व्यंगलेख
नये कुल ,गोत्र, जाति और संप्रदाय
विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो ९४२५८०६२५२
धर्म , कुल , गोत्र, जाति और संप्रदाय की जड़ें हमारी संस्कारों में बहुत गहरी हैं . यूं हम आचरण में धर्म के मूल्यो का पालन करें न करें , पर यदि झूठी अफवाह भी फैल जाये कि किसी ने हमारे धर्म या जाति पर उंगली भी उठा दी है , तो हम कब्र से निकलकर भी अपने धर्म की रक्षा के लिये सड़को पर उतर आते हैं , यह हमारा राष्ट्रीय चरित्र है . हमें इस पर गर्व है . इतिहास साक्षी है धर्म के नाम पर ढ़ेरो युद्ध लड़े गये हैं , कुल , जाति , उपजाति ,गोत्र , संप्रदाय के नाम पर समाज सदैव बंटा रहा है . समय के साथ लड़ाई के तरीके बदलते रहे हैं , आज भी जाति और संप्रदाय भारतीय राजनीति में अहं भूमिका निभा रहे है . वोट की जोड़ तोड़ में जातिगत समीकरण बेहद महत्वपूर्ण हैं . जिसने यह गणित समझ लिया वह सत्ता मैनेज करने में सफल हुआ .इन जातियों , कुल , गोत्र आदि का गठन कैसे हुआ होगा ? यह समाज शास्त्र के शोध का विषय है पर मोटे तौर पर मेरे जैसे नासमझ भी समझ सकते हैं कि तत्कालीन , अपेक्षाकृत अल्पशिक्षित समाज को एक व्यवस्था के अंतर्गत चलाने के लिये इस तरह के मापदण्ड व परिपाटियां बनाई गई रही होंगी , जिनने लम्बे समय में रुढ़ि व कट्टरता का स्वरूप धारण कर लिया . चरम पंथी कट्टरता इस स्तर तक बढ़ी कि धर्म , कुल , गोत्र, जाति और संप्रदाय से बाहर विवाह करने के प्रेमी दिलों के प्रस्तावों पर हर पीढ़ी में विरोध हुये , कहीं ये हौसले दबा दिये गये , तो कही युवा मन ने बागी तेवर अपनाकर अपनी नई ही दुनिया बसाने में सफलता पाई . जब पुरा्तन पंथी हार गये तो उन्होने समरथ को नहिं दोष गोंसाईं का राग अलाप कर चुप्पी लगा ली , और जब रुढ़िवादियों की जीत हुई तो उन्होने जात से बाहर , तनखैया वगैरह करके प्रताड़ित करने में कसर न उठा रखी . जो भी हो , इस डर से समाज एक परंपरा गत व्यवस्था से संचालित होता रहा है . धर्म , कुल , गोत्र, जाति और संप्रदाय के बंधन प्रायः शादी विवाह , रिश्ते तय करने हेतु मार्ग दर्शक सिद्धांत बनते गये . पर दिल तो दिल है , गधी पर दिल आये तो परी क्या चीज है ? जब तब धर्म की सीमाओ को लांघकर प्रेमी जोड़े , प्रेम के कीर्तिमान बनाते रहे हैं . प्रेम कथाओ के नये नये हीरो और कथानक रचते रहे हैं . इसी क्रम को नई पीढ़ी बहुत तेजी से आगे बढ़ा रही लगती है .
यह सदी नवाचार की है . नई पीढ़ी नये धर्म , कुल , गोत्र, जाति और संप्रदाय बना रही है . आज इन पुरातन जाति के बंधनो से परे बहुतायत में आई ए एस की शादी आई ए एस से , डाक्टर की डाक्टर से , साफ्टवेयर इंजीनियर की साफ्टवेयर इंजीनियर से , जज की जज से , मैनेजर की मैनेजर से होती दिख रही हैं . ऐसी शादियां सफल भी हो रही हैं . ये शादियां माता पिता नही स्वयं युवक व युवतियां तय कर रहे हैं . माता पिता तो ऐसे विवाहो के समारोहो में खुद मेहमान की भूमिका में दिखते हैं .बच्चों से संबंध रखना है तो , उनके पास इन नये कुल गोत्र जाति की शादियो को स्वीकारने के सिवाय और कोई विकल्प ही नही होता . मतलब शिक्षा , व्यवसाय , कंपनी , ने कुल , गोत्र, जाति का स्थान ले लिया है . इन वैवाहिक आयोजनो में रिश्तेदारों से अधिक दूल्हे दुल्हन के मित्र नजर आते हैं .रिश्तेदार तो बस मौके मौके पर नेग के लिये सजावट के सामान की तरह स्थापित दिखते हैं . ऐसे आयोजनो का प्रायः खर्च स्वयं वर वधू उठाते है .सामान्यतया कहा जाता था कि दूल्हे को दुल्हन मिली , बारातियो को क्या मिला ? पर मैनेजमेंट मे निपुण इस नई पीढ़ी ने ये समारोह परंपराओ से भिन्न तरीको से पांच सितारा होतलों और नये नये कांसेप्ट्स के साथ आयोजित कर सबके मनोरंजन के लिये व्यवस्थाये करने में सफलता पाई है . कोई डेस्टिनेशन मैरिज कर रहा है तो कोई थीम मैरिज आयोजित कर रहा है .ये विवाह सचमुच उत्सव बन रहे हैं . कुटुम्ब के मिलन समारोह के रूप में भी ये विवाह समारोह स्थापित हो रहे हैं . लड़कियो की शिक्षा से समाज में यह क्रांतिकारी परिवर्तन होता दिख रहा है . लड़के लड़की दोनो की साफ्टवेयर इंजीनियरिंग जैसे व्यवसायों की मल्टीनेशनल कंपनी की आय मिला दें तो वह औसत परिवारो की सकल आय से ज्यादा होती है , इसी के चलते दहेज जैसी कुप्रथा जिसके उन्मूलन हेतु सरकारी कानून भी कुछ ज्यादा नही कर सके खुद ही समाप्त हो रही है . हमारी तो पत्नी ही हम पर हुक्म चलाती है , पर इन विवाहो में सब कुछ लड़की की मरजी से ही होता दिखता है , क्योकि कुवर जी पर दुल्हन का पूरा हुक्म चलता दिखता है .
यूं तो नये समय में कालेज से निकलते निकलते ही बाय फ्रेंड , गर्ल फ्रेंड , अफेयर , ब्रेकअप इत्यादि सब होने लगा है , पर फिर भी जो कुछ युवा कालेज के दिनो में सिसियरली पढ़ते ही रहते हैं उनके विवाह तय करने में नाई , पंडित की भूमिका समाप्त प्राय है , उसकी जगह शादी डाट काम , जीवनसाथी डाट काम आदि वेब साइट्स ने ले ली है . युवा पीढ़ी एस एम एस , चैटिग , मीटिग , डेटिंग , आउटिंग से स्वयं ही अपनी शादियां तय कर रही है . सार्वजनिक तौर से हम जितना उन्मुक्त शादी के २० बरस बाद भी अपनी पिताजी की पसंद की पत्नी से नही हो पाये हैं ,हनीमून पर जाने की आवश्यकता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुये परस्पर उससे ज्यादा फ्री , ये वर वधू विवाह के स्वागत समारोह में नजर आते हैं .नये धर्म , कुल , गोत्र, जाति और संप्रदाय की रचियता इस पीढ़ी को मेरा फिर फिर नमन . सच ही है समरथ को नही दोष गुसाईं .मैं इस परिवर्तन को व्यंजना , लक्षणा ही नही अमिधा में भी स्वीकार करने में सबकी भलाई समझने लगा हूं .पारंपरिक कुल , जाति गोत्र अब केवल वोट की राजनीति और धार्मिक उन्माद फैलाने के ही काम के रह गये हैं , विवाह हेतु हमारी नई पीढ़ी ने ये नये कुल , जाति और गोत्र रच लिये हैं , जो धर्म की सीमाओ से परे हैं .
विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो ९४२५८०६२५२
nice
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