Tuesday, February 23, 2010

बतंगड़ जी के घर की सरकार का इलेक्शन

व्यंग
बतंगड़ जी के घर की सरकार का इलेक्शन
विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर


बतंगड़ जी मेरे पड़ोसी हैं . उनके घर में वे हैं , उनकी एकमात्र सुंदर सुशील पत्नी है , तीन बच्चे हैं जिनमें दो बेटियां और एक आज्ञाकारी होनहार , होशियार बेटा है , और हैं उनके वयोवृद्ध पिता . मैं उनके घर के रहन सहन परिवार जनो के परस्पर प्यार , व्यवार का प्रशंसक हूं . जितनी चादर उतने पेर पसारने की नीति के कारण इस मंहगाई के जमाने में भी बतंगड़ जी के घर में बचत का ही बजट रहता है . परिवार में शिक्षा का वातावरण है . उनके यहां सदा ही आदर्श आचार संहिता का वातावड़ण होता है , जिससे मैं प्रभावित हूं .
देश की संसद के चुनाव हुये , सरकार बनी . हम चुनावों के खर्च से बढ़ी हुई मंहगाई को सहने की शक्ति जुटा ही रहे थे कि लोकतंत्र की दुहाई देते हुये राज्य की सरकार के गठन के लिये चुनावी अधिसूचना जारी हो गई . आदर्श आचार संहिता लग गई , सरकारी कर्मचारियों की छुट्टियां कैंसिल कर दी गई . उन्हें एक बार फिर से चुनावी प्रशिक्षण दिया गया . अखबारों में पुनः नेता जी की फुल पेज रंगीन तस्वीर के विज्ञापन छपने लगे . नेता जी पुनः गली मोहल्ले में सघन जन संपर्क करते नजर आने लगे .वोट पड़े . त्रिशंकु विधान सभा चुनी गई . हार्स ट्रेडिंग , दल बदल , भीतर बाहर से समर्थन वगैरह के जुमले , कामन मिनिमम प्रोग्राम इत्यादि इत्यादि के साथ अंततोगत्वा सरकार बन ही गई . लोकतंत्र की रक्षा हुई . लोग खुश हुये . मंत्री जी प्रदेश के न होकर अपनी पार्टी और अपने विधान सभा क्षेत्र के होकर रह गये ,नेता गण हाई कमान के एक इशारे पर अपना इस्तीफा हाथ में लिये गलत सही मानते मनवाते दिखे . कुर्सी से चिपके नेता अपने कुर्सी मोह को शब्दो के वाक्जाल से आदर्शो का नाम देते रहे . साल डेढ़ साल बीता होगा कि फिर से चुनाव आ गये , इस बार नगर निगम और ग्राम पंचायतो के चुनाव होने थे . झंडे ,बैनर वाले , टेट हाउस वाले , माला और पोस्टर वाले को फिर से रोजगार मिल गया .पछले चुनावों के बाद हार जीत के आधार पर मुख्यमंत्री जी द्वारा बदल दिया गया सरकारी अमला पुनः लोकतंत्र की रक्षा हेतु चुनाव कराने में जुट गया . इस बार एक एक वोट की खीमत ज्यादा थी , इसलिये नेता जी ने झुग्गी बस्तियो में नाच गाने के आयोजन करवाये , अब यह तो समझने की बात है कि जब हर वोट कीमती हो तो दारू वारू , कम्बल धोती जैसी छोटी मोटी चीजें उपहार स्वरूप ली दी गईं होंगी , पत्रकारो को रुपये बांटकर अखबारो में जगह बनाई गई होगी . एवरी थिंग इज फेयर इन लव वार एण्ड इलेक्शन . खैर , ये चुनाव भी सुसंपन्न हुये , क्या हुआ जो कुछ एक घटनाये मार पीट की हुई , कही छुरे चले , दो एक वारदात गोली बारी की हुईं . इतनी कीमत में जनता की जनता के द्वारा , जनता के लिये चुनी गई सरकार कुछ ज्यादा बुरी नही है .
लगातार , हर साल दो साल में होते इन चुनावो का असर बतंगड़ जी घर पर भी हुआ . बतंगड़ जी की पत्नी , और बच्चो के अवचेतन मस्तिष्क में लोकतांत्रिक भावनाये संपूर्ण परिपक्वता के साथ घर कर गई . उन्हे लगने लगा कि घर में जो बतंगड़ जी का राष्ट्रपति शासन चल रहा है वह नितांत अलोकतांत्रिक है . उन्हें अमेरिका से कंम्पेयर किया जाने लगा , जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकतांत्रिक सिद्धांतो की सबसे ज्यादा बात तो करता है पर करता वही है जो उसे करना होता है . बच्चो के सिनेमा जाने की मांग को उनकी ही पढ़ाई के भले के लिये रोकने की विटो पावर को चैलेंज किया जाने लगा , पत्नी की मायके जाने की डिमांड बलवती हो गई . मुझे लगने लगा कि एंटी इनकंम्बेंसी फैक्टर बतंगड़ जी को कही का नही छोड़ेगा . अस्तु , एक दिन चाय पर घर की सरकार के लोकतांत्रिक स्वरूप को लेकर खुली बहस हई . महिला आरक्षण का मुद्दा गरमाया .संयोग वश मै भी तब बतंगड़ जी के घर पर ही था , मैने अपना तर्क रकते हुये भारतीय संस्कृति की दुहाई दी और बच्चो को बताया कि हमारे संस्कारो में विवाह के बाद पत्नी स्वतः ही घर की स्वामिनी होती है ,बतंगड़ जी जो कुछ करते कहते है उसमे उनकी मम्मी की भी सहमति होती है . पर मेरी बातें संसद में विपक्ष के व्यक्तव्य की तरह अनसुनी कर दी गई . तय हुआ कि घर के सुचारु संचालन के लिये चुनाव हों . निष्पक्ष चुनावों के लिये बच्चो ने मेरी एक सदस्यीय समिति का गठन कर , तद्संबंधी सूचना परिवार के सभी सदस्यो को दे दी . अपने अस्तित्व की लोकतांत्रिक लड़ाई लड़ने के लिये गृह प्रतिनिधि चयन हेतु बतंगड़ जी को अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करनी ही पड़ी . मुख्य प्रतिद्वंदी उनकी ही अपनी पत्नी थी , मतदान से पहले एक सप्ताह का समय , प्रचार के लिये मिला है . जिसके चलते पत्नी जी नित नये पकवान बनाकर बच्चो सहित हम सबका मन मोह लेना चाहती थी ,निष्पक्ष चुनाव प्रभारी होने के नाते मै अतिथि होते हुये भी इन दिनो उन पकवानो से वंचित हूं . बतंगड़ जी ने भी कुछ लिबरल एटीट्यूड अपनाते हुये सबको फिल्म ले जाने की पेशकश की है , सरप्राइज गिफ्ट के तौर पर बच्चो के लिये नये कपड़े , पिताजी की एक छड़ी सही सलामत होते हुये भी नई मेडिको वाकिंग स्टिक और पत्नी के लिये मेकअप का ढ़ेर सा सामान ले आये है. इन चुनावो के चक्कर में जो बजट बिगड़ा है उसकी पूर्ति हेतु बतंगड़ जी मुझसे सलाह कर रहे थे , तो मैने उन्हें बताया कि जब चुनावी खर्च के लिये देश चिंता नही करता तो फिर आप क्यों कर रहे हैं ? देश एशियन डेवलेप मेंट बैंक से लोन लेता है , डेफिशिट का बजट बनाता है , आप भी लोन लेने के लिये बैंक से फार्म ले आयें . बतंगड़ जी के घर के चुनावो में बच्चो के मामा और बुआ जी के परिवार अपना प्रभाव स्थापित करने के पूरे प्रयास करते दिख रहे है, जैसे हमारे देश के चुनावो में विदेशी सरकारे करती है . स्वतंत्र व निष्पक्ष आब्जरवर की हैसियत से मैने बतंगड़ जी के दूसरे पड़ोसियो को भी बुलावा भेजा है ... मतदान की तिथी अभी दूर है पर बिना मतदान हुये , केवल घर की सरकार के चुनावो के नाम पर ही बतंगड़ जी के घर में रंगीनियो का सुमधुर वातावरण है , और हम सब उसका लुत्फ ले रहे हैं .

1 comment:

  1. वाह बहुत अच्छा लगा ये व्यंग । रंजन जी को बधाई । धन्यवाद्

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कैसा लगा ..! जानकर प्रसन्नता होगी !