Friday, February 15, 2008

दो दो किडनी रखने की लक्जरी क्यों ?


व्यंग
००
" दो दो किडनी रखने की लक्जरी क्यों ? "

विवेक रंजन श्रीवास्तव
सी - 6 , एम.पी.ई.बी.कालोनी
रामपुर, जबलपुर ४८२००८

मोबा. ०९४२५४८४४५२
ई मेल vivekranjan.vinamra@gmail.com


एक बार बिल क्लिंटन भारत आये थे , तब मीडिया ने उनके हवाई जहाज की लैण्डिंग का लाइव टेलीकास्ट दिखाया था . ठीक उसी तरह डा. अमित कुमार "किडनी चोर" की नेपाल से दिल्ली यात्रा की खबरें सारे देश ने हर न्यूज चैनल पर "सबसे पहले" , ब्रेकिंग न्यूज के रूप में सनसनीखेज तरीके से देखने का सौभाग्य प्राप्त किया . मैं मीडिया की इस तत्परता से अभीभूत हूँ . आशा है ऐसे प्रेरणादायी समाचार से देश के बेरोजगार युवक बीमार अमीर लोगों हेतु किडनी जुटाने के नये व्वसाय को अपनाने के सेवा कार्य में अपने लिये रोजी रोटी की तलाश की संभावना का अध्ययन अवश्य ही करेंगे . मुझे पूरा भरोसा है कि इस प्रसारण को देखकर , कोई जन कल्याणी संगठन केंद्र सरकार , स्वास्थ्य मंत्रालय से भारी अनुदान लेकर किडनी बैँक की स्थापना का प्रस्ताव भी अवश्य करेगा एवं डा. अमित कुमार के धंधे को कानूनी ताना बाना पहनाकर अपनी रोटियां सेंकने के लिये जरूर प्रेरित हुआ होगा .
परमात्मा ने शरीर तो एक ही दिया है . पर लगता है किडनी सप्लाई में बढ़िया कमीशन के चलते , परमात्मा के स्टोर में "स्टाक स्पेयर" के कारण , व्यर्थ ही हरेक को दो दो गुर्दे दे रखे हैं . परमात्मा पर किडनी परचेज में कमीशन खोरी के आरोप से जिनकी भावनाओं को ठेस लगती हो , उनके लिये यह माना जा सकता है कि परमात्मा ने अपना प्रोडक्शन प्लान अवश्य ही रिवाइज किया होगा , अच्छा ही हुआ , वरना आज आबादी दुगनी होती .एनी वे , मसला यह है कि आज जमाना आप्टिमम यूटीलाइजेशन का है , जब एक से ही काम चल सकता है , तो भगवान की गलती का खामियाजा भुगतते , हम क्यों दो दो किडनी संभाले संभाले घूमे ? मै तो डार्विन के विकासवाद पर भी प्रश्न चिंह लगाना चाहता हूँ ,यदि अनुपयोगी हिस्सों के सतत क्षरण की प्रक्रिया सच होती तो आखिर अब तक हमारे शरीर से एक किडनी कम क्यों नहीं हुई ? एक रावण का जमाना था . अकेले बंदे के दस दस सिर थे . सब उसे राक्षस राक्षस कहते हैं , रावण की तरफ से सोचकर कोई नहीं देखता . एक ही सिर में तो डा. अमित कुमार जैसे कितने ही फितूर समा जाते हैं .रावण की तरह तुम्हारे दस सिर फिट कर दें तब समझ में आये ,आखिर कितना सोचें क्या करें . बेचारा रावण ! उससे तो हम ही भले , कुल जमा एक ही सर है बीबी की हाँ में हाँ मिलाने के लिये , ये और बात है कि यस सर! कहने के लिये कई कई छोटे बड़े सर सुलभ हैं .दो आँखें तो समझ आती हैं ,जमाने में अच्छा बुरा सब देखना सुनना पड़ता है सो दो कान भी जस्टीफाइड हैं . दोनों हाथों से जाने किसके लिये करोड़ो बटोरना हमारा परम कर्तव्य है अतः दो हाथ भी जरूरी हैं , और दो पैरों के बिना चला ही नहीं जा सकता इसलिये उनकी आवश्यकता निर्विवाद है . दिल एक है .दिमाग एक है. पेट गनीमत है एक ही है. लिवर एक है . बस एक ही हिडन आइटम है किडनी , जो बिल्कुल बेवजह दो दो फिट कर रखीं है परवरदिगार ने .
मेरा अनुभव है कि उपरवाले सचमुच अजीबोगरीब काम करते रहते हैं . फिर चाहे वे बास हों या अल्लाताला ! कहाँ तो दो दो किडनी फिट हैं हर शरीर में ,और कहाँ जरा किसी अमीर जादे ने थोड़ी ज्यादा पी पिला ली तो उसकी दोनों किडनी फेल . किडनी ना हुई सरकारी बस की स्टेपनी हो गई .
बस यहीं समाजवाद की जरूरत आन पड़ती है . जिसके सारे रास्ते पूँजी वाद से होकर गुजरते हैं . भला हो डा.अमित कुमारों का , जब अपने सगे वाले भी , कहीं किडनी ना देना पड़ जाये इस डर से कन्नी काटने लगते हैं तब डा. अमित कुमारों जैसों से ही आशा रह जाती है , वरना रखे रह जाते वे करोड़ों रुपये जिन्हें कमाने की आपाधापी में अनियमित, अप्राकृतिक जीवन शैली वगैरह से बड़े बड़े लोग अपनी किडनियाँ खराब कर लेते हैं और डायलिसिस की शरण में पहुँच जाते हैं . मै मुक्त कंठ प्रशंसा करता हूँ डा. अमित कुमारों की , जिनके पास न तो प्रापर दिग्री होती है सर्जरी वगैरह की , न ही प्रापर वेल इक्यूप्ड सरकारी अस्पताल , पर वे किडनी प्रत्यारोपण जैसे सेवाभावी महान कार्य में अपना सर्वस्व लगा देते हैं . गरीबों को व्यर्थ की एक किडनी के बोझ से मुक्ति मिल जाती है कुछ रूपये भी मिल ही जाते होंगे , और जरूरत मंद को किडनी मिल जाती है , एक जान बच जाती है .अंग प्रत्यारोपण वगैरह के सरकारी कानूनों से बढ़कर भी एक कानून है मानवीयता का . प्रश्न है, कैसे छोड़ दिया जाये मरीज को बिना किडनी मरने के लिये .मैं डा. अमित कुमार की मानवीय संवेदना को सौ सौ प्रणाम करता हूँ . मै तो कहता हूँ देश को ऐसे महान डाक्टर्स का सम्मान करना चाहिये . रही उनके पास अरबों की संपत्ति होने का , तो भई जिसकी जान बचेगी वह कुछ ना कुछ तो देगा ही . भगवान के मंदिर में भी तो सब कुछ न कुछ चढ़ोत्री चढ़ा कर ही आते हैं . बचपन में मैने नैतिक शिक्षा में पढ़ा था कि माँ पिता और डाक्टर भी भगवान का ही रूप होते हैं .
मेरा तो आग्रह है कि डा. अमित कुमार को ससम्मान छोड़ा जावे . उन्हें सुन्दर सुन्दर नर्सों से सुसज्जित अस्पताल सुलभ करवाया जावे . और एक अभियान चलाकर देश की करोड़ौ की आबादी में से अमीरी के उल्टे क्रम में , मतलब सबसे गरीब सबसे पहले के सरल सिद्धांत पर किडनी निकालने का अभिनव अभियान चलाया जाये . आस आयोजन से एक लाभ और होगा , लोग अपनी वास्तविक आय से बढ़चढ़ कर आय लिखाने लगेंगे . ब्लैक मनी बाहर आ जायेगी . रातोरात देश की पर कैपिटा इनकम बढ़ जायेगी . जो काम सरदार मनमोहन सिंग जैसे वित्त मंत्री नहीं कर सके वह , डा. अमित कुमार के किडनी निकालो अभियान से हो जायेगा . देश प्रगति कर जायेगा . एक भव्य किडनी बैंक बनाकर हम विदेशों में किडनी निर्यात का नया काम प्रारंभ कर सकेंगे . किडनी दान करने वालों को विशिष्ट सुविधायें मुहैया करवाई जायेंगी .
जब गरीबों को ए.सी. , फ्रिज , कार वगैरह रखने की सुविधा हमारी सरकार और समाज ने नहीं दी है तो भला दो दो किडनी रखने की लक्जरी का आखिर क्या मतलब है . आइये परमात्मा से प्रार्थना करें कि डा. अमित कुमार को भारत रत्न मिले . आखिर उन्होंने एक ऐसे व्यवसाय की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया है जिसमें हर्र या फिटकरी लगाये बिना ही चोखा रंग आता है . एक आग्रह आप सबसे है कि अपनी अपनी दूसरी किडनी की उपलब्धता जरूर जाँच लें , कहीं कोई डा. अमित पहले ही उस पर हाथ साफ न कर चुका हो .

विवेक रंजन श्रीवास्तव
सी - 6 , एम.पी.ई.बी.कालोनी
रामपुर, जबलपुर ४८२००८

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कैसा लगा ..! जानकर प्रसन्नता होगी !