Monday, December 13, 2010

ब्राण्डेड-वर-वधू

व्यंग
ब्राण्डेड-वर-वधू
विवेक रंजन श्रीवास्तव

हर लड़की अपने उपलब्ध विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ घर-वर देखकर शादी करती
है, पर जल्दी ही, वह कहने लगती हैं- तुमसे शादी करके तो मेरी किस्मत ही
फूट गई है। या फिर तुमने आज तक मुझे दिया ही क्या है। इसी तरह प्रत्येक
पति को अपनी पत्नी `सुमुखी` से जल्दी ही सूरजमुखी लगने लगती है। लड़के के
घर वालों को तो बारात के वापस लौटते-लौटते ही अपने ठगे जाने का अहसास
होने लगता है। जबकि आज के इण्टरनेटी युग में पत्र-पत्रिकाओं,
रिश्तेदारों, इण्टरनेट तक में अपने कमाऊ बेटे का पर्याप्त विज्ञापन करने
के बाद जो श्रेष्ठतम लड़की, अधिकतम दहेज के साथ मिल रही होती हैं, वहीं
रिश्ता किया गया होता हैं यह असंतोष तरह तरह प्रगट होता है । कहीं बहू
जला दी जाती हैं, कहीं आत्महत्या करने को विवश कर दी जाती हैं पराकाष्ठा
की ये स्थितियां तो उनसे कहीं बेहतर ही हैं, जिनमें लड़की पर तरह तरह के
लांछन लगाकर, उसे तिल तिल होम होने पर मजबूर किया जाता हैं।

नवयुगल फिल्मों के हीरो-हीरोइन से उत्श्रंखल हो पायें इससे बहुत पहले ननद, सास
की एंट्री हो जाती है। स्टोरी ट्रेजिक बन जाती है और विवाह जो बड़े उत्साह
से दो अनजान लोगों के प्रेम का बंधन और दो परिवारों के मिलन का संस्कार हैं,
एक ट्रेजडी बन कर रह जाता है। घुटन के साथ, एक समझौते के रूप में समाज के
दबाव में मृत्युपर्यन्त यह ढ़ोया जाता है। ऊपरी तौर पर सुसंपन्न, खुशहाल
दिखने वाले ढेरो दम्पत्ति अलग अलग अपने दिल पर हाथ रख कर स्वमूल्यांकन
करें, तो पायेंगे कि विवाह को लेकर अगर-मगर, एक टीस कहीं न कहीं हर किसी
के दिल में हैं।
यहां आकर मेरा व्यंग्य लेख भी व्यंग्य से ज्यादा एक सीरियस निबंध बनता जा रहा है। मेरे व्यंग्यकार मन में विवाह की इस समस्याका समाधान ढूंढने का यत्न किया । मैंने पाया कि यदि दामाद को दसवां ग्रह
मानने वाले इस समाज में, यदि वर-वधू की मार्केटिंग सुधारी जावें, तो
स्थिति सुधर सकती है। विवाह से पहले दोनों पक्ष ये सुनिश्चित कर लेवें कि
उन्हें इससे बेहतर और कोई रिश्ता उपलब्ध नहीं है। वधू की कुण्डली लड़के के
साथसाथ भावी सासू मां से भी मिलवा ली जावे। वर यह तय कर ले कि जिदंगी भर ससुर को
चूसने वाले पिस्सू बनने की अपेक्षा पुत्रवत्, परिवार का सदस्य बनने में ही
दामाद का बड़प्पन हैं, तो वैवाहिक संबंध मधुर स्वरूप ले सकते है।

अब जब वर वधू की एक्सलेरेटेड मार्केटिंग की बात आती है तो मेरा प्रस्ताव
है ब्राण्डेड वर, वधू सुलभ कराने की। यूं तो शादी डॉट कॉम जैसी कई
अंर्तराष्ट्रीय वेबसाइट सामने आई हैं। माधुरी दीक्षित जी ने तो एक
चैनल पर बाकायदा एक सीरियल ही शादी करवाने को लेकर चला
रखा था। अनेक सामाजिक एवं जातिगत संस्थाये सामूहिक विवाह जैसे आयोजन कर ही
रही हैं। लगभग प्रत्येक अखबार, पत्रिकायें वैवाहिक विज्ञापन दे रहें है,
पर मेरा सुझाव कुछ हटकर है। यूं तो गहने, हीरे, मोती सदियों
से हमारे आकर्षण का केन्द्र रहे हैं, पर हमारे समय में जब से ब्राण्डेड
`हीरा है सदा के लिये´ आया हैं, एक गारण्टी हैं, शुद्धता की। रिटर्न
वैल्यू है। रिलायबिलिटी है। आई एस ओ प्रमाण पत्र का जमाना है
साहब। खाने की वस्तु खरीदनी हो तो हम चीज नहीं एगमार्क देखने के आदि हैं
पैकेजिंग की डेट, और एक्सपायरी अवधि, कीमत सब कुछ प्रिंटेड पढ़कर हम , कुछ
भी सुंदर पैकेट में खरीदकर खुश होने की क्षमता रखते है। अब आई एस आई
के भारतीय मार्के से हमारा मन नहीं भरता हम ग्लौबलाईजेषन के इस युग में
आई एस ओ प्रमाण पत्र की उपलब्धि देखते है। और तो और स्कूलों को
आई एस ओ प्रमाण पत्र मिलता है, यानि सरकारी स्कूल में दो दूनी चार
हो, इसकी कोई गारण्टी नहीं है, पर यदि आई एस ओ प्रमाणित स्कूल में
यदि दो दूनी छ: पढ़ा दिया गया, तो कम से कम हम कोर्ट केस करके मुआवजा तो पा ही सकते हैं

हाल ही एक समाचार पढ़ा कि अमुक ट्रेन को आई एस ओ प्रमाण पत्र मिला
है। मुझे उस ट्रेन में दिल्ली तक सफर करने का अवसर मिला, पर मेरी कल्पना
के विपरीत ट्रेन का शौचालय यथावत था जहां विशेष तरह की चित्रकारी के द्वारा यौन शिक्षा के सारे पाठ पढ़ाये गये थे , मैं सब कुछ समझ गया। खैर विषयातिरेक न हो, इसलिये पुन: ब्राण्डेड वर वधू पर आते हैं-! आशय यह है कि ब्राण्डेड खरीदी से हममें एक कान्फीडेंस रहता है। शादी एक अहम मसला
है। लोग विवाह में करोड़ो खर्च कर देते है। कोई हवा में विवाह रचाता है,
तो कोई समुद्र में। हाल ही भोपाल में एक जोड़े ने ट्रेकिंग करते हुए पहाड़
पर विवाह के फेरे लिये, एक चैनल ने बकायदा इसे लाइव दिखाया। विवाह आयोजन में लोग जीवन भर की कमाई खर्च कर देते हैं , उधार लेकर भी बड़ि शान शौकत से बहू लाते हैं , विवाह के प्रति यह क्रेज देखते हुये मेरा अनुमान है कि ब्राण्डेड वर वधू अवश्य ही सफलतापूर्वक मार्केट
किये जा सकेगें। ब्राण्डेड बनाने वाली मल्टीनेशनल कंपनी सफल विवाह की
कोचिंग देगी। मेडिकल परीक्षण करेगी। खून की जांच होगी। वधुओं को सासों से
निपटने के गुर सिखायेगी।लड़कियो को विवाह से पहले खाना बनाने से लेकर सिलाई कढ़ाई बुनाई आदि ललित कलाओ का प्रशिक्षण दिया जावेगा .
भावी पति को बच्चे खिलाने से लेकर खाना बनाने तक
के तरीके बतायेगी, जिससे पत्नी इन गुणों के आधार पर पति को ब्लेकमेल न कर
सके। विवाह का बीमा होगा।
इसी तरह के छोटे-बड़े कई प्रयोग हमारे एम बी ए पढ़े लड़के ब्राण्डेड दूल्हे-दुल्हन पर लेबल लगाने से पहले कर सकते है। कहीं ऐसा न हो कि दुल्हन के साथ साली फ्री का लुभावना आफर ही
कोई व्यवसायिक प्रतियोगी कम्पनी प्रस्तुत कर दें। अस्तु! मैं इंतजार में
हूं कि सुदंर गिफ्ट पैक में लेबल लगे, आई एस ओ प्रमाणित
दूल्हे-दुल्हन मिलने लगेंगे, और हम प्रसन्नता पूर्वक उनकी खरीदी करेगें, विवाह
एक सुखमय, चिर स्थाई प्यार का बंधन बना रहेगा। सात जन्म का साथ निभाने की
कामना के साथ, पत्नी हीं नहीं, पति भी हरतालिका व्रत रखेगें।

विवेकरंजन श्रीवास्तव

2 comments:

  1. .

    विवेक जी , २१ वीं शताबदी में आकर भी लोगों के विचारों में कोई सुधार नहीं हुआ है। स्त्री अभी भी उपभोग की ही वस्तु समझी जाति है। कभी दहेज तो कभी किसी और बहाने से बहुएं जलाई जा रही हैं। कल का समाचार देखिये-- sw- इंजिनियर ने अपनी पत्नी के शरीर के ७२ टुकड़े कर दिए। उसे अपने किये का ज़रा भी पछतावा नहीं।

    एक सार्थक एवं सामयिक आलेख के लिए बधाई।

    .

    ReplyDelete
  2. vivek ji aap ka lekhan bahut hi badhiya hai kafi maja aaya aapka blog padhkar aap yuhi likhte rqahe dhanywad

    ReplyDelete

कैसा लगा ..! जानकर प्रसन्नता होगी !