जोड़ कर उसके बाजारीकरण में भी चीन का बड़ा योगदान है . 
        चीन में वैश्विक बाजार की जरूरतो को समझने का अदभुत गुण है . वहां मशीनी श्रम का मूल्य नगण्य है .उद्योगो के लिये पर्याप्त बिजली है . उनकी सरकार आविष्कार के लिये अन्वेषण पर बेतहाशा खर्च कर रही है . वहां ब्रेन ड्रेन नही है . इसका कारण है वे चीनी भाषा में ही रिसर्च कर रहे हैं . वहां वैश्विक स्तर के अनुसंधान संस्थान हैं . उनके पास वैश्विक स्तर का ज्ञान प्राप्त कर लेने वाले अपने होनहार युवको को देने के लिये उस स्तर के रोजगार भी हैं . इसके विपरीत भारत में देश से युवा वैज्ञानिको का विदेश पलायन एक बड़ी समस्या है . इजराइल जैसे छोटे देश में स्वयं के इनोवेशन हो रहे हैं किन्तु हमारे देश में हम बरसो से ब्रेन ड्रेन की समस्या से ही जूझ रहे हैं .  देश में आज  छोटे छोटे क्षेत्रो में मौलिक खोज को बढ़ावा  दिया जाना जरूरी है . वैश्विक स्तर की शिक्षा प्राप्त करके भी युवाओ को देश लौटाना बेहद जरूरी है . इसके लिये देश में ही उन्हें विश्वस्तरीय सुविधायें व रिसर्च का वातावरण दिया जाना आवश्यक है . और उससे भी पहले दुनिया की नामी युनिवर्सिटीज में कोर्स पूरा करने के लिये आर्थिक मदद भी जरूरी है . वर्तमान में ज्यादातर युवा बैंको से लोन लेकर विदेशो में उच्च शिक्षा हेतु जा रहे हैं , उस कर्ज को वापस करने के लिये मजबूरी में ही उन्हें उच्च वेतन पर विदेशी कंपनियो में ही नौकरी करनी पड़ती है , फिर वे वही रच बस जाते हैं . जरूरी है कि इस दिशा में चिंतन मनन , और  निर्णय तुरन्त लिए जावें , तभी हमारे देश से ब्रेन ड्रेन रुक सकता है .
        निश्चित ही विकास हमारी मंजिल है . इसके लिये  लंबे समय से हमारा देश  "वसुधैव कुटुम्बकम" के सैद्धांतिक मार्ग पर , अहिंसा और शांति पर सवार धीरे धीरे चल रहा था .  अब नेतृत्व बदला है , सैद्धांतिक टारगेट भी शनैः शनैः बदल रहा है . अब  "अहम ब्रम्हास्मि" का उद्घोष सुनाई पड़ रहा है . देश के भीतर और दुनिया में भारत के इस चेंज आफ ट्रैक से खलबली है . आतंक के बमों के जबाब में अब अमन के फूल  नही दिये जा रहे . भारत के भीतर भी मजहबी किताबो की सही व्याख्या पढ़ाई जा रही है . बहुसंख्यक जो  बेचारा सा बनता जा रहा था और उससे वसूल टैक्स से जो वोट बैंक और तुष्टीकरण की राजनीति चल रही थी , उसमें बदलाव हो रहा है . ट्रांजीशन का दौर है .
        इंटरनेट का ग्लोबल जमाना है . देशो की  वैश्विक संधियो के चलते  ग्लोबल बाजार  पर सरकार का नियंत्रण बचा नही है . ऐसे समय में जब हमारे घरो में विदेशी बहुयें आ रही हैं , संस्कृतियो का सम्मिलन हो रहा है . अपनी अस्मिता की रक्षा आवश्यक है . तो भले ही चीनी मोबाईल पर बातें करें किन्तु कहें यही कि आई लव माई इंडिया . क्योकि जब मैं अपने चारो ओर नजरे दौड़ाता हूं तो भले ही मुझे ढ़ेर सी मेड इन चाइना वस्तुयें दिखती हैं , पर जैसे ही मैं इससे थोड़ा सा शर्मसार होते हुये अपने दिल में झांकता हूं तो पाता हूं कि सारे इफ्स एण्ड बट्स के बाद " फिर भी दिल है हिंदुस्तानी " . तो चिंता न कीजीये बिसारिये ना राम नाम , एक दिन हम भारत में ही चीन बना लेंगें हम विश्व गुरू जो ठहरे . और जब वह समय आयेगा  तब मेड इन इंडिया की सारी चीजें दुनियां के हर देश में नजर आयेंगी चीन में भी , जमाना ग्लोबल जो है . तब तक चीनी मीट्टी से बने , मेड इन चाइना गणेश भगवान की मूर्ति के सम्मुख बिजली की चीनी झालर जलाकर नत मस्तक मूषक की तरह प्रार्थना कीजीये कि हे प्रभु ! सरकार को , अल्पसंख्यको को , गोरक्षको को , आतंकवादियो को ,काश्मीरीयो को ,  पाकिस्तानियो को , चीनियो को सबको सद्बुद्धि दो .
       
       
         
vivek ranjan shrivastava