Tuesday, July 18, 2017

भारत मे चीन


व्यंग
भारत में चीन

विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
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बंगला नम्बर ऐ १ , विद्युत मंडल कालोनी , शिला कुन्ज , जबलपुर ४८२००८
०९४२५८०६२५२ , ७०००३७५७९८

        मेरा अनुमान है कि इन दिनो चीन के कारखानो में तरह तरह के सुंदर स्टिकर और बैनर बन बन रहे होंगे  जिन पर लिखा होगा " स्वदेशी माल खरीदें " , या फिर लिखा हो सकता है    " चीनी माल का बहिष्कार करें " . ये सारे बैनर हमारे ही व्यापारी चीन से थोक में बहुत सस्ते में खरीद कर हमारे बाजारो के जरिये हम देश भक्ति का राग अलापने वालो को जल्दी ही बेचेंगे . हमारे नेताओ और अधिकारियो की टेबलो पर चीन में बने भारतीय झंडे के साथ ही बाजू में एक सुंदर सी कलाकृति होगी जिस पर लिखा होगा "आई लव माई नेशन" ,  उस कलाकृति के नीचे छोटे अक्षरो में लिखा होगा मेड इन चाइना . आजकल भारत सहित विश्व के किसी भी देश में जब चुनाव होते हैं तो  वहां की पार्टियो की जरूरत के अनुसार वहां का बाजार चीन में बनी चुनाव सामग्री से पट जाता है .दुनिया के किसी भी देश का कोई त्यौहार हो उसकी जरूरतो के मुताबिक सामग्री बना कर समय से पहले वहां के बाजारो में पहुंचा देने की कला में चीनी व्यापारी निपुण हैं . वर्ष के प्रायः दिनो को भावनात्मक रूप से किसी विशेषता से जोड़ कर उसके बाजारीकरण में भी चीन का बड़ा योगदान है . 
        चीन में वैश्विक बाजार की जरूरतो को समझने का अदभुत गुण है . वहां मशीनी श्रम का मूल्य नगण्य है .उद्योगो के लिये पर्याप्त बिजली है . उनकी सरकार आविष्कार के लिये अन्वेषण पर बेतहाशा खर्च कर रही है . वहां ब्रेन ड्रेन नही है . इसका कारण है वे चीनी भाषा में ही रिसर्च कर रहे हैं . वहां वैश्विक स्तर के अनुसंधान संस्थान हैं . उनके पास वैश्विक स्तर का ज्ञान प्राप्त कर लेने वाले अपने होनहार युवको को देने के लिये उस स्तर के रोजगार भी हैं . इसके विपरीत भारत में देश से युवा वैज्ञानिको का विदेश पलायन एक बड़ी समस्या है . इजराइल जैसे छोटे देश में स्वयं के इनोवेशन हो रहे हैं किन्तु हमारे देश में हम बरसो से ब्रेन ड्रेन की समस्या से ही जूझ रहे हैं .  देश में आज  छोटे छोटे क्षेत्रो में मौलिक खोज को बढ़ावा  दिया जाना जरूरी है . वैश्विक स्तर की शिक्षा प्राप्त करके भी युवाओ को देश लौटाना बेहद जरूरी है . इसके लिये देश में ही उन्हें विश्वस्तरीय सुविधायें व रिसर्च का वातावरण दिया जाना आवश्यक है . और उससे भी पहले दुनिया की नामी युनिवर्सिटीज में कोर्स पूरा करने के लिये आर्थिक मदद भी जरूरी है . वर्तमान में ज्यादातर युवा बैंको से लोन लेकर विदेशो में उच्च शिक्षा हेतु जा रहे हैं , उस कर्ज को वापस करने के लिये मजबूरी में ही उन्हें उच्च वेतन पर विदेशी कंपनियो में ही नौकरी करनी पड़ती है , फिर वे वही रच बस जाते हैं . जरूरी है कि इस दिशा में चिंतन मनन , और  निर्णय तुरन्त लिए जावें , तभी हमारे देश से ब्रेन ड्रेन रुक सकता है .
        निश्चित ही विकास हमारी मंजिल है . इसके लिये  लंबे समय से हमारा देश  "वसुधैव कुटुम्बकम" के सैद्धांतिक मार्ग पर , अहिंसा और शांति पर सवार धीरे धीरे चल रहा था .  अब नेतृत्व बदला है , सैद्धांतिक टारगेट भी शनैः शनैः बदल रहा है . अब  "अहम ब्रम्हास्मि" का उद्घोष सुनाई पड़ रहा है . देश के भीतर और दुनिया में भारत के इस चेंज आफ ट्रैक से खलबली है . आतंक के बमों के जबाब में अब अमन के फूल  नही दिये जा रहे . भारत के भीतर भी मजहबी किताबो की सही व्याख्या पढ़ाई जा रही है . बहुसंख्यक जो  बेचारा सा बनता जा रहा था और उससे वसूल टैक्स से जो वोट बैंक और तुष्टीकरण की राजनीति चल रही थी , उसमें बदलाव हो रहा है . ट्रांजीशन का दौर है .
        इंटरनेट का ग्लोबल जमाना है . देशो की  वैश्विक संधियो के चलते  ग्लोबल बाजार  पर सरकार का नियंत्रण बचा नही है . ऐसे समय में जब हमारे घरो में विदेशी बहुयें आ रही हैं , संस्कृतियो का सम्मिलन हो रहा है . अपनी अस्मिता की रक्षा आवश्यक है . तो भले ही चीनी मोबाईल पर बातें करें किन्तु कहें यही कि आई लव माई इंडिया . क्योकि जब मैं अपने चारो ओर नजरे दौड़ाता हूं तो भले ही मुझे ढ़ेर सी मेड इन चाइना वस्तुयें दिखती हैं , पर जैसे ही मैं इससे थोड़ा सा शर्मसार होते हुये अपने दिल में झांकता हूं तो पाता हूं कि सारे इफ्स एण्ड बट्स के बाद " फिर भी दिल है हिंदुस्तानी " . तो चिंता न कीजीये बिसारिये ना राम नाम , एक दिन हम भारत में ही चीन बना लेंगें हम विश्व गुरू जो ठहरे . और जब वह समय आयेगा  तब मेड इन इंडिया की सारी चीजें दुनियां के हर देश में नजर आयेंगी चीन में भी , जमाना ग्लोबल जो है . तब तक चीनी मीट्टी से बने , मेड इन चाइना गणेश भगवान की मूर्ति के सम्मुख बिजली की चीनी झालर जलाकर नत मस्तक मूषक की तरह प्रार्थना कीजीये कि हे प्रभु ! सरकार को , अल्पसंख्यको को , गोरक्षको को , आतंकवादियो को ,काश्मीरीयो को ,  पाकिस्तानियो को , चीनियो को सबको सद्बुद्धि दो .
       
       
         
vivek ranjan shrivastava

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