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Thursday, February 25, 2010

1411


व्यंग
बच्चों आओ, बाघ बचाओ!
- विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओबी- 11 एमपीईबी कालोनी
रामपुर जबलपुर
9425806252

‘बच्चों आओ, बाघ बचाओ‘ सुनकर चैकियेगा नहीं यह अपील मैं उसी महान परम्परा का निर्वहन करते हुये, कर रहा हूं, जिसके अनुसार हम हर संकट का समाधान , हर समस्या का निदान, स्कूलों में ढूंढते आये है। धरती का जल स्तर गिर रहा हो, पल्स पोलियो अभियान हो, आयोडीन नमक के लिये जनजाग्रति करनी हो, सर्वशिक्षा अभियान चलाना हो, या उपभोक्ता अधिकारों को लेकर कोई आंदोलन चलाना हो तो भी , मतलब हर कार्यक्रम की सफलता के लिये बच्चों की रैली, बच्चों के द्वारा निबंध लेखन, बच्चों की चित्रकला या कहानी प्रतियोगिता का आयोजन करना हमारी परम्परा है। बिजली बचाने की मुहिम हो, या पालीथिन के खिलाफ आंदोलन, यहां तक कि एड्स के विरोध में और परिवार नियोजन के प्रचार तक के लिये बच्चों की रैली निकलते हुये, हम आप देखते ही है। बच्चे, कल के विशव की धरोहर हैं, उन्हें सीख देकर हम सरलता से अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर पाते है। स्कूलो में बच्चे एक साथ मिल जाते है। भीड जुट जाती है,अखबारो में मुख्य अतिथि का मुस्कराता फोटो छप जाता है , आयोजन सफल और सुसंपन्न हो जाता है।
प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हर विपत्ति में , हर समस्या के निदान में स्कूलों का योगदान महत्वपूर्ण है। चुनाव होने हों तो स्कूलो में चुनाव केन्द्र बन जाता है, मास्साब की ड्यूटी चुनाव करवाने से लेकर जनगणना तक में लगाकर ये राष्ट्रीय कार्यक्रम संपन्न किये जाते है। बाढ़ आ जाये तो स्कूल, बाढ़ पीड़ितो की शरण स्थली में बदल जाता है। भूकम्प पीड़ीत लोगों या सैनिको की सहायता के लिये राशि एकत्रित करनी हो , तो भी हमारे बच्चे चंदा देकर अग्रणी भूमिका का निर्वाह करते हैं । अर्थात प्रत्येक राष्ट्रीय घटना में स्कूलों और बच्चों की अहॅं भूमिका निर्विवाद है। अतः आज जब देश में ‘बाघ‘ संकट में है,केवल १४११ बाघ बचे हैं आज भारत भूमि में , तो इस परिप्रेक्ष्य में मेरी यह अपील कि ‘बच्चों आओ-बाघ बचाओ‘ मायने रखती है।
वैसे बाघ माँ दुर्गा का वाहन है। और बाघो की कमी यह प्रदर्शित करती है कि माँ दुर्गा अपने वाहन का माडल बदलने के चक्कर में है। एंटीक, विंटेज कारों का महत्व हम सब समझते हैं । सो बाघ का महत्व निर्विवाद है। बाघों को डायनासौर की तरह विलुप्त होने से बचाने के लिये हमारे बच्चों को तो आगे आना ही होगा। हम सब भी कुछ कर सकें, तो बेहतर होगा वरना बाघ भी केवल डाक टिकटो में नजर आया करेंगे या सजिल्द पुस्तको में कैद होकर रह जायेंगे । इस दिशा में अमिताभ जी ने तो अपना फर्ज बहुत पहले ही निभा दिया है, उन्होने स्वंय अपनी आवाज में, एक गाना भी गाया है, और उस पर अभिनय भी किया है, जिसमें वे एक बच्चे को कहानी सुनाते हैं कि, किस तरह एक बाघ ने उन्हें मारकर खा लिया, और बच्चा हॅंस पड़ता है। अब हमारी बारी है , हम सब को कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा , अन्यथा ढ़ूढ़ते रह जाओगे . बाघ हमारी संस्कृति में रचा बसा है , लोकसंस्कृति में बाघ नृत्य करते लोकनर्तक हमारी इसी भावना का प्रदर्शन करते हैं . दरअसल जब बाघ को रहने के लिये जंगल न होगा, खाने के लिये दूसरे जानवर न होंगे तो, भले ही वह जंगल का राजा कहलाये पर संकट में तो आ ही जायेगा। वह आत्मरक्षा में संघर्ष करेगा, और हमें खायेगा। ये और बात है कि चतुर मानव की वह घटिया प्रजाति, जिसे शेर के चमड़े का व्यापार करना होता है, और शेर के दाँत और नाखून बेचकर रूपये बनाने होते है, वह जरूर शेर का शिकार करने से नहीं चूक रही, उन शिकारियों और वन्य पशुओ के तस्करों पर नियंत्रण करने वाले जंगल मुहकमे के बड़े अमले को जो जागते हुये सो रहा है उसे जगाओं, मेरे बच्चो ! शोर मचाओं,चिल्लाओ बाघ बचाओं। कभी हम बाघ से बचते थे आज समय आया है जब हमें बाघ बचाने का बीड़ा उठाना जरूरी है .
बच्चों आओ बाघ के चित्र बनाओ, बाघ पर गीत रचो, कहानियां लिखो, अपने-अपने माता-पिता, तक बाघों की घटती संख्या की चिंता का संदेश पहुंचाओ। क्योकि बाघ हैं तो जंगल का विसाल साम्राज्य है , जंगल हैं तो हम तुम हैं , अतः स्वयं हमारे लिये जरूरी है कि बाघ बचाओ अभियान सफल हो । मेरा विश्वास है बच्चों कि, तुम अपने अभियान में जरूर सफल होगे और जल्दी ही बाघो की संख्या १४११ से बढ़कर ४१११ हो जायेगी , केवल सरकारी आंकड़ो में नही , वरन सचमुच जंगलों में । मेरी शुभकामनायें तुम्हारे साथ है।

Wednesday, February 24, 2010

वात्सायन पुरस्कारो की स्थापना हो अब

अव्यंग
वात्सायन पुरस्कारो की स्थापना हो अब

विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर
मो ९४२५८०६२५२


यह समय कीर्तीमानो का है . तरह तरह के कीर्तिमान बनाये जा रहे हैं , उनका लेखा जोखा रखा जा रहा है .तरह तरह के सम्मान , पुरुस्कार स्थापित हो रहे हैं ,सम्मान पाकर लोग गौरवांवित हो रहे हैं . . पहले का समय और था ,पुरस्कार देकर देने वाले गौरवान्वित होते थे अब पुरुस्कारों के लिये जुगाड़ किये जा रहे हैं , जिन्हें सीधे तरीको से पुरस्कार नही मिल पाते , वे अपने लिये नई कैटेगिरी ही बनवा लेते हैं .खेलकूद में ढ़ेरो पुरुस्कार हैं , प्रतियोगितायें हैं . साहित्य में , लेखन में कविता , कहानी , व्यंग में , पुस्तको के लिये भी कई कई पुरुस्कार हैं , जिन्हें खुद कभी कोई पुरस्कार नही मिला वे भी किसी की स्मृति में चंदा वंदा करके कोई पुरुस्कार या सम्मान समारोह आयोजित करने लगते हैं और एक विज्ञप्ति निकालते ही उनके साथ भी , सम्मान की चाहत रखने वालो की भीड़ जुटने लगती है .
पाश्चात्य देशो में नये नये प्रयोग हो रहे हैं , कोई टमाटर मसलने का कीर्तिमान बना रहा है तो कोई बर्फ पर कलाकारी करने का ,आये दिन कुछ न कुछ नया हो रहा है कीर्तिमान बनाने के लिये लोग जान की बाजी लगा रहे हैं . लिम्का ने तो सालाना बुक आफ रिकार्डस की किताब ही छापनी शुरू कर दी है . हमारे देश में पुरस्कारो के नामो के लिये हम अपने अतीत पर गर्व करते हुये पुरातन प्रतीको को अपना ब्रांड आइकान बनाते रहे हैं , निशानेबाजी के लिये एकलव्य पुरुस्कार ,खेलो के लिये अर्जुन पुरुस्कार ,वीरता के लिये महाराणा प्रताप पुरुस्कार , सामाजिक कार्यों के लिये बाबा साहेब अंबेडकर आदि आदि के नाम पर गौरव पूर्ण पुरस्कारो की स्थापना हमने कर रखी है . अब जब से हमारे एक प्रदेश के ८६ वर्षीय बुजुर्ग महामहिम जी पर केंद्रित , पता नहीं , असल या नकल शयन शैया पर निर्मित फिल्म का प्रसारण एक टी वी चैनल पर हुआ है , जरूरत हो चली है कि वात्सायन पुरस्कारो की स्थापना हो .वानप्रस्थ की परम्परा और जरावस्था को चुनौती देते कथित प्रकरण से कई बुजुर्गो को नई उर्जा मिलेगी ,प्राचीन समय से हमारे ॠषि मुनी और आज भी वैज्ञानिक चिर युवा बने रहने की जिस खोज में लगे रहे हैं , उसी दिशा में यह एक कदम है . महर्षि वात्सायन ने जिस कामसूत्र की रचना की है , उसका सारा विश्व सदा से दीवाना रहा है .खजुराहो के विश्व विख्यात मंदिर वात्सायन के कामसूत्र को अद्वितीय मूर्तिकला के रूप में प्रदर्शित करते हैं . पाश्चात्य चिंतक फ्रायड के सिद्धांत के अनुसार भी दुनिया के हर कार्य में प्रत्यक्ष या परोक्ष , आधारभूत रूप से सैक्स ही होता है. . अर्थात हमें यह समझ लेने की जरूरत है कि सैक्स की जिस धारणा को जिसे छुपा छुपा कर हम बेवजह परेशान हैं , को गर्व से उजागर करने की आवश्यकता है . अब समय आ गया है कि यौन कुंठाओ का अंत हो . इंटरनेट पर वैसे ही सब कुछ केवल एक क्लिक पर सर्व सुलभ है . सैक्स टायज का बाजार करोड़ो में पहुंच रहा है .वियाग्रा , व अन्य कथित सैक्सवर्धक जड़ी बूटियों , दवाओ की विश्वव्यापी मांग है . फिल्मों में लम्बे किस सीन , निर्वस्त्र हीरोइन पुरानी बातें हो चली हैं . अब लासवेगास में लम्बे चुम्बन को लेकर प्रतियोगितायें हो रही हैं ,एक ही व्यक्ति कितनी लड़कियों से लगातार एक के बाद एक चुम्बन ले सकता ये कीर्तिमान बनाये जा रहे हैं . हमारे ही देश में वैश्यावृत्ति को कानूनी दर्जा देने की मांग उठ रही है . अब समय है कि वात्सायन पुरस्कारो की स्थापना हो .इससे पहले कि विदेशी बाजी मार लें , सैक्सोलाजिस्ट वात्सायन पुरस्कारो की स्थापना , प्रतियोगिता के स्वरूप आदि को लेकर खुली चर्चा करे और महर्षि वात्सासयन के देश में विभिन्न कैटेगरीज में वात्सायन पुरस्कारो की स्थापना की जावे . जिससे जब किसी छिपे कैमरे से किसी कमरे की छुपी तस्वीरें बाहर आ जावें तो किसी योग्य नेता को त्यागपत्र न देना पड़े , वरन उसे वात्सायन पुरस्कारो की समुचित श्रेणि से सम्मानित कर हम गौरवांवित हो सकें .