व्यंग
लो फिर लग गई आचार संहिता
विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म प्र ४८२००८
मो ९४२५४८४४५२
लो फिर लग गई आचार संहिता . अब महीने दो महीने सारे सरकारी काम काज नियम कायदे से होंगें . पूरी छान बीन के बाद . नेताओ की सिफारिश नही चलेगी . वही होगा जो कानून बोलता है , जो होना चाहिये . अब प्रशासन की तूती बोलेगी . जब तक आचार संहिता लगी रहेगी सरकारी तंत्र , लोकतंत्र पर भारी पड़ेगा .बाबू साहबों के पास लोगो के जरूरी काम काज टालने के लिये आचार संहिता लगे होने का आदर्श बहाना होगा . सरकार की उपलब्धियो के गुणगान करते विज्ञापन और विज्ञप्तियां समाचारों में नही दिखेंगी . अखबारो से सरकारी निविदाओ के विज्ञापन गायब हो जायेंगे . सरकारी कार्यालय सामान्य कामकाज छोड़कर चुनाव की व्यवस्था में लग जायेंगे .
मंत्री जी का निरंकुश मंत्रित्व और राजनीतिज्ञो के छर्रो का बेलगाम प्रभुत्व आचार संहिता के नियमो उपनियमो और उपनियमो की कंडिकाओ की भाषा में उलझा रहेगा . प्रशासन के प्रोटोकाल अधिकारी और पोलिस की सायरन बजाती मंत्री जी की एस्कार्टिंग करती और फालोअप में लगी गाड़ियो को थोड़ा आराम मिलेगा . मन मसोसते रह जायेंगे लोकशाही के मसीहे , लाल बत्तियो की गाड़ियां खड़ी रह जायेंगी . शिलान्यास और उद्घाटनों पर विराम लग जायेगा . सरकारी डाक बंगले में रुकने , खाना खाने पर मंत्री जी तक बिल भरेंगे . मंत्री जी अपने भाषणो में विपक्ष को कितना भी कोस लें पर लोक लुभावन घोषणायें नही कर सकेंगे .
सरकारी कर्मचारी लोकशाही के पंचवर्षीय चुनावी त्यौहार की तैयारियो में व्यस्त हो जायेंगे . कर्मचारियो की छुट्टियां रद्द हो जायेंगी .वोट कैंपेन चलाये जायेंगे . चुनाव प्रशिक्षण की क्लासेज लगेंगी .चुनावी कार्यो से बचने के लिये प्रभावशाली कर्मचारी जुगाड़ लगाते नजर आयेंगे .देश के अंतिम नागरिक को भी मतदान करने की सुविधा जुटाने की पूरी व्यवस्था प्रशासन करेगा . रामभरोसे जो इस देश का अंतिम नागरिक है , उसके वोट को कोई अनैतिक तरीको से प्रभावित न कर सके , इसके पूरे इंतजाम किये जायेंगे . इसके लिये तकनीक का भी भरपूर उपयोग किया जायेगा , वीडियो कैमरे लिये निरीक्षण दल चुनावी रैलियो की रिकार्डिग करते नजर आयेंगे . अखबारो से चुनावी विज्ञापनो और खबरो की कतरनें काट कर पेड न्यूज के एंगिल से उनकी समीक्षा की जायेगी राजनैतिक पार्टियो और चुनावी उम्मीदवारो के खर्च का हिसाब किताब रखा जायेगा . पोलिस दल शहर में आती जाती गाड़ियो की चैकिंग करेगा कि कहीं हथियार , शराब , काला धन तो चुनावो को प्रभावित करने के लिये नही लाया ले जाया रहा है .मतलब सब कुछ चुस्त दुरुस्त नजर आयेगा . ढ़ील बरतने वाले कर्मचारी पर प्रशासन की गाज गिरेगी . उच्चाधिकारी पर्यवेक्षक बन कर दौरे करेंगे .सर्वेक्षण रिपोर्ट देंगे . चुनाव आयोग तटस्थ चुनाव संपन्न करवा सकने के हर संभव यत्न में निरत रहेगा . आचार संहिता के प्रभावो की यह छोटी सी झलक है .
केजरीवाल जी को उनके लक्ष्य के लिये हम आदर्श आचार संहिता का नुस्खा बताना चाहते हैं . व्यर्थ में राहुल , मोदी , या अंबानी सबको कोसने की अपेक्षा उन्हें यह मांग करनी चाहिये कि देश में सदा आचार संहिता ही लगी रहे , अपने आप सब कुछ वैसा ही चलेगा जैसा वे चाहते हैं . प्रशासन मुस्तैद रहेगा और मंत्री महत्वहीन रहेंगें तो भ्रष्टाचार नही होगा . बेवजह के निर्माण कार्य नही होंगे तो अधिकारी कर्मचारियो को रिश्वत का प्रश्न ही नही रहेगा . आम लोगो का क्या है उनके काम तो किसी तरह चलते ही रहते हैं धीरे धीरे , केजरीवाल मुख्यमंत्री थे तब भी और जब नही हैं तब भी , लोग जी ही रहे हैं . मुफ्त पानी मिले ना मिले , बिजली का पूरा बिल देना पड़े या आधा , आम आदमी किसी तरह एडजस्ट करके जी ही लेता है , यही उसकी विशेषता है .
कोई आम आदमी को विकास के सपने दिखाता है , कोई यह बताता है कि पिछले दस सालो में कितने एयरपोर्ट बनाये गये और कितने एटीएम लगाये गये हैं . कोई यह गिनाता है कि उन्ही दस सालो में कितने बड़े बड़े भ्रष्टाचार हुये , या मंहगाई कितनी बढ़ी है . पर आम आदमी जानता है कि यह सब कुछ , उससे उसका वोट पाने के लिये अलापा जा रहा राग है . आम आदमी ही लगान देता रहा है , राजाओ के समय से . अब वही आम व्यक्ति ही तरह तरह के टैक्स दे रहा है , इनकम टैक्स , सर्विस टैक्स , प्रोफेशनल टैक्स ,और जाने क्या क्या , प्रत्यक्ष कर , अप्रत्यक्ष कर . जो ये टैक्स चुराने का दुस्साहस कर पा रहा है वही अंबानी बन पा रहा है .
जो आम आदमी को सपने दिखा पाने में सफल होता है वही शासक बन पाता है . परिवर्तन का सपना , विकास का सपना , घर का सपना , नौकरी का सपना , भांति भांति के सपनो के पैकेज राजनैतिक दलो के घोषणा पत्रो में आदर्श आचार संहिता के बावजूद भी चिकने कागज पर रंगीन अक्षरो में सचित्र छप ही रहे हैं और बंट भी रहे हैं . हर कोई खुद को आम आदमी के ज्यादा से ज्यादा पास दिखाने के प्रयत्न में है . कोई खुद को चाय वाला बता रहा है तो कोई किसी गरीब की झोपड़ी में जाकर रात बिता रहा है , कोई स्वयं को पार्टी के रूप में ही आम आदमी रजिस्टर्ड करवा रहा है . पिछले चुनावो के रिकार्डो आधार पर कहा जा सकता है कि आदर्श आचार संहिता का परिपालन होते हुये , भारी मात्रा में पोलिस बल व अर्ध सैनिक बलो की तैनाती के साथ इन समवेत प्रयासो से दो तीन चरणो में चुनाव तथाकथित रूप से शांति पूर्ण ढ़ंग से सुसंम्पन्न हो ही जायेंगे . विश्व में भारतीय लोकतंत्र एक बार फिर से सबसे बड़ी डेमोक्रेसी के रूप में स्थापित हो जायेगा . कोई भी सरकार बने अपनी तो बस एक ही मांग है कि शासन प्रशासन की चुस्ती केवल आदर्श आचार संहिता के समय भर न हो बल्कि हमेशा ही आदर्श स्थापित किये जावे , मंत्री जी केवल आदर्श आचार संहिता के समय डाक बंगले के बिल न देवें हमेशा ही देते रहें . राजनैतिक प्रश्रय से ३ के १३ बनाने की प्रवृत्ति पर विराम लगे ,वोट के लिये धर्म और जाति के कंधे न लिये जावें , और आम जनता और लोकतंत्र इतना सशक्त हो की इसकी रक्षा के लिये पोलिस बल की और आचार संहिता की आवश्यकता ही न हो .
लो फिर लग गई आचार संहिता
विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म प्र ४८२००८
मो ९४२५४८४४५२
लो फिर लग गई आचार संहिता . अब महीने दो महीने सारे सरकारी काम काज नियम कायदे से होंगें . पूरी छान बीन के बाद . नेताओ की सिफारिश नही चलेगी . वही होगा जो कानून बोलता है , जो होना चाहिये . अब प्रशासन की तूती बोलेगी . जब तक आचार संहिता लगी रहेगी सरकारी तंत्र , लोकतंत्र पर भारी पड़ेगा .बाबू साहबों के पास लोगो के जरूरी काम काज टालने के लिये आचार संहिता लगे होने का आदर्श बहाना होगा . सरकार की उपलब्धियो के गुणगान करते विज्ञापन और विज्ञप्तियां समाचारों में नही दिखेंगी . अखबारो से सरकारी निविदाओ के विज्ञापन गायब हो जायेंगे . सरकारी कार्यालय सामान्य कामकाज छोड़कर चुनाव की व्यवस्था में लग जायेंगे .
मंत्री जी का निरंकुश मंत्रित्व और राजनीतिज्ञो के छर्रो का बेलगाम प्रभुत्व आचार संहिता के नियमो उपनियमो और उपनियमो की कंडिकाओ की भाषा में उलझा रहेगा . प्रशासन के प्रोटोकाल अधिकारी और पोलिस की सायरन बजाती मंत्री जी की एस्कार्टिंग करती और फालोअप में लगी गाड़ियो को थोड़ा आराम मिलेगा . मन मसोसते रह जायेंगे लोकशाही के मसीहे , लाल बत्तियो की गाड़ियां खड़ी रह जायेंगी . शिलान्यास और उद्घाटनों पर विराम लग जायेगा . सरकारी डाक बंगले में रुकने , खाना खाने पर मंत्री जी तक बिल भरेंगे . मंत्री जी अपने भाषणो में विपक्ष को कितना भी कोस लें पर लोक लुभावन घोषणायें नही कर सकेंगे .
सरकारी कर्मचारी लोकशाही के पंचवर्षीय चुनावी त्यौहार की तैयारियो में व्यस्त हो जायेंगे . कर्मचारियो की छुट्टियां रद्द हो जायेंगी .वोट कैंपेन चलाये जायेंगे . चुनाव प्रशिक्षण की क्लासेज लगेंगी .चुनावी कार्यो से बचने के लिये प्रभावशाली कर्मचारी जुगाड़ लगाते नजर आयेंगे .देश के अंतिम नागरिक को भी मतदान करने की सुविधा जुटाने की पूरी व्यवस्था प्रशासन करेगा . रामभरोसे जो इस देश का अंतिम नागरिक है , उसके वोट को कोई अनैतिक तरीको से प्रभावित न कर सके , इसके पूरे इंतजाम किये जायेंगे . इसके लिये तकनीक का भी भरपूर उपयोग किया जायेगा , वीडियो कैमरे लिये निरीक्षण दल चुनावी रैलियो की रिकार्डिग करते नजर आयेंगे . अखबारो से चुनावी विज्ञापनो और खबरो की कतरनें काट कर पेड न्यूज के एंगिल से उनकी समीक्षा की जायेगी राजनैतिक पार्टियो और चुनावी उम्मीदवारो के खर्च का हिसाब किताब रखा जायेगा . पोलिस दल शहर में आती जाती गाड़ियो की चैकिंग करेगा कि कहीं हथियार , शराब , काला धन तो चुनावो को प्रभावित करने के लिये नही लाया ले जाया रहा है .मतलब सब कुछ चुस्त दुरुस्त नजर आयेगा . ढ़ील बरतने वाले कर्मचारी पर प्रशासन की गाज गिरेगी . उच्चाधिकारी पर्यवेक्षक बन कर दौरे करेंगे .सर्वेक्षण रिपोर्ट देंगे . चुनाव आयोग तटस्थ चुनाव संपन्न करवा सकने के हर संभव यत्न में निरत रहेगा . आचार संहिता के प्रभावो की यह छोटी सी झलक है .
केजरीवाल जी को उनके लक्ष्य के लिये हम आदर्श आचार संहिता का नुस्खा बताना चाहते हैं . व्यर्थ में राहुल , मोदी , या अंबानी सबको कोसने की अपेक्षा उन्हें यह मांग करनी चाहिये कि देश में सदा आचार संहिता ही लगी रहे , अपने आप सब कुछ वैसा ही चलेगा जैसा वे चाहते हैं . प्रशासन मुस्तैद रहेगा और मंत्री महत्वहीन रहेंगें तो भ्रष्टाचार नही होगा . बेवजह के निर्माण कार्य नही होंगे तो अधिकारी कर्मचारियो को रिश्वत का प्रश्न ही नही रहेगा . आम लोगो का क्या है उनके काम तो किसी तरह चलते ही रहते हैं धीरे धीरे , केजरीवाल मुख्यमंत्री थे तब भी और जब नही हैं तब भी , लोग जी ही रहे हैं . मुफ्त पानी मिले ना मिले , बिजली का पूरा बिल देना पड़े या आधा , आम आदमी किसी तरह एडजस्ट करके जी ही लेता है , यही उसकी विशेषता है .
कोई आम आदमी को विकास के सपने दिखाता है , कोई यह बताता है कि पिछले दस सालो में कितने एयरपोर्ट बनाये गये और कितने एटीएम लगाये गये हैं . कोई यह गिनाता है कि उन्ही दस सालो में कितने बड़े बड़े भ्रष्टाचार हुये , या मंहगाई कितनी बढ़ी है . पर आम आदमी जानता है कि यह सब कुछ , उससे उसका वोट पाने के लिये अलापा जा रहा राग है . आम आदमी ही लगान देता रहा है , राजाओ के समय से . अब वही आम व्यक्ति ही तरह तरह के टैक्स दे रहा है , इनकम टैक्स , सर्विस टैक्स , प्रोफेशनल टैक्स ,और जाने क्या क्या , प्रत्यक्ष कर , अप्रत्यक्ष कर . जो ये टैक्स चुराने का दुस्साहस कर पा रहा है वही अंबानी बन पा रहा है .
जो आम आदमी को सपने दिखा पाने में सफल होता है वही शासक बन पाता है . परिवर्तन का सपना , विकास का सपना , घर का सपना , नौकरी का सपना , भांति भांति के सपनो के पैकेज राजनैतिक दलो के घोषणा पत्रो में आदर्श आचार संहिता के बावजूद भी चिकने कागज पर रंगीन अक्षरो में सचित्र छप ही रहे हैं और बंट भी रहे हैं . हर कोई खुद को आम आदमी के ज्यादा से ज्यादा पास दिखाने के प्रयत्न में है . कोई खुद को चाय वाला बता रहा है तो कोई किसी गरीब की झोपड़ी में जाकर रात बिता रहा है , कोई स्वयं को पार्टी के रूप में ही आम आदमी रजिस्टर्ड करवा रहा है . पिछले चुनावो के रिकार्डो आधार पर कहा जा सकता है कि आदर्श आचार संहिता का परिपालन होते हुये , भारी मात्रा में पोलिस बल व अर्ध सैनिक बलो की तैनाती के साथ इन समवेत प्रयासो से दो तीन चरणो में चुनाव तथाकथित रूप से शांति पूर्ण ढ़ंग से सुसंम्पन्न हो ही जायेंगे . विश्व में भारतीय लोकतंत्र एक बार फिर से सबसे बड़ी डेमोक्रेसी के रूप में स्थापित हो जायेगा . कोई भी सरकार बने अपनी तो बस एक ही मांग है कि शासन प्रशासन की चुस्ती केवल आदर्श आचार संहिता के समय भर न हो बल्कि हमेशा ही आदर्श स्थापित किये जावे , मंत्री जी केवल आदर्श आचार संहिता के समय डाक बंगले के बिल न देवें हमेशा ही देते रहें . राजनैतिक प्रश्रय से ३ के १३ बनाने की प्रवृत्ति पर विराम लगे ,वोट के लिये धर्म और जाति के कंधे न लिये जावें , और आम जनता और लोकतंत्र इतना सशक्त हो की इसकी रक्षा के लिये पोलिस बल की और आचार संहिता की आवश्यकता ही न हो .
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कैसा लगा ..! जानकर प्रसन्नता होगी !