व्यंग्य
गनीमत है वे अंखियो से गोली नही
विवेक रंजन श्रीवास्तव
vivek1959@yahoo.co.in
हम सब बहुत नादान हैं . इधर पाकिस्तान ने दो चार फटाके फोड़े नहीं कि हमारा मीडीया हो हल्ला मचाने लगता है . जनता नेताओ को याद दिलाने लगती है कि तुमको चुना ही इसलिये था कि तुम पाकिस्तान को सबक सिखाओगे , बदला लो . धिक्कार है हम पर जो अपने ही चुने गये नेताओ से सवाल करते हैं . दरअसल हमारे राजनेता बड़े साहित्यिक किस्म के हैं . जरूर उन्होने यह दोहा पढ़ा होगा " अस्त्र-शस्त्र के वार शत, करते कम आघात , वार जीभ का जब लगे, समझो पाई मात ". यही कारण है कि जब जब बाजू वाला अपने बमो से वार करता है नेता जी कड़े शब्दो में जुबानी जंग लड़ते नजर आते हैं . कठोर शब्दो में भर्तस्ना करते हैं . विरोध दर्ज करते हैं .
मुश्किल समय में विचलित न होने का संदेश भी चाणक्य नीति है . हमारे नेता भी असीम धैर्य का परिचय देते हैं वे दिलासा देते हैं कि शहीदो का खून बेकार नही जायेगा . हमें गर्व करना चाहिये अपने ऐसे स्थित प्रज्ञ नेताओ पर . और भगवान का शुक्र मनाना चाहिये कि इन नेताओ ने यह नही पढ़ा "तेरे कटाक्ष , ले लेते हैं मेरे प्राण, चितवन को भेद जाते हैं , तेरे नयनों के तीर कमान " . भले ही उन्होने यह पढ़ा हो और सुना भी हो कि "अँखियन से गोली मारे" पर कम से कम उस पर अनुसरण तो नही करते . वरना कल्पना कीजीये आपको कैसा लगता जब सीमा पर पाकिस्तान की बमबारी के बाद नेशनल चैनल में ब्रेकिंग न्यूज पर विशेष प्रसारण की घोषणा होती और फिर नेता जी के दर्शन होते , वे कहते भाईयो और बहनो और फिर बाईं आँख बन्द कर पाकिस्तान को जबाब देते उसकी कायराना हरकत का . हो सकता था कि वे सारे देश वासियो से भी आग्रह करते कि आईये हम सब एक साथ अपनी बाईं आँख बन्द कर सबक सिखा दें पड़ोसी को . ऐसा नही हो रहा , इसलिये गर्व करिये अपने चुने हुये जन प्रतिनिधियो पर .
जब आपने उन्हें चुन ही लिया है अगली बार फिर से बेवकूफ बनने तक के लिये तो जो कुछ वे कर रहे हैं उसमे हाँ में हाँ मिलाइये और खुश रहिये . विकास का स्वागत कीजीये . अंतरिक्ष की ओर निहारिये , वैज्ञानिको पर गर्व कीजीये . शहीदो को श्रद्धांजली दीजीये . संवेदना का ट्वीट कीजीये . कूटनीति की प्रशंसा कीजीये . अपना पूरा टैक्स अदा कीजीये . जिम्मेदार नागरिक होने का परिचय दीजीये .मीडिया में हैं तो जन भावनाओ में उबाल भरिये . यदि विपक्ष में हैं तो निश्चिंत होकर सरकार की कड़ी आलोचना कीजीये , यदि कभी आप सत्ता में लौट आये तो उच्च कोटि के आई ए एस और भाषा विद सचिव आपके लिये अपनी बात से पलटी खाने के कई रास्ते निकाल देंगे . नई शब्दावली ढ़ूंढ़कर कठोर शब्दो में निंदा का नया जुमला गढ़ देंगे . शब्द की शक्ति असीम है . इससे तीर और तलवार भी हार जाते थे . हिन्दी में एक कहावत है - बातन हाथी पाईये, बातन हाथी पांव . अर्थात आपके द्वारा कहे गये शब्दों से प्रभावित होकर आपको हाथी के पैरों तले रौंदे जाने का निर्णय भी लिया जा सकता है और आपके द्वारा कहे गये शब्दों से प्रसन्न होकर आपको हाथी के ऊपर बैठाया भी जा सकता है . शब्द इतने गहरे घाव देते हैं कि वे जीवन भर नहीं भरते. इसलिये नेताओ के शाब्दिक प्रहारो का समर्थन कीजीये . पाकिस्तान की नापाक हरकतो का यही तो सच्चा जबाब है कि उनको इतने गहरे घाव लगें जो कभी भरें नही . मुझे लगता है कि इतने बढ़िया शब्द बाणो के बाद भी जो असर पड़ोसी पर होना चाहिये वो यदि नही हो रहा ,तो इसका मूल कारण यह हो सकता है कि पड़ोसी हिन्दी नही जानता . भैंस के आगे बीन बजाओ भैंस खड़ी पगुराये वाली स्थिति हो रही है .या फिर नेताओ की कड़ी निंदा की भाषा में दम नहीं है , यदि ऐसा है तो मेरे जैसे व्यंगकारो का एक पैनल नेता जी के बयान बनाने के लिये नियुक्त किया जाना जरूरी है .
जबाब की भाषा वो ही ठीक होती है जो सामने वाला समझे ,मद्रासी को भोजपुरी में जबाब देना बेकार है . तो यदि बम की भाषा ही उन्हें समझ में आती है तो उन्हें उसी भाषा में जबाब देने का पाठ हमारे नेताओ को सिखाना ही पड़ेगा और इस काम के लिये कबीर का एक ही दोहा काफी है खीरा सर से काटिये, मलिये नमक लगाए, देख कबीरा यह कहे, कड़वन यही सुहाए ..
गनीमत है वे अंखियो से गोली नही
विवेक रंजन श्रीवास्तव
vivek1959@yahoo.co.in
हम सब बहुत नादान हैं . इधर पाकिस्तान ने दो चार फटाके फोड़े नहीं कि हमारा मीडीया हो हल्ला मचाने लगता है . जनता नेताओ को याद दिलाने लगती है कि तुमको चुना ही इसलिये था कि तुम पाकिस्तान को सबक सिखाओगे , बदला लो . धिक्कार है हम पर जो अपने ही चुने गये नेताओ से सवाल करते हैं . दरअसल हमारे राजनेता बड़े साहित्यिक किस्म के हैं . जरूर उन्होने यह दोहा पढ़ा होगा " अस्त्र-शस्त्र के वार शत, करते कम आघात , वार जीभ का जब लगे, समझो पाई मात ". यही कारण है कि जब जब बाजू वाला अपने बमो से वार करता है नेता जी कड़े शब्दो में जुबानी जंग लड़ते नजर आते हैं . कठोर शब्दो में भर्तस्ना करते हैं . विरोध दर्ज करते हैं .
मुश्किल समय में विचलित न होने का संदेश भी चाणक्य नीति है . हमारे नेता भी असीम धैर्य का परिचय देते हैं वे दिलासा देते हैं कि शहीदो का खून बेकार नही जायेगा . हमें गर्व करना चाहिये अपने ऐसे स्थित प्रज्ञ नेताओ पर . और भगवान का शुक्र मनाना चाहिये कि इन नेताओ ने यह नही पढ़ा "तेरे कटाक्ष , ले लेते हैं मेरे प्राण, चितवन को भेद जाते हैं , तेरे नयनों के तीर कमान " . भले ही उन्होने यह पढ़ा हो और सुना भी हो कि "अँखियन से गोली मारे" पर कम से कम उस पर अनुसरण तो नही करते . वरना कल्पना कीजीये आपको कैसा लगता जब सीमा पर पाकिस्तान की बमबारी के बाद नेशनल चैनल में ब्रेकिंग न्यूज पर विशेष प्रसारण की घोषणा होती और फिर नेता जी के दर्शन होते , वे कहते भाईयो और बहनो और फिर बाईं आँख बन्द कर पाकिस्तान को जबाब देते उसकी कायराना हरकत का . हो सकता था कि वे सारे देश वासियो से भी आग्रह करते कि आईये हम सब एक साथ अपनी बाईं आँख बन्द कर सबक सिखा दें पड़ोसी को . ऐसा नही हो रहा , इसलिये गर्व करिये अपने चुने हुये जन प्रतिनिधियो पर .
जब आपने उन्हें चुन ही लिया है अगली बार फिर से बेवकूफ बनने तक के लिये तो जो कुछ वे कर रहे हैं उसमे हाँ में हाँ मिलाइये और खुश रहिये . विकास का स्वागत कीजीये . अंतरिक्ष की ओर निहारिये , वैज्ञानिको पर गर्व कीजीये . शहीदो को श्रद्धांजली दीजीये . संवेदना का ट्वीट कीजीये . कूटनीति की प्रशंसा कीजीये . अपना पूरा टैक्स अदा कीजीये . जिम्मेदार नागरिक होने का परिचय दीजीये .मीडिया में हैं तो जन भावनाओ में उबाल भरिये . यदि विपक्ष में हैं तो निश्चिंत होकर सरकार की कड़ी आलोचना कीजीये , यदि कभी आप सत्ता में लौट आये तो उच्च कोटि के आई ए एस और भाषा विद सचिव आपके लिये अपनी बात से पलटी खाने के कई रास्ते निकाल देंगे . नई शब्दावली ढ़ूंढ़कर कठोर शब्दो में निंदा का नया जुमला गढ़ देंगे . शब्द की शक्ति असीम है . इससे तीर और तलवार भी हार जाते थे . हिन्दी में एक कहावत है - बातन हाथी पाईये, बातन हाथी पांव . अर्थात आपके द्वारा कहे गये शब्दों से प्रभावित होकर आपको हाथी के पैरों तले रौंदे जाने का निर्णय भी लिया जा सकता है और आपके द्वारा कहे गये शब्दों से प्रसन्न होकर आपको हाथी के ऊपर बैठाया भी जा सकता है . शब्द इतने गहरे घाव देते हैं कि वे जीवन भर नहीं भरते. इसलिये नेताओ के शाब्दिक प्रहारो का समर्थन कीजीये . पाकिस्तान की नापाक हरकतो का यही तो सच्चा जबाब है कि उनको इतने गहरे घाव लगें जो कभी भरें नही . मुझे लगता है कि इतने बढ़िया शब्द बाणो के बाद भी जो असर पड़ोसी पर होना चाहिये वो यदि नही हो रहा ,तो इसका मूल कारण यह हो सकता है कि पड़ोसी हिन्दी नही जानता . भैंस के आगे बीन बजाओ भैंस खड़ी पगुराये वाली स्थिति हो रही है .या फिर नेताओ की कड़ी निंदा की भाषा में दम नहीं है , यदि ऐसा है तो मेरे जैसे व्यंगकारो का एक पैनल नेता जी के बयान बनाने के लिये नियुक्त किया जाना जरूरी है .
जबाब की भाषा वो ही ठीक होती है जो सामने वाला समझे ,मद्रासी को भोजपुरी में जबाब देना बेकार है . तो यदि बम की भाषा ही उन्हें समझ में आती है तो उन्हें उसी भाषा में जबाब देने का पाठ हमारे नेताओ को सिखाना ही पड़ेगा और इस काम के लिये कबीर का एक ही दोहा काफी है खीरा सर से काटिये, मलिये नमक लगाए, देख कबीरा यह कहे, कड़वन यही सुहाए ..
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कैसा लगा ..! जानकर प्रसन्नता होगी !